नई दिल्ली: नागरिकता संशोधन बिल पर सोमवार को लोकसभा में बहस होने की संभावना है. उसी दिन मोदी सरकार बिल को लोकसभा से पारित भी करवाना चाहती है. लोकसभा में ख़ुद बीजेपी के पास बहुमत का आंकड़ा है लेकिन असल चुनौती राज्यसभा में है.


राज्यसभा में विपक्ष देगा चुनौती


लोकसभा के उलट राज्यसभा में एनडीए के पास ख़ुद का बहुमत नहीं है लिहाजा उसे दूसरे दलों के सहयोग की दरकार होगी. वैसे राज्यसभा का गुणा भाग देखें तो पता चलता है कि पिछले दो सालों में बीजेपी और एनडीए की ताक़त बेहतर हुई है और इसलिए नागरिकता संशोधन बिल के भी इस सदन से पारित होने की संभावना बढ़ गई है. अगर संख्या के लिहाज से समझें तो राज्यसभा में फ़िलहाल सदस्यों की कुल संख्या 239 है. मतलब ये कि अगर सदन के सभी सदस्य मतदान करें तो बहुमत के लिए 119 वोट की ज़रूरत पड़ेगी. अगर एनडीए के साथ उन दलों की बात करें जो एनडीए का सहयोग कर सकते हैं तो उनकी सम्भावित संख्या 114 बनती है. इनमें बीजेपी के 83, एआइएडीएमके के 11, बीजेडी के 7 और.अकाली दल के 3 सदस्य शामिल हैं.


विपक्ष के पास 108 वोट हैं


सरकार को विपक्ष की कड़ी चुनौती मिलने वाली है. कांग्रेस के 46, तृणमूल कांग्रेस के 13, सपा के 9, सीपीएम और डीएमके के 5-5 और आरजेडी, एनसीपी और बसपा के 4-4 सदस्यों समेत बाकी दलों को मिलाकर विपक्ष के पास कुल 108 सांसदों का समर्थन हासिल है. विपक्ष को पूर्वोत्तर राज्यों से ताल्लुक रखने वाली कुछ छोटी पार्टियों का समर्थन भी मिल सकता है जो इस बिल के विरोध में हैं.


जेडीयू और शिवसेना का रुख़ साफ़ नहीं


जेडीयू, शिवसेना और टीआरएस जैसी पार्टियों का रुख़ अभी पता नहीं है इसलिए फिलहाल उन्हें इसमें शामिल नहीं किया गया है. हालांकि इस बात की संभावना कम है कि तीनों ही पार्टियां सरकार के ख़िलाफ़ वोट करेंगी. इनके या तो सरकार के साथ वोट करने की संभावना है या फिर ये मतदान में हिस्सा नहीं लेंगीं. तीनों पार्टियों के कुल 15 सांसद हैं. अगर ये पार्टियां एनडीए के साथ जाती हैं तो उनकी संख्या बढ़कर 129 हो जाएगी जो बहुमत से ज्यादा है... लेकिन अगर ये मतदान में भाग नहीं लेती हैं तो बहुमत का आंकड़ा 112 हो जाएगा. वहीं पूर्वोत्तर से नाता रखने वाली पार्टी नगा पीपुल्स पार्टी के एकमात्र सांसद के भी वोटिंग में हिस्सा नहीं लेने की संभावना है.


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