नई दिल्ली: चीनी युआन वांग-श्रेणी के एक अनुसंधान पोत ने पिछले महीने मलक्का जलसंधि से हिंद महासागर क्षेत्र में प्रवेश किया था. क्षेत्र में तैनात भारतीय नौसेना के युद्धपोतों द्वारा लगातार इसे ट्रैक किया गया था. भारतीय नौसेना के जहाजों की लगातार निगरानी में रहने के बाद कुछ दिनों पहले यह जहाज चीन लौट गया.


बता दें कि इससे पहले सूत्रों ने ये जानकारी दी थी कि भारतीय नौसेना ने हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में अग्रिम पंक्तियों के युद्धपोतों और पनडुब्बियों को बड़ी संख्या में तैनात किया है ताकी चीन पर नजर रखी जा सके.






मल्लका जलसंधि चीन की ‘दुखती रग’


मल्लका जलसंधि हिंद महासागर में है और चीन का अधिकांश कारोबार इसी जलमार्ग से होता है. चीन को हमेशा इस बात का डर सताता रहता है कि अगर भारत के साथ तनाव ऐसे ही बढ़ते रहे तो भारत कहीं इस रास्ते को रोक न दें. अगर भारत ऐसा करता है तो चीन के लिए बहुत बड़ा झटका होगा.  2003 में ही चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति हू जिंताओ इस समुद्री रास्ते को लेकर अपनी चिंता जता चुके हैं. उन्होंने इसे मलक्का दुविधा कहा था.


चीन की करीब 80 फीसद तेल की आपूर्ति इसी मलक्का जलसंधि मार्ग से होती है. अगर भारत इस रास्ते को रोकता है तो चीन के जहाजों को लंबा रास्ता चुनना होगा और यह चीन के लिए एक बहुत बड़ा आर्थिक बोझ होगा. एक अनुमान के मुताबिक अगर यह रास्ता बंद होता है और चीन के जहाज ने लंबा रास्ता चुनते हैं तो चीन को एक साल में 84 अरब से लेकर 200 अरब डॉलर तक का आर्थिक नुकसान झेलना पड़ सकता है.


चीन अपनी इस कमोजरी को अच्छी तरह से जानता है और इसका विकल्प ढूंढने की कोशिश भी करता है. चीन थाइलैंड को साथ लेकर इस्थमस नहर बनाना चाहता है, जिसे थाई कैनाल के नाम से भी जाना जाता है.


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