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चीन का प्रोपेगेंडा वीडियो आया सामने, अक्साई-चिन में हेवी ट्रक, लाइट टैंक और स्ट्राईक-व्हीकल्स का काफिला दिखाई पड़ा

इंफो-वॉरफेयर चीनी सेना का एक बड़ा हथियार है. हाल ही में चीन में एक वीडियो काफी वायरल हो रहा है. जिसे चीन प्रोपोगेंडा के तौर पर इस्तमाल कर रहा है. डोकलाम विवाद के दौरान भी एक ऐसा ही वीडियो वायरल हुआ था. भारतीय फाइटर जेट्स का पैंगोंग-त्सो लेक एयर-स्पेस में कॉम्बेट-पैट्रोलिंगका वीडियो भी सामने आया है.

नई दिल्लीः लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन की सेनाओं के बीच तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा है. चीन के सैनिक अपने तंबू में ही जमे हुए हैं. वहीं चीन की तरफ से 'प्रोपोगेंडा' में कोई कमी नहीं आई है.

एक ऐसा ही वीडियो चीन ने वायरल किया है जिसमें पीप्लुस लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के हेवी-ट्रक, हल्के टैंक और आईसीवी व्हीकल्स का काफिला अक्साई-चिन की सड़कों पर दिखाई पड़ रहा है. हालांकि, आधिकारिक तौर से इस वीडियो के बारे में कुछ नहीं कहा जा रहा है, लेकिन सोशल मीडिया में इस वीडियो को लेकर कहा जा रहा है कि चीनी सेना का ये काफिला गैलवान घाटी की तरफ वास्तविक नियंत्रण रेखा की तरफ जा रहा है.

सूत्रों के मुताबिक, ये वीडियो विबो और दूसरे चीनी माइक्रो-ब्लॉगिंग साइट पर काफी वायरल हो रहा है. लेकिन भारतीय सेना के सूत्रों ने एबीपी न्यूज से साफ किया कि ये मात्र एक 'प्रोपेगेंडा वीडियो' है.

आपको बता दें कि जब भी भारत और चीन के बीच बॉर्डर पर तनाव होता है. चीन इस तरह के वीडियो को वायरल कर देता है, जिससे ये प्रतीत हो कि चीनी सेना भारत पर कभी भी हमला कर सकती है. वर्ष 2017 में भी डोकलम विवाद के दौरान एक ऐसा ही चीनी सेना का वीडियो वायरल किया गया था. जिसमें पीएलए सेना के बड़ी तादाद में ट्रक हाईवे पर दौड़ते हुए दिखाई पड़ रहे थे. उस वक्त भी कहा गया था कि चीनी सेना के ये ट्रक तिब्बत की राजधानी ल्हासा से चुंबी वैली की तरफ जा रहे हैं. चुंबी वैली के मुहाने पर ही डोकलाम इलाका है. हालांकि, बारीकी से देखने पर पता चलता है कि उस वीडियो में ग्राफिक्स का इस्तेमाल किया गया था.

ताजा वीडियो जो अक्साई-चिन का बताया जा रहा है. उसमें एक बड़ा सा ट्रक हल्की-हल्की बर्फ से ढके पहाड़ों की सड़क पर जा रहा है. फिर तुंरत ही वीडियो को एडिट यानि काट-छांट कर उसमें किसी दूसरी सड़क पर तेजी से दौड़ते लाइट-टैंक (हल्के टैंक) और स्ट्राईक व्हीकल्स दिखाई पड़ती हैं. साफ तौर से दो वीडियो को जोड़कर इस वायरल वीडियो को तैयार किया गया है. माना जा रहा है कि बड़े ट्रक में तोप हो सकती है. आपको बता दें कि हाल ही में भारत से सटे तिब्बत में चीनी सेना ने एक बड़ा युद्धभ्यास किया था. उस युद्धभ्यास में पहली बार चीनी सेना ने इन हल्के-टैंकों को परीक्षण किया था. साथ ही हल्की तोपों को भी टेस्ट किया गया था.

वीडियो में जो स्ट्राइक-व्हीकल्स दिखाई पड़ रही हैं वो ठीक वैसे ही हैं जैसाकि भारतीय सेना आईसीवी यानि इंफेंट्री कॉम्बेट व्हीकल्स इस्तेमाल करती है. मशीन-गन और एटीजीएम यानि एटीं-टैंक गाईडेड मिसाइल से लैस इन गाड़ियों का इस्तेमाल सैनिकों के मूवमेंट के लिए इस्तेमाल किया जाता है. क्योंकि चीनी सेना में भारतीय सेना की तरह इंफेंट्री-यूनिट्स यानि पैदल सैनिकों की रेजीमेंट नहीं होती है. अमेरिकी सेना की तर्ज पर चीनी सेना में सिर्फ मैकेनाइज्ड-इंफेंट्री रेजीमेंट्स होती हैं. भारतीय सेना में भी हालांकि मैकेनाइज्ड-इंफेंट्री रेजीमेंट हैं.

