दस साल पहले बैन हो चुका चीनी लहसुन भारत की सब्जी मंडियों में फिर से बिकना शुरू हो गया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी इस पर चिंता जताई है और उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र से पूछा है कि कैसे ये बाजारों में पहुंच गया, इसका स्त्रोत क्या है और क्या इसे रोकने के लिए कोई कवायद भी की गई है? साल 2014 में चीनी लहसुन को बैन करने का सबसे बड़ा कारण यही था कि ये बेहद खतरनाक है और इसमें इस्तेमाल होने वाले पेस्टीसाइड कई गंभीर बीमारियों के कारण बन सकते हैं.
चीन लहसुन का सबसे बड़ा उत्पादक है, लेकिन इसके लहसुन लेकर पता चला है कि इसमें पेस्टीसाइड्स का स्तर काफी ज्यादा होता है. दस साल बाद जब फिर से बाजारों में लहसुन दिखाई दिया तो एडवोकेट मोतीलाल यादव ने एक जनहित याचिका दाखिल की और चिंता जताई कि बैन के बावजूद ये बाजारों में कैसे पहुंच गया. चीनी लहसुन क्यों शरीर के लिए इतना खतरनाक है और ये कैसे पता चलेगा कि चीनी लहसुन कौन सा है, आइए जानते हैं.
चीनी लहसुन क्यों है इतना हानिकारक?
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, जादवपुर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने बताया है कि कीड़ों से बचाने के लिए छह महीनों तक इस पर मिथाइल ब्रोमाइड छिड़का जाता है, जिसकी वजह से इसमें पेस्टीसाइड का लेवल बहुत ज्यादा हो जाता है. इस वजह से इससे पेंट में इंफेक्शन और अल्सर जैसी बीमारियों का खतरा रहता है. ये किडनी पर भी बुरा असर ड़ालता है, लेकिन कीमत के मामले में यह देसी लहसुन से सस्ता है. यही वजह है कि प्रतिबंधों के बावजूद यह धड़ल्ले से बेचा रहा है.
एक और प्रोफेसर ने बताया कि चीनी लहसुन में वे लाभकारी चीजें मौजूद नहीं होती हैं, जो देसी लहसुन से मिलती हैं. एलीसीन (Allicin) नाम का बेहद महत्वपूर्ण पदार्थ इसमें नहीं होता. एलीसीन ब्लड प्रेशर को रेगुलेट करने में मदद करता है और साथ ही ये एक नेचुरल एंटीबायोटिक है, जो रोग प्रतिरोध क्षमता (Immunity Power) को बढ़ाता है. उन्होंने बताया कि चीनी लहसुन में इसकी मात्रा बेहद कम होती है. प्रोफेसर ने बताया कि चाइनीज गार्लिक पर हानिकारक क्लोरीन की कोटिंग की जाती है, जो इसे कीड़े-मकोड़ों से बचाती है और इसमें अंकुरण को रोकने के अलावा इसको सफेद रखने में भी मदद करती है.
चीनी लहसुन को कैसे पहचानें?
सब्जी मंडियों में लहसुन की बहुत वैराइटी दिखती हैं, ऐसे में बस कुछ बातों का ख्याल रखकर चीनी लहसुन खरीदने से बचा जा सकता है. यह रंग, आकार और गंध हर तरह से देसी लहसुन की तुलना में काफी अलग होता है. इसका कलर हल्का सफेद और गुलाबी होता है और साइज में काफी बड़ा होता है. इसकी कलियां आकार में बड़ी होती हैं. मतलब देसी कली की एक कली से यह दोगुनी या उससे भी ज्यादा बड़ी हो सकती है. वहीं, देसी लहसुन का रंग सफेद या ऑफ वाइट कलर हो सकता है, लेकिन आकार में छोटा होता है. इसके अलावा, चीनी लहसुन की गंध बहुत हल्की होती है, वहीं देसी गार्लिक तेज गंध वाला होता है.
चीनी लहसुन की बिक्री पर क्या बोला इलाहाबाद हाईकोर्ट?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के खाद्य सुरक्षा और औषधि प्रशासन विभाग के नामित अधिकारी को शुक्रवार (27 सितंबर, 2024) को तलब कर पूछा है कि बैन किया गया चीनी लहसुन अब भी बाजार में कैसे उपलब्ध है. कोर्ट की लखनऊ बेंच ने केंद्र की ओर से पेश हुए डिप्टी सॉलिसिटर जनरल सूर्य भान पांडेय से देश में ऐसी चीजों के प्रवेश को रोकने के लिए मौजूद सटीक व्यवस्था के बारे में भी सवाल किए और पूछा कि लहसुन कैसे देश में पहुंचा, उसका पता लगाने के लिए सरकार ने क्या किया है.
जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस ओ पी शुक्ला की पीठ ने याचिकाकर्ता मोतीलाल यादव की ओर से दायर जनहित याचिका (PIL) पर यह आदेश पारित किया. याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि चीनी लहसुन के हानिकारक प्रभावों के कारण देश में इस पर प्रतिबंध है. कोर्ट को बताया गया कि प्रतिबंध के बावजूद, लखनऊ सहित पूरे देश में ऐसा लहसुन आसानी से उपलब्ध है. याचिकाकर्ता ने अदालती कार्यवाही के दौरान जजों के समक्ष लगभग आधा किलो चीनी लहसुन के साथ-साथ सामान्य लहसुन भी पेश किया था.
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