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चिराग पासवान को दिल्ली हाई कोर्ट से झटका, चाचा पशुपति पारस को संसदीय दल का नेता चुने जाने के खिलाफ याचिका खारिज
कोर्ट ने कहा कि सदन के स्पीकर के पास सदन से संबंधित सभी फैसले लेने का पूरा अधिकार होता है. इस दलील के साथ दिल्ली हाई कोर्ट ने चिराग पासवान की याचिका को खारिज किया.
![चिराग पासवान को दिल्ली हाई कोर्ट से झटका, चाचा पशुपति पारस को संसदीय दल का नेता चुने जाने के खिलाफ याचिका खारिज Chirag Paswan's petition dismissed in Delhi High Court, dismisses petition against election of uncle Pashupati Paras as leader of parliamentary party चिराग पासवान को दिल्ली हाई कोर्ट से झटका, चाचा पशुपति पारस को संसदीय दल का नेता चुने जाने के खिलाफ याचिका खारिज](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2021/06/17/f504a80daca1b5030cc6f5c298b71c7e_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
नई दिल्ली: लोक जनशक्ति पार्टी में बने दो धड़ों का मामला दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचा. लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट से चिराग पासवान को बड़ा झटका लगा है. दिल्ली हाईकोर्ट ने चिराग पासवान की तरफ से दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें चिराग पासवान ने लोकसभा स्पीकर द्वारा पशुपति पारस को संसदीय दल के नेता के तौर पर मान्यता दी थी. याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि लोकसभा स्पीकर को सदन की कार्रवाई से जुड़े हुए फैसले लेने का पूरा अधिकार.
सुनवाई के दौरान दिल्ली हाई कोर्ट ने चिराग पासवान के वकील से पूछा कि आपकी पार्टी के कितने सांसद हैं. चिराग पासवान के वकील ने कहा कि मुझे मिलाकर कुल 6, जिस पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह आपकी पार्टी का अंदरूनी मसला है इसको पार्टी के भीतर ही सुलझाना चाहिए.
चिराग पासवान के वकील ने कहा कि हम यहां पर लोकसभा स्पीकर के आदेश को चुनौती देने के लिए आए हैं. चिराग पासवान के वकील ने कहा कि पार्टी की तरफ से 2019 में केंद्र चुनाव आयोग को भी बताया गया था कि चिराग पासवान ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. इसके साथ ही चिराग पासवान लोकसभा में पार्टी के नेता थे. पहले चिराग को गैर कानूनी तरीके से पार्टी के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया और बाद में जिन्होंने ऐसा किया वह खुद केंद्र सरकार में मंत्री बन गए.
चिराग के वकील ने कहा कि लोकसभा के स्पीकर का फैसला लोकसभा के नियमों के खिलाफ है. इसके बाद चिराग पासवान के वकील ने लोक जनशक्ति पार्टी के संविधान के बारे में कोर्ट में जानकारी दी. चिराग के वकील ने लोजपा के संविधान का हवाला देते हुए कहा कि संसदीय दल के नेता का चुनाव पार्लियामेंटरी बोर्ड की बैठक में होना चाहिए था. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. पार्टी के 5 सांसदों ने मिलकर लोकसभा स्पीकर को चिट्ठी दे दी और एक शख्स को संसदीय दल का नेता चुन लिया.
कोर्ट में मौजूद केंद्र सरकार के वकील ने कहा की इस याचिका में लोकसभा की स्पीकर को पक्षकार नहीं बनाया जा सकता. केंद्र सरकार के वकील ने कहा कि यह पार्टी का अंदरूनी मसला जिसको कोर्ट के ज़रिए सुलझाने की कोशिश की जा रही है. दिल्ली हाई कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए चिराग के वकील से कहा कि यह आपकी पार्टी का अंदरूनी मसला है. आखिर आप कोर्ट से क्या राहत की उम्मीद करते हैं.
चिराग के वकील ने कहा कि जिन लोगों ने लोकसभा स्पीकर को चिट्ठी भेजी थी, उन लोगों को पार्टी से निकाल दिया गया. ऐसे में उनका आप पार्टी सदस्य के तौर पर कोई अधिकार नहीं. दिल्ली हाई कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इस बाबत में आपने एक केंद्र चुनाव आयोग को भी शिकायत दी हुई है. लिहाज़ा केंद्रीय चुनाव आयोग को उस पर फैसला लेने दीजिए.
सुनवाई के दौरान लोकसभा स्पीकर की दर से पेश हो रहे वकील ने कोर्ट को बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अगर किसी सांसद को पार्टी से निकाल दिया जाता है, लेकिन वह अगर सदन का सदस्य रहता है तो उसको उसी पार्टी के सदस्य के तौर पर मान्यता मिलती है. भले ही भविष्य में वह उस राजनीतिक पार्टी से चुनाव ना लड़े. लेकिन जब तक सदन में है तब तक उसी पार्टी के प्रदेश प्रतिनिधि के तौर पर पहचान मानी जाती है.
हाई कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के हिसाब से भी अगर कोई सदस्य पार्टी से निष्कासित भी हो गया है, लेकिन वह सदन का सदस्य है तो उसको उसी पार्टी से संबंधित ही माना जाता है. इसके साथ ही सदन के स्पीकर के पास सदन से संबंधित सभी फैसले लेने का पूरा अधिकार होता है. इन्हीं सब दलीलों के साथ दिल्ली हाई कोर्ट ने चिराग पासवान की याचिका को खारिज किया.
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