CAA Rules Notified: सुप्रीम कोर्ट में दायर एक नयी याचिका में कहा गया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और उसके नियम पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के उत्पीड़ित गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों के जीवन, स्वतंत्रता और सम्मान के अधिकार की रक्षा के लिए लाए गए हैं. वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट का रुख करते हुए सीएए और इसके नियमों से जुड़े वाद में उन्हें पक्षकार बनाने का आवेदन दिया है.
वकील अश्विनी उपाध्याय के माध्यम से दायर इस नयी याचिका में विभिन्न आधारों पर इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) सहित विभिन्न याचिकाकर्ताओं की लंबित जनहित याचिकाओं को खारिज करने की मांग की गई है. सीएए को प्रभावी बनाने वाले नियमों के क्रियान्वयन पर रोक लगाने से इनकार करते हुए प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने 19 मार्च को केंद्र से इस मामले पर जवाब मांगा था.
11 मार्च को गृह मंत्रालय ने जारी की थी सीएए नियमों की अधिसूचना
इस बीच देखा जाए तो संसद की ओर से नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को पारित किए जाने के 4 साल बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 11 मार्च, 2024 को संबंधित नियमों की अधिसूचना के साथ नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 के कार्यान्वयन का मार्ग प्रशस्त कर दिया था. इस कानून में 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए गैर-मुस्लिम प्रवासियों को तेजी से भारतीय नागरिकता दिए जाने का प्रावधान शामिल है.
ममता बनर्जी कर रही हैं पहले से ही सीएए-एनआरसी का विरोध
उधर, सीएए के नियमों को अधिसूचित करने के बाद से कई राज्यों में विपक्षी सरकारों की ओर से विरोध भी किया जा रहा है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शुरुआत से ही कहती आ रही हैं कि वो इस कानून को बंगाल में लागू नहीं होने देंगी. गुरुवार (4 मार्च) को भी उन्होंने एक चुनावी रैली के दौरान जोर शोर से कहा कि वो बंगाल में सीएए और एनआरसी को लागू नहीं होने देंगी.
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