10 बड़ी बातें: नागरिकता कानून पर SC का अंतरिम आदेश से इनकार, चार हफ्ते में केंद्र से जवाब मांगा
सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन एक्ट पर तुरंत रोक लगाने की मांग को खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले दायर सभी 144 याचिकाओं पर केंद्र सरकार को जवाब देने के लिए 4 हफ्ते का समय दिया है.मामले को संवैधानिक पीठ के हवाले करने पर फैसला भी अगली सुनवाई में होगा.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज नागरिकता कानून पर दायर 144 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कोई भी अंतरिम आदेश देने से मना कर दिया. इसके साथ ही सभी याचिकाओं पर जवाब देने के लिए केंद्र सरकार को चार हफ्ते का वक्त दिया है. सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से जवाब देने के लिए छह हफ्ते का वक्त मांगा गया था जिस पर याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने आपत्ति जतायी थी. इसी के साथ एक और बड़ी खबर सामने आयी कि अब इस मामले पर देश के किसी भी हाई कोर्ट में सुनवाई नहीं होगी. पढ़ें सुनवाई से जुड़ी दस बड़ी बातें
1. चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े, जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने आज 144 याचिकाओं पर सुनवाई की. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम कुछ याचिकाओं को बड़ी बेंच के पास भेज सकते हैं. इस एटॉर्नी जनरल ने कहा कि 144 याचिकाएं हैं. हमें अभी तक 60 ही मिली हैं. हम उन्हीं पर जवाब दे पाए हैं. जब बाकी मिलेंगी तो जवाब देंगे.
2. वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा- आज आप यह तय कर दीजिए कि मामला संविधान पीठ में जाए या नहीं. हम रोक नहीं मांग रहे लेकिन नागरिकता देकर उसे वापस नहीं ले सकते. इसलिए कुछ आदेश होना चाहिए. इसके साथ ही सिंघवी ने कहा कि यूपी में 40 हज़ार की पहचान हुई है. सिब्बल ने इस पहलू पर खास तौर पर सुनवाई की तारीख तय करने की मांग की.
3. असम के एक पक्षकार के लिए पेश वकील विकास सिंह ने आज हैं अंतरिम आदेश की मांग की. अटॉर्नी जनरल ने कहा कि हमने इनकी याचिका भी नहीं देखी. चीफ जस्टिस ने कहा कि हम एकतरफा आदेश नहीं देंगे. विकास सिंह ने कहा कि 40 लाख लोगों को नागरिकता मिल जाएगी. इससे असम के कई इलाकों की डेमोग्राफी बदल जाएगी.
4. सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा- इस मामले को भी प्राथमिकता देनी होगी. वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि देर करने पर न बदली जा सकने वाली स्थिति हो जाएगी. इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि हर याचिका सरकार के पास जानी ज़रूरी है. राजीव धवन ने कहा कि संख्या से ज़्यादा विषय ज़रूरी है, हर पक्ष से वकीलों की सीमा तय करें. हमारी तरफ से सिर्फ सिब्बल ही जिरह करें तो मुझे दिक्कत नहीं.
5. एटॉर्नी जनरल ने कहा कि आप 144 से आगे किसी याचिका को लिस्ट न करने का आदेश दे दें, सॉलिसिटर जनरल ने भी सुझाव को दोहराया. इसके बाद कपिल सिब्बल ने फिर बोलना शुरू किया. सिब्बल ने कहा कि आज कम से कम संविधान पीठ के गठन का आदेश दे दीजिए. हम कानून पर रोक नहीं मांग रहे, आप उसके अमल को 2 महीने के लिए निलंबित कर दें. एटॉर्नी जनरल ने आप दूसरी तरह से रोक ही मांग रहे हैं. चीफ जस्टिस ने भी कहा कि ऐसा करना रोक लगाना ही माना जाएगा.
6. एक याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि लोगों की नागरिकता सरकारी बाबुओं के भरोसे छोड़ दी जाएगी. एटॉर्नी जनरल ने इसका विरोध किया. इसके बाद उन्होंने कुछ वकीलों ने असम से जुड़े मामलों को अलग से सुनने की मांग की. CJI ने उन याचिकाओं का ब्यौरा देने को कहा. चीफ जस्टिस ने CJI ने AG से पूछा- आप असम मामले पर कब जवाब देंगे? एटॉर्नी जनरल ने कहा दो हफ्ते में जवाब देंगे.
7. कपिल सिब्बल ने कहा कि यूपी में लोगों के नाम के आगे टिक और क्रॉस लगाया जा रहा है, इससे भय का माहौल है. यह सब 2 महीने के लिए रोक देने से क्या नुकसान हो जाएगा. सिब्बल ने यह भी कहा कि अभी कानून के नियम तय नहीं हैं लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने कार्यवाही शुरू कर दी है? एक वकील ने असम के साथ त्रिपुरा पर भी सुनवाई की मांग की, उन्होंने कहा कि अगर असम की तरह ही त्रिपुरा पर भी सुनवाई हो.
8. अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अभी भी हमें 84 याचिकाओं का जवाब देना होगा, इसमें 6 हफ्ते लगेंगे. याचिकाकर्ताओं की ओर से मौजूद वकीलों ने इतने समय की मांग का विरोध किया. इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट से बड़ी खबर निकल कर सामने आयी कि इस मामले में अब और याचिका स्वीकार नहीं की जाएगी. मौजूदा 144 याचिकाओं पर ही सुनवाई होगी.
9. सुनवाई में सभी पक्ष रकी दलील सुनने के बाद चीफ जस्टिस ने कहा कि हम सरकार को 6 नहीं, 4 हफ्ते देंगे, अभी कोई आदेश नहीं देंगे. सीजेआई ने कहा कि सभी याचिकाओं पर सरकार चार हफ्ते में जवाब दे. मामले की सुनवाई की प्रक्रिया तय करने के लिए जज वरिष्ठ वकीलों के साथ बैठक करेंगे. असम पर अलग से सुनवाई नहीं होगी.
10. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद याचिकाकर्ता तहसीन पूनावाला ने कहा- हम इसलिए रोक लगाने की मांग कर रहे थे कि यूपी में सरकार ने प्रक्रिया शुरू कर दी है. अगर किसी को नागरिकता दे दी गई तो फिर उससे वापस नहीं ली जा सकती. मुझे इस बात से कोई आपत्ति नहीं कि यह बेंच फैसला दे या संविधान पीठ फैसला दे, लेकिन इस कानून के अमल में आने से पहले इसके नियम कायदे जरूर बन जाने चाहिए.