नई दिल्ली: अक्साई चीन के करीब गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच विवाद कम होने का नाम नहीं ले रहा है.‌ जानकारी के मुताबिक, चीनी सेना ने यहां पर कम से कम 80 टेंट गाड़ लिए हैं. इ‌सके बाद से भारतीय सेना ने भी इस क्षेत्र में अपनी तैनाती मजबूत कर ली है. सूत्रों के मुताबिक, चीनी सेना इस बात से खफा है कि भारत सीमावर्ती इलाकों में सड़क और दूसरी मूलभूत सुविधाएं तैयार कर रहा है. जबकि चीन ने अपने इलाकों में पहले ही हाईवे और सड़कों का जाल बिछा रखा है. लेकिन चीन अब भारत को ऐसा करने से रोक रहा है. सूत्रों के मुताबिक, भारत सड़क और दूसरी मूलभूत सुविधाएं अपने अधिकार-क्षेत्र में तैयार कर रहा है, इस पर चीन को एतराज नहीं करना चाहिए.


चीन ने आरोप लगाया है कि भारतीय सेना ने अक्साई-चिन से सटे गलवान-घाटी में 'डिफेंस-फैसेलिटी' बना ली है जो 'गैर-कानूनी' है और चीन की सीमा के अंदर है. लेकिन भारतीय सेना के सूत्रों का कहना है कि सरहद को अपने अपने नजरिए को देखने के कारण चीन ये आरोप लगा रहा है.


सूत्रों के मुताबिक, हाल ही में बॉर्डर रोड ऑर्गेनाईजेशन (बीआरओ) ने लद्दाख में चीन सीमआ के करीब दो सामरिक महत्व की सड़क तैयार की है. पहली पूर्वी लद्दाक के श्योक से डीबीओ (दौलत बेग ओल्डी) तक जाती है. ये सड़क गलवान घाटी के करीब से ही गुजरती है. दूसरी पेंगोंग-शो लेक के करीब है और फिंगर एरिया के पास तक जाती है. 5 मई को इसी फिंगर एरिया में भारत और चीन के सैनिकों के बीच जमकर मारपीट और पत्थरबाजी हुई थी, जिसमें दोनों तरफ के सैनिक बड़ी तादाद में घायल हुए थे.


चीनी सरकार के मुखपत्र, ‘ग्लोबल टाइम्स’ में छपी खबर कें मुताबिक, मई महीने के शुरूआत से ही भारतीय सेना गलवान घाटी में लगातार बॉर्डर को पार कर चीन सीमा में दाखिल हो रही है. अखबार के मुताबिक, भारत ने इस इलाके में बंकर (‘डिफेंस-फोर्टिफेशन’) तैयार कर लिए हैं और चीनी सेना के पैट्रोलिंग-पार्टी के रास्ते में अवरोध पैदा कर रहा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के इस कदम के खिलाफ चीनी सेना ने इस इलाके में अपनी तैनाती मजबूत कर ली है और जरूरी कदम उठा रही है.


गलवान नदी उसी अक्साई-चिन क्षेत्र से निकलती है जो कभी भारत का हिस्सा था और 1962 के युद्ध में चीन ने कब्जा कर लिया था. इसी गलवान घाटी में ’62 के युद्ध के दौरान भारत और चीन के सैनिकों के बीच सबसे पहली झड़प हुई थी. ये गलवान नदी पूर्वी लद्दाख में बहने वाली श्योक नदी में आकर मिल जाती है.


जिस जगह मौजूदा फ्लैश-पाइंट है, ये इलाका दौलत बेग ओल्डी यानि डीबीओ के बेहद करीब है जहां वर्ष 2013 में चीनी सैनिकों ने अपने टेंट गाड़ लिए थे. करीब 20 दिन बाद राजनैतिक और राजनयिक दखल के बाद ही चीन ने डीबीओ से अपने टेंट हटाए थे. इसके बाद ही भारतीय वायुसेना ने इस क्षेत्र में अपनी उस हवाई-पट्टी को फिर से चालू किया था जिसे 1962 के युद्ध के दौरान तैयार किया गया था लेकिन इस्तेमाल नहीं होता था. डीबीओ में हुए विवाद के बाद ही भारतीय वायुसेना ने डीबीओ हवाई पट्टी पर मिलिट्री-ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट, सी-130 हरक्युलिस की लैंडिग कराई थी. ये हवाई स्ट्रीप दुनिया की सबसे उंचाई वाली हवाई-पट्टी है.


ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट पर भारतीय सेना ने आधिकारिक तौर से कुछ भी कहने से मना किया है. लेकिन माना जा रहा है कि विदेश मंत्रालय इस खबर पर कोई टिप्पणी जारी कर सकता है. हालांकि, भारतीय सेना के सूत्रों ने एबीपी न्यूज को बताया कि भारत और चीन के बीच सरहद का मामला विवादित है, ये अभी तक नहीं सुलझा है. दोनों ही देश अपने अपने ‘परसेप्सन’ यानि नजरिए से सीमा को देखती हैं, ऐसे में कभी कभी ये विवाद हो जाते हैं. जानकारी के मुताबिक, चीनी सेना ने गल्वान घाटी में बड़ी तादाद में अपने टेंट गाड़ लिए हैं.


बता दें कि इस महीने भारत-चीन सीमा पर ये तीसरा बड़ा विवाद है. इससे पहले 5 मई की रात को लद्दाख के पेंगोंग-सो लेक (झील) के करीब विवादित फिंगर-एरिया में भी दोनों देशों के सैनिक आपस में भिड़ गए थे. इस भिड़ंत में दोनों देशों के बड़ी तादाद में सैनिक घायल हुए थे. हालांकि बाद में स्थानीय कमांडर्स ने मामला सुलझा लिया था. इसी तरह से 9 मई को उत्तरी सिक्किम के नाकूला दर्रे में भी सीमा विवाद में दोनों देशों के सैनिकों के बीच लात-घूंसे चले थे.


सीमा पर चीन से लगातार हो रहे विवाद पर एबीपी न्यूज ने राष्ट्र सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (नेशनल सिक्योरिटी एडवायजरी बोर्ड) के सदस्य, लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर) एस एल नरसिम्हन से खास बातचीत की. ले. जनरल नरसिम्हन ने बताया कि चीन के इलाके में पहले से हाईवे बने हुए हैं. अब भारत ने भी अपने क्षेत्र में सड़कें बना ली हैं. चीन मामलों के एक्सपर्ट माने जाने वाले ले. जनरल नरसिम्हन के मुताबिक इसके कारण सैनिकों की मूवमेंट ज्यादा हो गई है. यही वजह है कि पैट्रोलिंग के दौरान दोनों देशों के सैनिक एक दूसरे के सामने आ जाते हैं और फेसऑफ की स्थिति बन जाती है.


हाल ही में एबीपी न्यूज से खास बातचीत में थलसेना प्रमुख जनरल एम एण नरवणे ने कहा था, “इस तरह के फेस-ऑफ लोकल लेवल के हैं और इनसे निपटने के लिए दोनों देश की सेनाओं के बीच प्रोटोकॉल हैं जिसके तहत दोनों देशों के स्थानीय (फील्ड) कमांडर्स बातचीत करते हैं और मिलिट्री डेलीगेशन लेवल पर भी निपटाया जाता है.“ जनरल नरवणे के मुताबिक इस तरह के फेसऑफ अक्सर होते रहते हैं क्योंकि उनके (चीन) के सैनिक भी बॉर्डर पर तैनात हैं और हमारे भी. ऐसे में पैट्रोलिंग के दौरीन दोनों देशों के सैनिक एक-दूसरे के सामने आ जाते हैं, तो फेस-ऑफ होते रहते है. लेकिन उन्होंने ये भी कहा था कि जो भी घटनाएं दोनों (चीन और पाकिस्तान) बॉर्डर पर होती हैं उनपर हमारी नजर रहती है और उसके अनुसार अपने प्लान बनाते हैं, ताकि हमारा जो टास्क (कर्तव्य) है उसे ठीक प्रकार से करते रहें.


इस बीच सोमवार के रक्षा मंत्रालय ने सीमावर्ती इलाकों में सड़कों के जाल बिछाने को लेकर शेकतकर कमेटी के तीन बड़े सुझावों को मानने की मंजूरी दे दी. इसके तहत 100 करोड़ तक की सड़क को बीआरओ खुद बना सकेगी और इससे ऊपर के लिए अपना काम बीआरओ 'ओउटसोर्स' कर सकती है. साथ ही सड़क बनाने में आधुनिक तकनीक और मशीनरी को भी मंजूरी दी गई है.


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