नई दिल्ली: पूरी दुनिया के सामने चीन आज सर झुकाये कठघरे में खड़ा है. चीन ने कोरोना की असलियत पहले दिन से छुपाने की पूरी कोशिश की लेकिन इसमें वो आखिरकार कामयाब नहीं हो पाया. कौन जानता था कि चीन हज़ारों किलोमीटर दूर से ही दुनिया को अपने चंगुल में लेने में लगा था. दो देशों में अलग अलग घटी घटनाओं ने अब चीन की इस चाल से पर्दा उठा दिया है. कोरोना की पहेली का जवाब कनाडा से तीन वैज्ञानिकों को चीन वापस भेजे जाने की घटना में छिपा है.
कोरोना वायरस एक चीनी बायोलॉजिकल वैपन है इस थ्योरी की तरफ कनाडा और अमेरिका से जुड़ी दो घटनाएं इशारा करती हैं. पहली घटना का खुलासा तीन महीने पहले एक इजरायली बायोलॉजिकल वॉरफेयर एक्सपर्ट ने भारत में छपे एक लेख में किया था.
इजरायली एक्सपर्ट डेनी शोहम ने अपने लेख में खुलासा किया था कि चीन के 3 बड़े वैज्ञानिकों को कनाडा से जबरदस्ती चीन भेज दिया गया. ऐसा माना जा रहा था कि इन तीनों ने गुपचुप तरीके से इबोला और निपाह वायरस चीन भेज दिए थे. दरअसल, ये तीनों चीनी बायोलॉजिकल वैज्ञानिक कनाडा की एक बड़ी माइक्रोबायोजॉली लैब में काम करते थे और वहीं से इन तीनों ने ये इबोला और निपाह वायरस चीन भेजे थे.
आगे की कहानी और दिलचस्प है
इजरायली डेनी शोहम ने ये लेख दिसंबर के महीने में भारत के प्रतिष्ठित डिफेंस थिंकटैंक मनोहर पर्रीकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टीडज एंड एनेलिसिस के जर्नल में लिखा था. डेनी शोहम केमिकल और बायोलॉजिकल वॉरफेयर के एक्सपर्ट माने जाते हैं. अपने लेख में शोहम ने लिखा था कि इबोला और निपाह वायरस को दूसरे वायरस से मिलाया गया तो एक बेहद ही खतरनाक जैविक हथियार तैयार किया जा सकता है.
शोहम ने यहां तक लिखा है कि जिन तीन चीनी वैज्ञानिकों को कनाडा से निकाला गया था उनमें से एक महिला साइंटिस्ट चीन की वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वीरोलॉजी से संपर्क में थी. वुहान ही चीन का वो शहर है जो बायोलॉजिकल वैपन यानि जैविक हथियार बनाने के लिए बदनाम है और जहां से ही कोरोना वायरस पूरी दुनिया में फैला है.
कोरोना वायरस को बायोलॉजिकल वेपन मानने की दूसरी घटना अमेरिका में हुई. जहां जनवरी के महीने में हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक वरिष्ट प्रोफेसर समेत चीनी मूल के तीन आरोपियों को बायोलॉजिकल रिसर्च की जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया. इनमें से एक चीन की पीएलए-सेना की महिला सैन्य अधिकारी भी थी जो अमेरिका में अंडर कवर एजेंट के तौर पर साईंटेफिक-रिर्सचर के तौर पर काम कर रही थी. जानकारों का मानना है कि चीन ने ये सबकुछ वैश्विक-महाशक्ति बनने के लिए किया है.
चीन की कमजोरी हुई उजागर
सवाल ये भी है कि क्या चीन ने दुनिया की इस कमजोर नस को दबाकर दर्द दिया है. अमेरिका और उनके सहयोगी तो यही मानते हैं और वो संभव है कि इसका बदला लेने के लिए चीन की कमजोरी पर वार करेंगे. चीन की कमजोर कड़ी उसका भूगोल है. उसके दक्षिण में म्यांमार, लाओस और वियतनाम हैं. जहां जंग लड़ने के लिए सबसे खतरनाक वातावरण है. जंगल है. सैन्य ऑपरेशन करना बहुत कठिन है. इसलिए चीन ने म्यांमार और लाओस को तो अपनी तरफ मिला लिया है. लेकिन वियतनाम उसके जाल में फंसने को तैयार नहीं है.
