नई दिल्ली: लोकसभा में नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 भारी हंगामे के बीच पेश किया गया. विपक्ष के सांसदों ने विधेयक को संविधान के विपरीत बताते हुए सदन में रखे जाने का विरोध किया. गृहमंत्री अमित शाह ने विपक्ष की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि नया कानून किसी भी तरह संविधान की न तो मूल भावना का विरोध है और न ही किसी अनुच्छेद के खिलाफ.
विपक्ष के सबसे बड़े दल कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि यह नया विधेयक भारत के संविधान की प्रस्तावना के ही खिलाफ है. अनुच्छेद 14 का हवाला देते हुए असम से सांसद गौरव गोगोई ने कहा कि अनुच्छेद 371 के प्रावधानों और असम समझौते की शर्तों के खिलाफ है. पूर्व विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर ने भी ने विधेयक को विभाजन के बाद बनाए गए भारत के धर्मनिरपेक्ष ढांचे के विरूद्ध करार दिया.
तृणमूल कांग्रेस नेता स्वागत रॉय ने सदन संचालन प्रक्रिया 72(1) का हवाला देते हुए कहा कि इस तरह के विरोध के मद्देनजर सदन में इस पर चर्चा न कराई जाए. इतना ही नहीं स्वागत रॉय ने गृहमंत्री ने तंज भी किया कि वो नए है इस सदन हैं और उन्हें केवल 6 महीने हुए हैं. उन्हें जानकारी की कमी है. हालांकि तृणमूल सांसद की इस टिप्पणी पर ऐतराज़ जताते हैं विपक्ष ने विरोध किया.
एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी नए कानून को संविधान की मूल भावना के खिलाफ दिया. हालांकि इन दलीलों का खंडन करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सदन को भरोसा दिया कि नया अधिनियम संविधान की भावना या अनुच्छेद के खिलाफ नहीं है. अनुच्छेद की समानता के प्रावधान में तार्क आधारित वर्गीकरण की भी जगह है. इसी के आधार पर इंदिरा गांधी ज़रकार ने 1959 की कट ऑफ डेट के साथ बांग्लादेश से आए नागरिकों को स्वीकार किया था. बाद में असम समझौते में भी 1971 की एक कट ऑफ डेट तय की गई बांग्लादेश से आए लोगों को नागरिकता देने के लिए. ऐसे में यह समझना ज़रूरी है कि नागरिकता देने के लिए एक तर्क आधारित वर्गीकरण तय करने का सरकार को अधिकार है.
महत्वपूर्ण है कि प्रस्तावित नागरिकता संशोधन विधेयक के आधार पर बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिन्दू, बौद्ध, सिख, जैन आदि धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत में आने पर नागरिकता दी जा सकेगी. शाह ने कहा कि इन तीनों देशों में उपरोक्ता धर्मावलंबियों के साथ धर्म के आधार पर प्रताड़ना हुई है.