नई दिल्ली: दुनिया में कोरोना वायरस फैलाकर चीन सारे विश्व के केंद्र में आ गया है. वहां से आने वाली हर तस्वीर को दुनिया गौर से देख रही है, जिसमें चीन के अंदर जिंदगी की घुटन साफ देखने को मिलती है. चीन में ये सब कुछ इसलिए होता है, ताकि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना सुरक्षित रहे. बेकसूरों का खून भले ही बह जाए, लेकिन CCP के एजेंडे को रत्तीभर भी फर्क न पड़े. इसलिए वो लगातार अपने ही लोगों पर नजर रखती है. ऐसे में ये सवाल मन में आता है कि आखिर चीन का इलाज क्या है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आज के संबोधन से यह स्पष्ट होता है कि भारत को ऐसी ताकत से निजात पाने के लिए आत्मनिर्भर बनना होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज कहा कि इस कोरोना संकट से हमने अनुभव में पाया है कि बिना आत्मनिर्भर बने ऐसे संकटों को झेल पाना भी मुश्किल हो जाएगा.


चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अपने नागरिकों पर निगरानी रखने के लिए 196 बिलियन डॉलर खर्च करती है. जो भारतीय करेंसी के हिसाब से 15 लाख करोड़ रुपये है. चीन की जनसंख्या 140 करोड़ है, इस तरह चीन तकरीबन 1000 रुपये प्रति वर्ष अपने नागरिकों की निगरानी पर खर्च करता है. 15 लाख करोड़ चीन में पुलिस, खुफिया तंत्र, जेल, अदालत पर खर्च होता है. जो उसके कुल खर्च का 7% है और सैन्य बजट से ज्यादा है. अब आप सोच रहे होंगे कि इतना ज्यादा पैसा खर्च करने की जरूरत क्या है और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के हित को सुरक्षित रखना इंसानी कीमत से ज्यादा जरूरी क्यों है?


कैसे काम करता है चीन?


दरअसल, चीन में वन पार्टी सिस्टम है. मतलब एक ही पार्टी की सरकार बनती रहती है, बस नेता बदल जाते हैं. सैद्धांतिक रूप से चीन को 3 संस्थान चलाते हैं. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना, सेना और सरकार. लेकिन असल में सारा कंट्रोल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना ही करती है. जिसका नेता पार्टी का जनरल सेक्रेटरी होता है. जो पार्टी को चलाता है. चीन का सर्वेसर्वा होता है. इस तरह सेना, सरकार, सोसायटी और कारोबार सबके लिए कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना की कही बात पत्थर की लकीर होती है.


1 अक्टूबर 1949 से कम्युनिस्ट पार्टी चीन को चला रही है. वहां की जनसख्या दुनिया में सबसे ज्यादा है, मगर पार्टी में सिर्फ 9 करोड़ सदस्य हैं. आखिर चीन की आबादी सबसे ज्यादा होने के बाद भी सत्तारूढ़ पार्टी में सदस्य कम क्यों हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होना बहुत मुश्किल है. बचपन से ही पार्टी वफादारी का सबक सिखाना शुरू कर देती है. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना की हिस्ट्री याद करवाई जाती है. पार्टी के लोगों का सम्मान करवाना सिखाया जाता है.


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छोटे बच्चे हाई स्कूल तक आते-आते कम्युनिस्ट यूथ लीग में शामिल हो जाते हैं. लेकिन यूथ लीग के बाद CCP का सदस्य बनना बहुत मुश्किल होता है. जो पार्टी में शामिल होना चाहते हैं, उन्हें पार्टी से निष्ठा दिखानी और जतानी पड़ती है. चीन में कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ना इसलिए भी आकर्षक है, क्योंकि पार्टी के इशारे पर ही सरकारी कंपनियों में भर्तियां होती हैं. कारोबार करने के लिए भी कम्युनिस्ट पार्टी की रजामंदी की जरूरत होती है.


विरोध का मतलब मुसीबत को बुलावा


चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के विरोध करने का मतलब मुसीबत को बुलावा देना है. सरकार से मिलने वाली छूट को खोना है. चीन के राष्ट्रपति के चुनाव में कहीं से भी चीन की जनता की भागीदारी नहीं होती है. ये काम नेशनल पीपुल्स कांग्रेस करती है. जो जरूरत पड़ने पर चीन का संविधान भी बदल सकती है. नेशनल पीपुल्स कांग्रेस का गठन कम्युनिस्ट पार्टी के एलीट सदस्य करते हैं, जिसकी संख्या 3000 से कम होती है.


