नई दिल्ली: लॉकडाउन में भारतीय समाज में एक सामाजिक सुरंग बनाने का काम चीन की ओर से लगातार हो रहा है. इस सुरंग से वो भारत के हर घर में अपनी मौजूदगी चाहता है. इसके लिए जो हथियार चीन ने चुना है वो है आपका मोबाइल. ZOOM ऐप का नाम आपने सुना होगा. लॉकडाउन में ZOOM लोगों की जिंदगी का हिस्सा बनता जा रहा है. ZOOM एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग ऐप है जिसे इन दिनों दुनियाभर में करोड़ों लोग इस्तेमाल कर रहे हैं. लोग ZOOM (जूम) पर ऑफिस की मीटिंग कर रहे हैं. छात्र इस ऐप (App) पर पढ़ाई और क्लासेज कर रहे हैं. लॉकडाउन में लोग परिवार और दोस्तों से जुड़ रहे हैं.
देखने और सुनने में ZOOM ऐप वाकई में बहुत काम की चीज मालूम होती है. ये ऐप 2011 में शुरू हुआ. दिसंबर 2019 तक इसके 1 करोड़ यूजर थे. जो मार्च 2020 में बढ़कर 20 करोड़ हो गए. मतलब सिर्फ 90 दिनों में ZOOM ऐप से 19 करोड़ यूजर जुड़ गए यानि 1900 गुना यूजर बढ़ गए. वर्तमान में जूम ऐप की वैल्यूएशन 42 बिलियन डॉलर यानी करीब 3.2 लाख करोड़ रुपए है. ऐसा इसलिए है क्योंकि ZOOM ऐप को इस्तेमाल करना बहुत आसान है और ये बिल्कुल फ्री है.
लेकिन कहते हैं ना दुनिया में कुछ भी यूं ही नहीं मिल जाता हर चीज की कीमत चुकानी होती है. पूरा खतरा है कि जो मीटिंग आप कर रहे हैं, उसकी बातचीत चीन में सुनी जा रही हो. इसकी पूरी संभावना है कि कोरोना की चुनौतियों से निपटने के लिए जो रणनीति भारतीय कंपनी ZOOM ऐप के जरिए बना रही है, उसकी पूरी जानकारी चीन में बैठी विरोधी कंपनी तक पहुंच रही हो.
एक्सपर्ट का मानना है कि दुनियाभर में जो भी सरकारें जूम ऐप के जरिए मीटिंग कर रही हैं, उसकी पल पल की खबर चीन को है. ऐसा इसलिए है क्योंकि ये ऐप भले ही अमेरिका का है, लेकिन उसका सर्वर चीन में है. ये ऐप अपने विरोधी ऐप के मुकाबले इस्तेमाल में बहुत आसान है अगर आपके मोबाइल में जूम ऐप डाउनलोड है तो सिर्फ एक लिंक को क्लिक करते ही आप वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सीधे जुड़ सकते हैं.
सुरक्षा की कीमत पर मिलने वाली यही आसानी मुसीबत की जड़ बन चुकी है. क्योंकि अमेरिका में ZOOM बॉम्बिंग से लोग परेशान हैं. ZOOM पर बच्चों की क्लास के बीच गलत और अश्लील तस्वीरें डाली जा रही हैं. जूम पर Facebook से डेटा शेयर करने का आरोप लग रहा है.
इससे जुड़ी एक और खबर तब सामने आई जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने अपनी पहली डिजिटल कैबिनेट बैठक की तस्वीर ट्विटर पर अपलोड की. जिसमें जूम मीटिंग की आईडी भी तस्वीर में दिख रही थी. इसके जरिए कोई भी बाहरी तत्व कैबिनेट की अहम बैठक तक पहुंच बना सकता था. साइबर एक्सपर्ट का मानना है कि ZOOM ऐप का इस्तेमाल करते हुए इस तरह की गलती किसी को भी बहुत भारी पड़ सकती है.
जूम ने अमेरिकन कॉरपोरेट मंत्रालय को जो जानकारी दी उसके मुताबिक इस एप्लीकेशन के रिसर्च और डेवलपमेंट का काम चीन में 700 कर्मचारियों ने मिल कर किया. आवाज और वीडियो को हजारों किलो मीटर दूर बैठे लोगों तक पहुंचाने का काम सर्वर करता है. इन सर्वर की इन्क्रिप्शन जिसके पास होगी वो इस आवाज या बातचीत को सुन सकता है. सबसे चिंता की बात ये है कि ZOOM ऐप में चाइनीज सर्वर का इस्तेमाल हो रहा है.
