प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने चिन्मयानंद यौन उत्पीड़न मामले में पीड़ित छात्रा की गिरफ्तारी पर रोक लगाने की अर्जी पर किसी तरह की राहत देने से सोमवार को इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट की तरफ से इस मामले का स्वतः संज्ञान लिए जाने के बाद जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस मंजू रानी चौहान की पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया.


पीड़ित छात्रा ने अपनी गिरफ्तारी पर रोक लगाने की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने कहा कि यदि पीड़िता कोई राहत चाहती है तो वह उचित पीठ के समक्ष नई याचिका दायर कर सकती है. कोर्ट ने कहा कि यह पीठ इस मामले में केवल जांच की निगरानी करने के लिए नामित की गई है और गिरफ्तारी के मामले में रोक लगाने का कोई आदेश पारित करना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है. इस मामले की सुनवाई के समय पीड़ित छात्रा भी कोर्ट में मौजूद थी.


कोर्ट ने चिन्मयानंद मामले में एसआईटी की प्रगति रिपोर्ट पर संतोष जताया और आगे की रिपोर्ट दाखिल करने के लिए 22 अक्तूबर की तारीख तय की. कोर्ट के सामने पीड़ित छात्रा ने दूसरी प्रार्थना यह की थी कि मैजिस्ट्रेट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज कराया गया बयान ठीक नहीं था और उसे नया बयान दर्ज कराने की अनुमति दी जाए. लेकिन कोर्ट ने उसकी यह प्रार्थना भी स्वीकार नहीं की.


कोर्ट का कहना था कि नए बयान के लिए आवेदन में संबंधित मजिस्ट्रेट के खिलाफ कोई आरोप नहीं लगाया गया है और न ही पीड़ित छात्रा का नया बयान दर्ज कराने के लिए कोई प्रावधान दर्शाया गया है. केवल यह आरोप लगाया गया है कि उसके बयान के प्रत्येक पेज पर उसके हस्ताक्षर नहीं लिए गए और केवल अंतिम पेज पर हस्ताक्षर लिए गए. उसका बयान दर्ज किए जाते समय एक महिला मौजूद थी. इस पर कोर्ट ने कहा कि उस महिला की तरफ से किसी तरह का हस्तक्षेप किए जाने संबंधी आरोप न होने से ऐसा लगता है कि चैंबर में महिला की मौजूदगी केवल इसलिए थी ताकि पीड़ित छात्रा अपना बयान दर्ज कराने के दौरान सहज और सुरक्षित महसूस कर सके.