लद्दाख: LAC की फिंगर एरिया पर प्रोपेगेंडा लाउडस्पीकर लगाने के पीछे चीन की ढाई हजार साल पुरानी एक लड़ाई है, जिसे वो आजतक मानता है. इसी धूर्त-नीति के चलते वो अब भारतीय सैनिकों पर मनोवैज्ञानिक दवाब बना रहा है. ये लड़ाई चीन में तीसरी ईसा पूर्व में हुई थी, जिसके बाद से ही हान राजवंश ने पूरे चीन पर अपना अधिकार जमाया था. इस नीति का जिक्र ग्लोबल टाइम्स ने भी किया है.
जानकारी के मुताबिक, 202 ईसा पूर्व में चीन के दो शक्तिशाली वंश, हान और चाऊ में चीन पर एकाधिकार के लिए लड़ाई चल रही थी. उस दौरान एक बार चाऊ वंश का राजा और उसकी सेना एक पहाड़ी पर फंस गई. इस दौरान हान सेना ने चाऊ वंश के राजा और उसके सैनिकों को घेर लिया. इस दौरान हान सेना ने चाऊ सैनिकों पर साईक्लोजिकल प्रेशर डालने के लिए चाऊ लोकगीत बजाने शुरू कर दिए. इससे चाऊ सैनिकों को लगा की हान सेना ने उनके (चाऊ) परिवारों को बंदी बना लिया है और अगर युद्ध हुआ तो उनके परिवारवाले मारे जाएंगे. इस डर से चाऊ सैनिकों ने हान सेना के सामने हथियार डालकर सरेंडर कर दिया. सैनिकों के सरेंडर के बाद चाऊ राजा ने भी आत्महत्या कर ली. इस तरह बिना लड़े हान सेना जीत गई और उसके बाद से ही पूरे चीन पर राज करने लगी. इसे 'गाएक्सिया की लड़ाई' के तौर पर जाना जाता है.
मौजूदा एलएसी विवाद में भी चीनी सेना भारतीय सेना के सामने ऐसे ही मनोवैज्ञानिक दवाब बनाना चाहती है. चीनी सेना फिंगर एरिया में लाऊडस्पीकर लगाकर उसपर पंजाबी गाने बजा रही है. क्योंकि फिंगर एरिया में भारत की तरफ से पंजाब या फिर सिख बटालियन वहां तैनात है. इसीलिए चीनी सेना फिंगर एरिया में पंजाबी गाने बजाकर भारतीय सैनिकों पर मनोवैज्ञानिक दवाब बनाना चाहती है.
दरअसल, फिंगर एरिया में भारत और चीन की सेनाओं के बीच जबरदस्त टकराव की स्थिति बनी हुई है. 8-9 सितबंर को दोनों देशों के बीच फिंगर 3-4 के बीच जबरदस्त (हवाई) फायरिंग हुई थी. जानकारी के मुताबिक, चीनी सेना ने एक ऐसा ही लाउडस्पीकर अपने मोलडो गैरिसन यानि छावनी में लगा रखा है और वहां पर भारत-विरोधी भाषण चलाता है. ये इसलिए, जिससे भारतीय सैनिकों में असंतोष की भावना पैदा की जाए. क्योंकि 29-30 अगस्त की रात की कार्रवाई के बाद से भारतीय सैनिक मोलडो के दोनों तरफ गुरंग और मगर हिल पर तैनात हैं. मोलडो में लगे लाउडस्पीकर की आवाज इन पहाड़ियों तक पहुंच जाती है.
पूर्व उपथलसेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने एबीपी न्यूज को बताया कि भारतीय सेना पर अब चीन का ये साईक्लोजिकल दवाब नहीं चलेगा, क्योंकि भारतीय सैनिक मनोवैज्ञानिक तौर से बेहद मजबूत हैं.
आपको बता दें कि 1962 के युद्ध और 1967 की नाथूला-चोला लड़ाई के दौरान भी चीनी सेना ऐसे ही एलएसी पर लाउडस्पीकर के जरिए प्रोपेगेंडा करती थी. 1967 में सिक्किम सेक्टर में चीनी सेना भारत की किसी कारवाई पर लाउडस्पीकर पर बोलती थी कि भारतीय सेना का हाल '62' के युद्धवाला कर देंगे. इसके बावजूद इसके भारतीय सैनिकों ने नाथूला-चोला की लड़ाई में चीनी सेना को जबरदस्त पटकनी दी थी.
दुनिया के सबसे किलेबंदी वाले नार्थ और साउथ कोरिया के बॉर्डर, डीएमजेड यानि डि-मिलिट्राइज़ जोन में भी दोनों देश इस तरह के प्रोपेगेंडा लाउडस्पीकर बजाते हैं. एबीपी न्यूज की टीम जब साल 2017 में डीएमजेड गई थी तब उस तरह के लाउडस्पीकर्स को अपने कैमरे में कैद किया था. जानकारों की मानें तो कम्युनिस्ट देश इस तरह के प्रोपेंगेंडा वॉरफेयर में ज्यादा लिप्त हैं. नार्थ कोरिया और चीन दोनों ही कम्युनिस्ट देश हैं. लेकिन उनको काउंटर करने के लिए दक्षिण कोरिया और भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों को भी ऐसी रणनीति अपनानी पड़ती है.