यानी की जनता की कोई वैल्यू नहीं है. इसलिये उनके साथ हो रही निर्ममता की बहुत कम तस्वीरें सामने आ पाती हैं. शहर-शहर फैले कम्युनिस्ट पार्टी के जासूस सरकार के काम को आसान करते हैं. शिनजियांग प्रांत में कथित एजुकेशन कैंप है. जो किसी डिटेंशन कैंप से कम नहीं है. यहां उइगर मुस्लिमों पर जुल्म की बात आम है. ये सब इस्लामी चरमपंथ के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर होता है. एक अनुमान के मुताबिक, चीन की सरकार 10 लाख लोगों के साथ ऐसा कर रही है.


उइगर महिला की दर्दनाक कहानी


अमेरिकी सांसदों के सामने यातनाएं झेलने वाली एक उइगर महिला ने बताया कि मैं हमेशा परेशान रहती हूं. हर समय मैं असुरक्षित महसूस करती हूं. हमें शी जिनपिंग की जय बोलने पर मजबूर किया जाता था. महिला की एक सहयोगी ने बताया कि जो नारे और नियमों को 14 दिनों के अंदर याद नहीं रख पाता था, उसे उसे बिना खाना दिए मारा जाता था. जब भी मुझे बिजली के झटके दिए जाते थे, तब मेरा पूरा शरीर बुरी तरह कांप उठता था. मैंने वो तकलीफ अपने शरीर की नसों में महसूस की है. मुझे लगा, मुझे मर जाना चाहिए. मौत कम से कम इस प्रताड़ना से तो कम ही होगी, मैंने उनसे मेरी जान लेने की भीख मांगी.


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दावा है कि शिनजियांग में बने डिटेंशन कैंप में उइगर महिलाओं के बाथरूम में भी कैमरे लगे हैं. टॉयलेट जाने के लिए महिलाओं को सिर्फ 2 मिनट मिलते हैं. इसके बाद दरवाजा खटखटाया जाने लगता है. जो वक्त पर बाहर नहीं निकलता उसे इलेक्ट्रिक बैटन से सिर पर मारा जाता है. शॉक की हालत में कैदियों को बोलना होता है कि सॉरी टीचर अगली बार ऐसा नहीं होगा.


ऐसी ही यातनाओं के जरिये चीन अपने लोगों के मन में डर भरता है और साथ ही उनमें पार्टी का देशभक्ति वाला प्रोपेगैंडा चलाता है. इस तरह शिनजियांग हो या फिर बाकी चीन, सब पर कम्युनिस्ट पार्टी नजर रखती है. इसी सिस्टम का फायदा चीन ने कोरोना की खबरों को कंट्रोल करने में किया. क्योंकि चीन में कौन कहां घूम रहा है. इसकी पूरी खबर CCP को होती है. चीन की कंपनियां नेशनल इंटेलिजेंस लॉ 2017 से बंधी हुईं हैं. ये कानून कंपनियों में सरकारी दखल को मंजूरी देता है. जिसमें साफ लिखा है कि कोई भी संगठन और व्यक्ति नेशनल इंटेलिजेंस के काम में सहयोग और समर्थन करेगा.


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इसी कानून का सहारा लेकर चीन दुनियाभर में अपनी कंपनियों के जरिये लॉबिंग कराता है. न्यूजीलैंड के केंटबेरी यूनिवर्सिटी की एक प्रोफेसर एन. मेरी. बार्डी ने चीन की इस लॉबिंग को दुनिया के सामने रखा. मैजिक वेपन नाम के अपने रिसर्च पेपर में उन्होंने बताया कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अपनी विदेशनीति और अपने संस्थाओं को एक फ्रंट पर रखती है. रिसर्च पेपर में लिखा गया कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कार्यकाल में चीन की आर्थिक कूटनीति को चार हिस्सों में बांटा गया है-


1. विदेशों में मौजूद चीन के लोगों को देश के लिए विदेशनीति एजेंट के तौर पर इस्तेमाल किया जाये.
2. पीपल टू पीपल, पार्टी टू पार्टी और चीनी उपक्रमों और विदेशी उपक्रमों में बेहतर तालमेल बनाया जाये.
3. तालमेल से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना की विदेश नीति सही तरीके से लागू करायी जाये.
4. एक वैश्विक और मल्टी-प्लेटफॉर्म आधारित संचार और संवाद रणनीति के तहत आगे बढ़ा जाये.