दरअसल, इन स्ट्राइक-व्हीकल्स का इस्तेमाल दुश्मन के इलाके में बेहद तेजी से सैनिकों को 'इंसर्ट' (यानि घुसाने) या यूं कहें कि स्ट्राइक करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

गुरूवार को एबीपी न्यूज ने आपको बताया था कि चीन की वॉर-ज़ोन कैम्पेन डॉक्ट्रिन में दूसरे चरण पर 'जीआईएसएफ रणनीति यानि गेनिंग इनिशेयटिव बाय स्ट्राईकिंग' फर्स्ट आती है. यानि दुश्मन के उस इलाके में तेजी से मूवमेंट की जाए जहां पहले से ही ड्रैगन के कुछ सैनिकों ने इलाके पर अपना कब्जा जमा रखा हो. डीसीडी यानि 'डोमेनेशन कम डिटरेंस' (ठीक वैसे ही जैसे हाल के दिनों में गैलवान घाटी या फिर फिंगर एरिया में चीनी सैनिक तंबू लगाकर जमे हुए हैं.)

यहां ये बात दीगर है कि चीन की पीलएए सेना की मिलिट्री-डॉक्ट्रिन में इंफो-वॉरफेयर या फिर साईक्लोजिकल-वॉरफेयर को बहुत तरजीह दी गई है. पहली बार ड्रैगन ने इसका खुलासा वर्ष 2004 में अपनी सेना के व्हाइट-पेपर में दिया था. हालांकि शुरूआत में इस नीति को साईक्लोजिकल-वॉरफेयर नाम दिया गया था, लेकिन अब इसे इंफॉरमेशन-वॉरफेयर या फिर इंफो-वॉरफेयर का नाम दिया गया है.

वर्ष 2015 में जब चीन की पीएलए सेना ने अपना पुनर्गठन किया और सेना को अलग-अलग थियेटर कमांड में बांटा तो इंफो-वॉरफेयर को स्ट्रेटेजिक-सपोर्ट फोर्स का हिस्सा बना दिया. हालांकि स्ट्रेटेजिक कमांड के अंतर्गत मिसाइल और परमाणु हथियार आते हैं लेकिन पीएलए ने स्ट्रेटेजिक-सपोर्ट फोर्स के अंतर्गत स्पेस, साईबर, इलेक्ट्रोनिक-वॉरफेयर और साईक्लोजिकल-वॉरफेयर को कर दिया.

भारत के थलसेनाध्यक्ष ने जो वर्ष 2012 में चीन की वॉर-जोन कैम्पेन डॉक्ट्रिन पर रिर्सच पेपर लिखा था, उसमें भी इस तरह के इंफो-वॉरफेयर का जिक्र था. उस पेपर में जनरल नरवणे (उस वक्त ब्रिगेडियर के पद पर थे) लिखा था कि चीनी सेना अपनी इस डॉक्टिन के तहत किसी छोटी सी भी जीत या विजय को भी मीडिया में इतना बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर सकती है. जिससे दुनिया को लगे कि चीन ने बहुत बड़ी राजनैतिक जीत हासिल की हो.

इस बीच लाइन ऑफ एक्युचल कंट्रोल यानि एलएसी के बेहद करीब पैंगोंग लेक की एयर-स्पेस में भारतीय व वायुसेना के फाइटर-जेट्स का वीडियो सामने आया है. भारत के ये लड़ाकू विमान पैंगोंग-त्सो लेक के ऊपर कॉम्बेट-एयर-पैट्रोल (सीएबी-कैब) करते नजर आ रहे हैं. इन फाइटर जेट्स की सुपरसोनिक बूम से पूरा इलाका गड़गड़ाहट से मानों हिलता हुआ नजर आ रहा है.

ये वीडियो ऐसे समय में आया है जब हाल ही में भारतीय सेना के एक बड़े कमांडर के हेलीकॉप्टर के पैंगोंग-त्सो लेक के करीब उतरने पर चीनी सेना के अटैक-हेलीकॉप्टर्स ने एलएसी पर मैन्युवर करने की कोशिश की थी. उसके बाद से ही भारतीय वायुसेना एलएसी के करीब कॉम्बेट एयर पैट्रोल कर रही है. ये एक एम्चोयेर वीडियो है और भारतीय वायुसेना की तरफ से इस वीडियो पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है.

गुरूवार को ही एबीपी न्यूज ने आपको बताया था कि किस तरह एलएसी से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर चीन ने तिब्बत में नगरी-गुंसा एयरपोर्ट को फाइटर-जेट के बेस में तब्दील कर दिया है. चीन के इस एयरबेस पर सैटेलाइट इमेज में चार चीनी फाइटर जेट्स साफ देखे जा सकता है.

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