नई दिल्ली: नीतीश कुमार के नये यू-टर्न के बाद से जेडीयू में तनातनी बढ़ गई है. पार्टी के कई बड़े नेता नागरिकता संशोधन बिल के ख़िलाफ़ हैं. लोकसभा में पार्टी पहले ही इसका समर्थन कर चुकी है. लेकिन क्या राज्य सभा में जेडीयू अपना स्टैंड बदल सकती है? पार्टी के कई सीनियर लीडर ऐसा ही चाहते हैं. राज्य सभा के एक सांसद चाहते हैं कि सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे. यानी पार्टी वोटिंग के दौरान राज्य सभा से वाक आउट कर जाये. तीन तलाक़ और 370 पर आए बिल पर भी जेडीयू ने लोकसभा में ऐसा ही किया था.
नागरिकता संशोधन बिल पर जेडीयू के अंदर सबसे पहले विरोध प्रशांत किशोर ने जताया. अमित शाह जब बिल पर जवाब दे रहे थे. पीके ने ट्वीट कर अपनी नाराज़गी सार्वजनिक कर दी. उन्होंने समर्थन के फ़ैसले को पार्टी के संविधान के ख़िलाफ़ बताया. खबर है कि ट्वीट करने से पहले पीके ने जेडीयू के कई नेताओं से बातचीत की. इनमें से अधिकतर बिल के विरोध में थे. लेकिन कोई भी नीतीश कुमार के फ़ैसले के ख़िलाफ बोलने को तैयार नहीं हुआ. आख़िर में प्रशांत किशोर को ही अपने मन की बात सोशल मीडिया में रखनी पड़ी. लेकिन अब तो कई और नेताओं की अंतरात्मा जगने लगी है.
जेडीयू के राष्ट्रीय महासचिव पवन कुमार वर्मा भी चाहते हैं कि फ़ैसले पर फिर से विचार हो. वे नागरिकता संशोधन बिल के ख़िलाफ़ हैं. राज्य सभा सांसद रह चुके वर्मा मानते हैं बिल का समर्थन कर पार्टी ने गलती की है. नीतीश सरकार में बिजेंद्र यादव बिजली मंत्री हैं. वे 1990 से लगातार विधायक चुने जाते रहे हैं. वे कहते हैं हम सब तो शुरूआत से इस बिल के ख़िलाफ़ रहे हैं. फिर समर्थन का फ़ैसला कब और कैसे हो गया, पता ही नहीं चला. पिछले साल सितंबर महीने में जेडीयू के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई थी. तब खुद नीतीश कुमार ने मंच से इसका विरोध किया था. कार्यकारिणी में विरोध का प्रस्ताव आम सहमति से पास हुआ था.
नीतीश के साथी एक कैबिनेट मंत्री अभी अपना नाम सार्वजनिक नहीं करना चाहते हैं. वे बोले नीतीश कुमार कब क्या कर लेते हैं, समझ में नहीं आता. उनके इस तरह यू-टर्न ले लेने से मैसेज अच्छा नहीं गया है. बिहार के उद्योग मंत्री श्याम रजक कहते हैं कि इस बिल को समर्थन देने पर पार्टी में कोई चर्चा नहीं हुई. मैं थोड़ी देर पहले ही मुंबई से लौटा हूं. लेकिन नागरिकता संशोधन बिल हमारी पार्टी के डीएनए से मैच नहीं करता है. जेडीयू के एक सांसद लोकसभा में बिल का समर्थन कर चुके हैं. लेकिन वे इसे सही नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि नीतीश जी को अपने फ़ैसले पर विचार करना चाहिए. वे कहते हैं कि साल 2016 से ही पार्टी इसका विरोध करती रही है. फिर अचानक से ऐसा क्या हो गया ? लेकिन जानकार बताते हैं कि नीतीश बिल के समर्थन के फ़ैसले से पीछे नहीं हटेंगे.
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