चीन का जंजाल क्या होगा भारत का हाल?
साइबर एक्सपर्ट का कहना है अमेरिकी इंटेलिजेंस अफसरों ने खुलासा किया है कि चीन की दिलचस्पी दूसरे देश के बड़े अफसरों, कारोबारियों और कंपनियों की जानकारियों जानने में हमेशा से रही है. लॉकडाउन ने चीन के काम को बहुत आसान बना दिया है. अमेरिकी खुफिया एजेंसियों का दावा है कि जूम के कई कनेक्शन चीन के सर्वर को जानकारी दे रहे हैं जबकि बातचीत करने वालों की उपस्थिति चीन में नहीं है.
कनाडा की एक कंपनी सिटीजन लैब ने भी दावा किया है कि जूम की इन्क्रिप्शन को कमजोर रखा गया है ताकि दूसरे देशों की जानकारी आसानी से चाइनीज सर्वर तक पहुंच सकें. मालिकाना स्ट्रक्चर और चाईनीज मैनपावर के इस्तेमाल के चलते चीन का दखल इस एप्लीकेशन में है, जिस वजह से जूम ऐप की विश्वसनीयता और चीनी सर्वरों पर वहां की सरकार की नजर से इनकार नहीं किया जा सकता है.
हुवावे की साजिश!
दुनियाभर में लोग मानते हैं कि सस्ते में 5जी तकनीक बेच रही हुवावे कंपनी चीनी साजिश है. दावा है कि 5G तकनीकि भारत में आने पर अस्पतालों में ऑपरेशन कई गुना तेजी से होंगे. बैंक, ट्रांसपोर्ट सहित कारोबार में हर जगह काम करने की रफ्तार बढ़ जाएगी. लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति को दी गई CIA की रिपोर्ट में बताया गया है कि 5G तकनीक की सबसे बड़ी कंपनी हुवावे चीन के लिए जासूसी करती है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की आर्मी अमेरिका में चीनी कंपनियों के जरिए सेंध लगा रही है. अमेरिका को ब्लैकमेल करने वाली जानकारियां चीन अपनी कंपनियों के जारिए हासिल कर रहा है. चीनी कंपनी से अमेरिका में चीनी इंटेलिजेंस ने रिसर्च-व्यापारिक गोपनीय जानकारी ली है.
हुवावे भारत में 5G तकनीक देना चाहती है इसके लिए उसने भारत सरकार से ट्रायल की अनुमति मांगी है. एक्सपर्ट को डर है कि अगर हुवावे को ये ठेका मिला तो हमारा हर राज चीन जान जाएगा. इसकी वजह चीन का एक कानून है जिससे उसकी हर कंपनी बंधी हुई. इस नियम चीन में सर्वर लगाने वाला जूम एप भी शामिल है.
चाइना इंटेलिजेन्स कानून की धारा 7 के मुताबिक चीन में काम करने वाली कंपनियां चीन के इंटेलिजेन्स कार्यक्रम में बाध्य तौर पर हिस्सा लेंगीं और इस जानकारी को गोपनीय रखेंगी. अगर ये जानकारी बाहर आई तो उन्हें इस कानून के तहद सजा दी जाएगी. इसी कानून में कहा गया है कि चीन पेशेवर/कंपनी/लोग चीन के अन्दर और बाहर इंटेलिजेन्स कार्यक्रम में सभी जानकारियां देने के लिए बाध्य होंगें.
यानी हुवावे हो या फिर जूम, ये कंपनी चीन की सरकार को सारी जानकारी देने के लिए मजबूर होंगे. इसमें चीन का टिकटॉक भी शामिल है. जिसे लेकर अमेरिका के एक बड़े वकील अपनी सरकार को आगाह कर चुके हैं. इस लिस्ट में चीन की सरकार के अधीन आने वाली कंपनी हिकविजन भी शामिल है. इस कंपनी ने अमेरिका में सीसीटीवी कैमरे लगाये और जब उसके जरिये जासूसी के आरोप लगे तो अमेरिका ने कानून बनाकर हिकविजन से वीडियो सर्विलेंस सर्विस लेने पर पाबंदी लगा दी.
क्या चीन CCTV कैमरे से रखता है नजर?
दिल्ली में हिकविजन के CCTV कैमरे लग चुके हैं. आरोप है कि इन कैमरों में बैक डोर एंट्री का सिस्टम है यानी सीसीटीवी कैमरों की तस्वीरें चीन तक पहुंच रहीं हैं. भारत में ये सब तब हो रहा है कि जब अमेरिका और ब्रिटेन में हिकविजन के कैमरों से जासूसी और मानवाधिकार उल्लंघन की बात हो रही है तो ऑस्ट्रेलिया ने सभी सैन्य इमारतों से चीन की इस कंपनी के सीसीटीवी कैमरे हटाने का आदेश दे दिया है. फ्रांस भी हिकविजन कैमरे से सुरक्षा खतरे की जांच कर रहा है.
