नई दिल्ली: नागरिकता संशोधन कानून पर फिलहाल रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि जनवरी में मामले की विस्तार से सुनवाई होगी. तभी कोई आदेश दिया जाएगा. इस मामले में दाखिल सभी याचिकाओं पर कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 22 जनवरी को होगी.


आज इस मामले में चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े, जस्टिस बी आर गवई और सूर्य कांत के सामने कुल 59 याचिकाएं सुनवाई के लिए लगी थीं. कांग्रेस नेता जयराम रमेश, AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी, तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा, आरजेडी नेता मनोज झा, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, जमीयत उलेमा ए हिंद जैसे पक्षकारों की तरफ से वकीलों की फौज कोर्ट में मौजूद थी. कोर्ट खचाखच भरा था. कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, राजीव धवन, इंदिरा जयसिंह, प्रशांत भूषण जैसे कई वकील अपनी बात रखना चाहते थे.


शुरूआत कपिल सिब्बल ने की. उन्होंने कानून को संविधान के खिलाफ बताया. उनका कहना था कि कानून समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करने वाला है. धर्म के आधार पर नागरिकता देने में भेदभाव की इजाजत नहीं दी जा सकती. उन्होंने कहा कोर्ट से सरकार से जवाब मांगने और कानून के अमल पर रोक लगा देने की मांग की.


केंद्र सरकार की तरफ से कोर्ट में मौजूद एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने इसका विरोध करते हुए कहा, "यह संसद से पूरी तरह सोच-विचार के बाद पास हुआ कानून है. इस पर रोक लगाने का कोई आदेश देने से पहले कोर्ट को विस्तार से सुनवाई करनी चाहिए." चीफ जस्टिस ने इससे सहमति जताते हुए कहा, "हम सभी याचिकाओं पर आप को नोटिस जारी कर रहे हैं. आप जनवरी के दूसरे हफ्ते तक इन पर जवाब दाखिल कर दें."


इसके बाद कई वकीलों ने एक साथ बोलना शुरू कर दिया. उनकी मांग थी कि सुप्रीम कोर्ट को तुरंत इस कानून पर रोक लगा देनी चाहिए. अपनी बात रखने के लिए पहले से खड़े एटॉर्नी जनरल ने इस पर मुस्कुराते हुए कहा, "मुझे लगता है कि भारत के सुप्रीम कोर्ट को भी पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के तरह यह नियम बना देना चाहिए कि एक बार में एक ही वकील बोल सकता है." इससे कोर्ट में हंसी की लहर फैल गई.


हालांकि, इसके बाद भी वकीलों ने बोलना जारी रखा. चीफ जस्टिस ने उन्हें चुप कराते हुए कहा, "हम सुनवाई की अगली तारीख दे चुके हैं. आपको यह समझना चाहिए कि अब यहां मामले की कोई सुनवाई नहीं हो रही है." नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने के लिए कोर्ट में आए वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा, "फिलहाल कानून को नोटिफाई नहीं किया गया है. ऐसे में इसके अमल पर रोक की मांग अभी तकनीकी रूप से की भी नहीं जा सकती."


कानून के समर्थन में कोर्ट पहुंचे वकील अश्विनी उपाध्याय ने एक सुझाव देते हुए कहा, "मैं दिल्ली के जामिया समेत कुछ ऐसे इलाकों में गया जहां कानून का विरोध हो रहा है. वहां मैंने पाया कि लोगों को कानून की जानकारी ही नहीं है. उन्हें पता ही नहीं है कि कानून में क्या लिखा गया है? वह नहीं जानते कि कानून से उनका कोई नुकसान नहीं है. सरकार को अखबारों में कानून की जानकारी छपवानी चाहिए. चीफ जस्टिस ने इस पर एटॉर्नी जनरल से राय पूछी. एटॉर्नी जनरल ने कहा, "यह एक अच्छा सुझाव है. इस पर विचार किया जाएगा."


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