आत्मनिर्भर होना जरूरी


ऐसा करके चीन दूसरे देशों में मौजूद अपने लोगों और संस्थाओं से वहां अपना एजेंडा लागू करवाता है. पिछले साल भारत ने 23.07 लाख करोड़ रुपये का सामान निर्यात और 35.95 लाख करोड़ रुपये का सामान आयात किया. इस तरह आयात और निर्यात का घाटा करीब 12.87 लाख करोड़ रुपये है, जिसमें चीन की अकेले 40 फीसदी की हिस्सेदारी है. मैन्यूफैक्चरिंग में चीन दुनिया का बेताज बादशाह है. वो सुई से लेकर शिपयार्ड तक दुनिया को बेच रहा है. यही वजह है कि चीन के खतरे के बावजूद भारत उसे नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकता है.


बाकी दुनिया की तरह भारत भी चीनी डायग्नोस्टिक किट पर उठे सवालों के बीच भी उससे 400 टन मेडिकल साजो सामान खरीद चुका है. अगले कुछ दिनों में चीन के 5 शहरों से करीब 20 उड़ानें और भारत आएंगी जिनमें मेडिकल सप्लाई आनी हैं.


दुनिया में 'दो चीन है', पहला पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना है जबकि दूसरा रिपब्लिक ऑफ चाइना यानी ताइवान है. जहां 1949 से स्वतंत्र सरकार है, जहां भारत की तरह लोकतंत्र है. जबकि चीन में एक पार्टी का राज है. दरअसल 1912 में चीन में राजवंश का खात्मा हुआ और वो ROC यानी रिपब्लिक ऑफ चाइना बन गया. लेकिन 1945 में दूसरे विश्व युद्ध के बाद आज चीन पर शासन करने वाली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना ने मौजूदा नेशनलिस्ट सरकार को हटा दिया. जिसके नेता भागकर ताइवान चले आए.


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ताइवान आज दुनिया के सम्पन्न देशों में शामिल है, लोगों की आय भी वहां पर चीन के मुकाबले ज्यादा है और सबसे बड़ी बात लोकतंत्र है. कम्युनिस्ट पार्टी को डर है कि अगर ताइवान आजाद देश बन गया तो उसके यहां भी लोकतंत्र की मांग तेज हो सकती है. इसलिए वो हर हाल में ताइवान को चीन में मिलाने पर आमादा है.


ताइवान को घेरने के लिए चीन अपने सबसे असरदार हथियार का इस्तेमाल कर रहा है. वो उसका सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर बन चुका है. ताइवान का पर्यटन उद्योग भी चीन से आने वाले लोगों पर निर्भर है. अब चीन इसी निर्भरता का फायदा उठाकर ताइवान की मौजूदा सरकार पर दबाव डाल रहा है. लेकिन वहां के लोग इसके लिए तैयार नहीं हैं.


भारत भी चीन के विस्तारवाद से परेशान है. डोकलाम इसका सबूत है. जानकार मानते हैं कि अगर भारत चीन पर ऐसे ही निर्भर होता गया तो उसके चक्रव्यूह में फंस सकता है. कोरोना की वजह से जब 1929 में आये ग्रेट ड्रिपेशन से बड़ी आर्थिक मंदी का हवाला दिया जा रहा है. तब फ्रेंकलिन डी रूजवेल्ट को याद कर सकते हैं. जिनके नेतृत्व में अमेरिका ने इतिहास की सबसे भयानक मंदी को मात दी थी.


रूजवेल्ट ने न्यू डील नाम से प्लान बनाया, बेरोजगारों के हाथ में पैसे रखे. स्टेडियम, पार्क, स्कूल का कंस्ट्रक्शन शुरू करके करीब 30 लाख लोगों को रोजगार दिया. मंदी से निपटने के लिए नेशनल रिकवरी एडमिनिस्ट्रेशन का सेटअप शुरू किया. बैंक भी बचाए और डिपॉजिट की सरकारी गारंटी दी. कुल मिलाकर रूजवेल्ट ने अमेरिका के हर नागरिक के सामाजिक और आर्थिक हितों की रक्षा की. इसका नतीजा ये हुआ कि रूजवेल्ट लगातार चार बार चुनाव जीते, जो अमेरिका में रिकॉर्ड है.


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