चीनी तकनीक के चक्रव्यूह का चौथा खंबा भारत में समाचार देने वाली चीनी कंपनी का यूसी न्यूज ऐप है जिसके जरिये वो चीन का प्रोपेगैंडा चलाता है. इस ऐप के जरिये लिखी गई किसी खबर या आर्टिकल में अगर चीन का विरोध हो तो उसके शीषर्क में संवेदनशील शब्द, इसे बदलें लिखा आ जाता है. यानी ये चीनी ऐप भारत में चीन के खिलाफ कुछ भी लिखने और पढ़ने की इजाजत नहीं देता है.
चीन ने साल 2018 में रिसर्च एंड डेवलवमेंट पर 22 लाख 53 हजार करोड़ रुपये खर्च किए, जो उसकी GDP का 2.19 % है. वहीं भारत ने 1 लाख 13 हजार 825 करोड़ रुपये खर्च किए, जो भारत की जीडीपी का सिर्फ 0.60% और चीन के मुकाबले सिर्फ 5 फीसदी है. मतलब अगर रिसर्च एंड डिवेलवमेंट पर चीन 100 रुपये खर्च करता है तो भारत सिर्फ पांच रुपये. इसका नतीजा ये है कि चीन अपने हर जरूरत के लिए मशीनें बना रहा है.
हालांकि, 16 जनवरी 2016 को स्टार्ट अप इंडिया शुरू करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने जो कहा वही चीन को चुनौती देने का सही रास्ता है. स्टार्टअप भारत की तकदीर कैसे बदल सकते हैं उसे आंकड़ों से समझिए. अगर भारत के जिलों में 10% नए स्टार्टअप भी खुल जाएं तो देश के GDP में 1.8% का इजाफा हो सकता है. मोदी सरकार ने छोटे स्टार्टअप्स को बढ़ावा देना शुरू भी दिया है.
मार्च 2020 तक देश में स्टार्ट अप की संख्या 28,979 हो गयी है. जिनमें से 27,137 कंपनियों में 3.37 लाख लोग काम करते हैं. भारत की इस कामयाबी पर चीन की नजर है. चीनी कंपनियां और निवेशक अभी तक भारत की Paytm, Zomato, (डेल्हिवरी) Delhivery, BigBasket, PolicyBazaar, Udaan, Oyo Hotels & Homes जैसे स्टार्ट अप में जमकर निवेश कर चुके हैं.
FDI पॉलिसी पर भड़का चीन
साल 2018 में चीनी निवेशकों ने भारतीय कंपनियों और स्टार्ट अप में लगभग 15,000 करोड़ रुपये का निवेश किया था, जो 2019 में 29,600 करोड़ रुपये हो गया. चीन की इसी बढ़ती दखल को रोकने के लिए सरकार ने FDI पॉलिसी में बदलाव किया है. अब भारत सरकार की मंजूरी के बिना कोई भी पड़ोसी मुल्क भारत की कंपनियों में निवेश नहीं कर सकेगा. चीन इस बात से परेशान है इसलिये वो इसे भेदभाव से भरा और WTO के नियमों के खिलाफ बता रहा है.
एक्सपर्ट का मानना है कि सरकार ने अगर इस वक्त स्टार्टअप की मदद कर दी तो ये आंत्रप्रेन्योर देश को आर्थिक मंदी के भंवर से निकाल सकते हैं और चीन के मुकाबले में खड़े भी हो सकते हैं. प्रतिभा का पलायन रोकने के लिए नवंबर 2016 में मानव संसाधन मंत्रालय ने कहा कि वैज्ञानिकों को सरकारी सेवाओं में कार्यरत रखने के लिए तेजी से पदोन्नति की व्यवस्था की गई है. साथ ही सरकार की तरफ से उच्च शिक्षा और विशेष ट्रेनिंग के लिए विदेश जाने वाले वरिष्ठ कर्मचारियों को तीन साल तक सरकारी सेवा में ही रहने का बॉन्ड भरवाने की बात के बारे में बताया गया है. इनवेस्ट इंडिया भी प्रधानमंत्री मोदी का इसी तरफ उठाया गया एक बड़ा कदम है. ये ऐसी संस्था है जो पीएमओ को सीधे रिपोर्ट करती है और देश में लालफीताशाही कम करने के मिशन पर है.