नई दिल्ली: राज्यसभा का 31 जनवरी को शुरू हुआ सत्र बुधवार को अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गया. लगभग पूरा सत्र विभिन्न दलों के हंगामे की भेंट चढ़ गया. जिसकी वजह से सरकार कई महत्वपूर्ण विधेयक पास करवाने में नाकामयाब रही. जिसमें नागरिकता (संशोधन) विधेयक और तीन तलाक जैसा दो अहम बिल शामिल है. दोनों ही बिल को लोकसभा की मंजूरी मिल चुकी है लेकिन आज भी सरकार इसे राज्यसभा में पारित नहीं करवा सकी. तीन जून को 16 वीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने पर ये दोनों विधेयक निष्प्रभावी हो जायेंगे.


कांग्रेस, टीएमसी समेत अन्य विपक्षी पार्टियां तीन तलाक बिल को प्रवर समिति के पास भेजने की मांग कर रही है. आपको बता दें कि बिल में एक बार में तीन तलाक (तलाक ए बिद्दत) को गैरकानूनी कहा गया है और ऐसा करने पर पति को तीन साल की सजा का प्रावधान किया गया है.


तीन तलाक बिल को पिछले साल 27 दिसंबर को लोकसभा से मंजूरी मिली थी. तीन तलाक को अवैध घोषित कर इसे प्रतिबंधित करने वाले प्रावधानों को सरकार अध्यादेश के जरिये दो बार लागू कर चुकी है. इस अध्यादेश को विधेयक के रूप में पिछले साल सितंबर में पेश किया गया था जिसे लोकसभा से दिसंबर में मंजूरी मिली थी लेकिन इस विधेयक के राज्यसभा में लंबित होने के कारण सरकार को दोबारा अध्यादेश लागू करना पड़ा.


सरकार आज नागरिकता संशोधन विधेयक भी राज्यसभा में पास कराने में विफल रही. विधेयक के खिलाफ पूर्वोत्तर में भारी प्रदर्शन हो रहे हैं. सरकार का साथ दे रही जेडीयू भी बिल के खिलाफ है. वह राज्यसभा में बिल के खिलाफ वोट करेगी. इस बिल का विरोध करते हुए असम गण परिषद समेत कई दलों ने एनडीए का साथ छोड़ दिया है.


नागरिकता संशोधन विधेयक के कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को 12 साल की बजाय छह साल भारत में गुजारने पर भारतीय नागरिकता मिल जाएगी.


संसदीय नियमों के अनुसार राज्यसभा में पेश किये गये विधेयक लंबित होने की स्थिति में लोकसभा के भंग होने पर निष्प्रभावी नहीं होते हैं. वहीं लोकसभा से पारित विधेयक यदि राज्यसभा में पारित नहीं हो पाते हैं तो वह लोकसभा के भंग होने पर निष्प्रभावी हो जाते हैं. यानि अब दोनों ही बिल को नई यानि 17वीं लोकसभा में ले जाना होगा. लोकसभा से मंजूरी मिलने के बाद उसे दोबारा राज्यसभा में लाया जाएगा.