चांद पर चीन के पहुंचने की असली कहानी, आखिर क्यों मची है चांद पर जाने की होड़
पहली बार साल 1959 में रूसी अंतरिक्ष यान ‘लूना-1’ चंद्रमा के करीब पहुंचने में कामयाब रहा. इसके बाद रूसी यान ‘लूना-2’ पहली बार चंद्रमा की सतह पर उतरा. सोवियत संघ ने 1959 से लेकर 1966 तक एक के बाद एक कई मानवरहित अंतरिक्ष यान चंद्रमा की सतह पर उतारे.
चीन ने एक बार फिर चांद पर कदम रखा है. यानी, 2013 के बाद ऐसा तीसरा मौका है जब चीन चांद पर पहुंचा है. इससे पहले, जनवरी 2019 में एक चीनी अंतरिक्ष यान ‘चांग ई-4’ ने एक छोटे से रोबोटिक रोवर के ज़रिए चांद की सुदूरस्थ सतह पर उतरकर इतिहास रचा. इसी तरह, भारत ने भी अपने चंद्र अभियान के तहत चंद्रयान-2 को चांद की ओर भेजा था. वैसे इसमें भारत को अपेक्षित सफलता नहीं मिली.
हाल ही में चीन की स्पेस एजेंसी ‘CNSA’ ने ‘चांग ए-5’ नामक एक स्पसेक्राफ्ट चांद की ओर भेजा है. इस 20-25 दिवसीय मिशन के तहत चीन चाँद पर से मिट्टी और चट्टानों के सैंपल इकट्ठा करके धरती पर लाएगा. चीन के मून सैंपल मिशन से ठीक पहले अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी की प्रत्यक्ष पुष्टि का दावा किया था और नासा ने अपने आर्टेमिस मून मिशन की रूपरेखा भी प्रकाशित की थी, जिसके अंतर्गत साल 2024 तक इंसान को चंद्रमा पर दुबारा भेजने की योजना का खुलासा किया था.
हालांकि इस मिशन पर काम कई दशकों पहले स्पेस लॉंच सिस्टम और ओरियन कैपस्यूल के निर्माण के साथ शुरू हुआ था और फ़िलहाल यह अपने अंतिम दौर में है. आर्टेमिस मिशन के जरिए नासा इंसानों को क़रीब 48 सालों बाद फिर एक बार चांद पर उतारने की योजना बना रहा है. यह मिशन इस दशक का सबसे ख़ास और महत्वपूर्ण मिशन होने जा रहा है जो कि अन्तरिक्ष अन्वेषण (स्पेस एक्सप्लोरेशन) के क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत करेगा.
भले ही यह मिशन चांद से शुरू होगा पर यह भविष्य में प्रस्तावित मंगल अभियान (मार्स मिशन) और दूसरे अन्य अन्तरिक्ष अभियानों के लिए मील का पत्थर साबित होगा. अपोलो मिशन के तहत अमेरिका ने 1969 से 1972 के बीच चाँद की ओर कुल नौ अंतरिक्ष यान भेजे और छह बार इंसान को चाँद पर उतारा. अब से क़रीब 51 साल पहले 21 जुलाई 1969 को नील आर्मस्ट्रांग ने जब चंद्रमा पर क़दम रखा था, तब उन्होंने कहा था कि ‘एक आदमी का यह छोटा-सा क़दम मानवता के लिए एक ऊँची छलांग है.’ अपोलो मिशन कोई वैज्ञानिक मिशन नहीं था, इसका मुख्य उद्देश्य राजनैतिक था, और वो था- सोवियत संघ को अंतरिक्ष कार्यक्रमों में पछाड़ना.
पहली बार साल 1959 में रूसी अंतरिक्ष यान ‘लूना-1’ चंद्रमा के करीब पहुंचने में कामयाब रहा. इसके बाद रूसी यान ‘लूना-2’ पहली बार चंद्रमा की सतह पर उतरा। सोवियत संघ ने 1959 से लेकर 1966 तक एक के बाद एक कई मानवरहित अंतरिक्ष यान चंद्रमा की सतह पर उतारे.
सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीतयुद्ध जब अपने चरम पर था, तभी 12 अप्रैल 1961 को सोवियत संघ ने यूरी गागरिन को अंतरिक्ष में पहुँचाकर अमेरिका से बाज़ी मार ली.
इसरो को चंद्रयान-2 मिशन की आंशिक विफलता ने इसके उन्नत संस्करण चंद्रयान-3 के लिए नए जोश के साथ प्रेरित किया है. चीन 2024 तक चंद्रमा पर अपने अंतरिक्ष यात्री उतारने की तैयारी कर रहा है. रूस 2030 तक चांद पर अपने अंतरिक्ष यात्रियों को उतारने की तैयारी में है. यही नहीं, कई निजी कंपनियां चांद पर उपकरण पहुंचाने और प्रयोगों को गति देने के उद्देश्य से नासा का ठेका हासिल करने की कतार में खड़ी हैं.
इसका मुख्य कारण है चांद का धरती के नजदीक होना. वहां तक पहुंचने के लिए 3 लाख 84 हजार किलोमीटर की दूरी सिर्फ तीन दिन में पूरी की जा सकती है। चांद से धरती पर रेडियो कम्युनिकेशन स्थापित करने में महज एक से दो सेकंड का समय लगता है.
इसके लिए अलग-अलग देशों के पास अपनी-अपनी वजहें हैं. जैसे, भारत के लिए चंद्र अभियान खुद को तकनीकी तौर पर उत्कृष्ट दिखाने का सुनहरा मौका होगा. चीन तकनीक के स्तर पर खुद को ताकतवर दिखाकर महाशक्ति बनने की दिशा में आगे बढ़ जाना चाहता है. अमेरिका के लिए चांद पर जाना मंगल पर पहुंचने से पहले का एक पड़ाव भर है.
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