(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
'मैं संसद में कंगना को ढूंढ रहा था क्योंकि...', बॉलीवुड टू पॉलिटिक्स कैसे हैं रिश्ते, चिराग पासवान ने बताया
अपने बॉलीवुड करियर पर बात करते हुए चिराग पासवान ने कहा कि वह अपनी फैमिली में पहली ऐसी जेनरेशन थे, जिसने बॉलीवुड में कदम रखा, लेकिन बहुत जल्दी ही उन्हें ये महसूस हो गया कि यह उनके लिए डिजास्टर है.
लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के सांसद चिराग पासवान ने बीजेपी की एमपी कंगना रनौत के साथ अपनी दोस्ती पर बात करते हुए कहा कि वह संसद में उनको ढूंढ रहे थे. उन्होंने बताया कि बॉलीवुड से ही दोनों की अच्छी दोस्ती है, लेकिन पिछले कुछ सालों से वह मिल नहीं पाए इसलिए वह मिलना चाहते थे.
न्यूज एजेंसी एएनआई के साथ इंटरव्यू में चिराग पासवान ने राजनीतिक और बॉलीवुड सफर के साथ कंगना रनौत के साथ अपनी दोस्ती पर भी बात की. उन्होंने कहा, 'कंगना इज ए गुड फ्रेंड. बॉलीवुड में और कुछ हो न हो, लेकिन कंगना के साथ एक अच्छी दोस्ती जरूर हो गई. वो एक अच्छी चीज थी. मैं संसद मे उनको ढूंढ रहा था, उनसे मिलने के लिए. पिछले 2-3 साल से मैं बहुत बिजी था क्योंकि कनेक्शन टूट गया था.'
उन्होंने आगे कहा कि ज्यादातर टाइम पर वह पॉलिटिकली सही नहीं होती हैं, लेकिन वह जिस तरह बोलती हैं और उनको पता होता है कि कहां क्या बोलना है, कब बोलना है. अब वो पॉलिटकली सही हो या न हो, वह डिबेटेबल हो सकता है, लेकिन ये उनकी यूएसपी है और इसलिए हम सब उनको इसके लिए पसंद करते हैं.
बॉलीवुड सफर पर बात करते हुए चिराग पासवान ने कहा कि वो अलग टाइम था. पता नहीं वो मुश्किल था या आसान था, लेकिन अलग समय था. उन्होंने कहा, 'मेरी फैमिली से कभी कोई बॉलीवुड में नहीं रहा है और मेरी सात पुश्तों का फिल्मों से कोई नाता नहीं रहा. ऐसे में मैं पहली ऐसी जेनरेशन थी, जिसने बॉलीवुड में कदम रखा, लेकिन बहुत जल्दी ही मुझे महसूस हो गया कि यह डिजास्टर है. देश को ये पता चलता, उससे पहले मुझे महसूस हो गया कि ये मैं डिजास्टर कर रहा हूं.'
चिराग पासवान ने आगे कहा कि उन्होंने अपने पापा को मंच पर खड़े होकर लंबे-लंबे भाषण देते हुए देखा था और फिल्में उन्हें लिखे हुए डायलॉग दिए जा रहे थे. उन्होंने कहा, 'वे मुझे लाइन के डायलॉग देते थे और मैं दो पेज का बोल देता था. वे मुझे कहते थे कि ऐसा नहीं बोलना है. फिर मुझे बहुत जल्दी महसूस हो गया कि ऐसे मेकअप करो और डायलॉग का रट्टा मारना, ये सब मुझसे नहीं हो सकता. आपने मुझे देखा होगा कि जब मैं संसद या रैलियों में बोलता हूं तो कभी पढ़कर नहीं बोलता. उसी वक्त जो मन में आता है वह बोलता हूं.'
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