1979 में चीन ने सीमा विवाद को लेकर वियतनाम को सबक सिखाने के लिए लड़ाई शुरू की थी लेकिन वह उसके लिए बुरा साबित हुआ. चीनी सैनिक इस युद्ध को 'घोस्ट वॉर' के रूप में याद करते हैं. क्योंकि इस संघर्ष में चीन के 26 हजार सैनिक मारे गए थे. चीन अपने जिस दुश्मन से खौफ खाता है वो अब भारत का दोस्त बन चुका है और भविष्य में चीन के खतरे को टालने के लिए ब्रह्मोस मिसाइल चाहता है.
चीन की असल चिंता अपने पूर्वी बॉर्डर को लेकर है. जहां दक्षिण कोरिया, जापान, ताइवान, ताइवान, इंडोनेशिया, सिंगापुर और मलेशिया जैसे अमेरिकी दोस्त हैं. मतलब जंग की सूरत में चीन को अमेरिका आसानी से दबोच लेगा. समंदर में रास्ता न मिलने से चीन की निर्यात वाली इकॉनमी बैठ जाएगी लोग बेरोजगार हो जाएंगे. अनाज आयात न होने से चीन में विद्रोह हो जाएगा. इसीलिए चीन पुराने सिल्क रूट के रास्ते को दोबारा जिंदा कर रहा है. दक्षिण चीन सागर में अपनी सारी ताकत लगा रहा है. लेकिन ऐसा करने के दौरान उसका अपने पड़ोसियों से तनाव लगातार बढ़ रहा है.
जंग के हालात में रास्ता ढूंढने के लिए चीन फिलिपींस पर डोरे डाल रहा है. वो अमेरिका से उसके मतभेद को भुना रहा है. ताकि जंग होने पर उसे दक्षिण चीन सागर में निकलने का रास्ता मिल सके. एक्सपर्ट चीन की इसी घेराबंदी को उसके खिलाफ भारत का एक और एक ग्यारह हथियार बता रहे हैं. यानी अगले तनाव में चीन पर मिलकर वार होगा.
भारतीय नौसेना के पूर्व प्रवक्ता कैप्टन डी के शर्मा का कहना है कि हम सर्विलांस कैपेबिलिटी बढ़ा रहे हैं, 2008 में हिंद महासागर में चीन घुसा था. कई देशों के साथ मिलिट्री एक्ससाइज किए गए. वियतनाम से बहुत पुराने रिश्ते हैं, साउथ चाइना सी में भारत काम कर रहा है, आर्मी नेवी सब मिलकर काम कर रहे हैं. चीन के खिलाफ मोर्चाबंदी हो रही है. मालाबार में एक्ससाइज हो रही है. फ्रांस के साथ पेट्रोलिंग शुरू हो गया है. चीन का जवाब निकल रहा है.
चीन की महत्वकांक्षा को विस्तारवाद का संक्रमण लग चुका है. वो हर हाल में अमेरिका को पीछे धकेलना चाहता है. उसके यही तेवर दुनिया को तनाव के नए रास्ते पर ले जा सकते हैं. लेकिन उसके लिए बुरी खबर ये है कि उसका एक बड़ा गढ़ गिर सकता है. उत्तर कोरियाई तानाशाह किम जोंग गंभीर रूप से बीमार हैं. दावा है कि वो जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं. बताया जा रहा है कि किम जोंग उन कार्डियोवस्कलर की वजह से बीमार चल रहे हैं.
किम जोंग उन को लेकर अटकलें उस वक्त तेज हो गई जब वो 15 अप्रैल को देश के स्थापना दिवस और अपने स्वर्गीय दादा के 108वें जन्मिदन पर होने वाले कार्यक्रम में दिखाई नहीं दिए. किम जोंग उन को आखिरी बार 11 अप्रैल को देखा गया था. जिसमें उन्होंने कोरोना वायरस को लेकर बैठक की थी. लेकिन इसके बाद 14 अप्रैल को जब उत्तर कोरिया ने मिसाइल परीक्षण किया तब किम जोंग उन नदारत थे. जबकि आमतौर पर ऐसा नहीं होता है.
पाकिस्तान और उत्तर कोरिया चीन के दो किले हैं. भारत से बचने के लिए चीन पाकिस्तान को बढ़ावा देता है तो दक्षिण चीन सागर में अमेरिका से बचने के लिए उत्तर कोरिया का. अगर उत्तर कोरिया के तानाशाह को कुछ हुआ तो फिर अमेरिका चीन के दरवाजे पर पहुंच जाएगा और चीन बुरी तरह से घिर जाएगा.