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पश्चिम बंगाल का नगर निकाय भर्ती घोटाला, जिसमें फंसे ममता बनर्जी के दो करीबी नेता, जानें क्या है पूरा मामला

सीबीआई का आरोप है कि साल 2014 और 2018 के बीच साजिश के तहत विभिन्न नगर निकायों में ग्रुप सी और ग्रुप डी पदों पर भर्तियां हुईं और गैरकानूनी तरीके से अयोग्य उम्मीदवारों को नियुक्त किया गया.

ममता बनर्जी के दो नेताओं के घर पर छापेमारी के बाद पश्चिम बंगाल की सियासत गरमा गई है. विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (BJP) और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (TMC) के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई. फिरहाद हकीम और मदन मित्रा के आवास पर सीबीआई ने रेड डाली है. फिरहाद हकीम को ममता बनर्जी का बेहद करीबी माना जाता है और पार्टी में भी उनका खास प्रभाव है. वह पश्चिम बंगाल सरकार में शहरी विकास और नगर निकाय मामलों के मंत्री हैं और कोलकाता के महापौर भी हैं. वहीं, मदन मित्रा उत्तर 24 परगना जिले के कामरहाटी से टीएमसी के विधायक हैं. 

यह छापेमारी नगर निकायों में की गई भर्तियों में गड़बड़ी के संबंध में हुई है. दोनों नेताओं के घर पर रविवार (8 अक्टूबर, 2023) को छापेमारी की गई और करीब साढ़े 9 घंटे सीबीआई की टीम उनके घर पर रही और दोनों नेताओं से पूछताछ की. राज्य में 12 लोकेशन पर सीबीआई ने रेड मारी है.

क्या है पश्चिम बंगाल के नगर निकायों में भर्ती में गड़बड़ी से जुड़ा पूरा मामला?
साल 2014 और 2018 के बीच नगर निकायों के ग्रुप सी और ग्रुप डी पदों पर भर्तियां हुई थीं, जिनमें अनियमितताएं पाई गई हैं. द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सीबीआई के एक अधिकारी ने बताया कि कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर ये छापेमारी हुई हैं. उन्होंने बताया कि विभिन्न नगरपालिकाओं, जिला प्राथमिक स्कूल परिषद और अन्य जगहों पर ग्रुप सी और ग्रुप डी में भर्तियों के लिए एक निजी कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट दिया गया था. प्रश्न पेपर बनाना, प्रिंटिंग, ओएमआर शीट की स्कैनिंग और फाइनल मेरिट लिस्ट बनाने तक का पूरा काम इस एक ही कंपनी को दिया गया था. अधिकारी ने बताया कि कोलकाता हाई कोर्ट ने कंपनी की निदेशक और अन्यों के खिलाफ एफआईर दर्ज करने का निर्देश दिया था, जिसके बाद  21 अप्रैल को केस फाइल किया गया. कंपनी पर आरोप है कि कंपनी के निदेशक ने सरकारी अधिकारियों के साथ मिलकर भर्तियों को लेकर साजिश रची, जिसके तहत पैसे के एवज में कई नगर पालिकाओं में अयोग्य उम्मीदवारों को गैरकानूनी तरीके पदों पर भर्ती कर लिया गया. सीबीआई का आरोप है कि 2014 से 2018 के बीच राज्य के विभिन्न नगर निकायों ने पैसों के एवज में लगभग 1,500 लोगों को अवैध रूप से नियुक्त किया था.

12 स्थानों पर हुई छापेमारी
भर्ती में गड़बड़ी से जुड़े मामले में दक्षिणी कोलकाता के चेतला इलाके में फिरहाद हकीम के आवास और  उत्तर 24 परगना जिले के भवानीपुर इलाके में मदन मित्रा के घर पर तलाशी ली गई. इनके अलावा,  कोलकाता, कांचरापाड़ा, बैरकपुर, हलिसहर, दमदम, उत्तरी दमदम, कृष्णानगर, ताकी, कामरहाटी, चेतला, भवानीपुर में अन्य लोकोशंस में भी छापेमारी हुई. अधिकारियों ने बताया कि जिन अन्य स्थानों पर सीबीआई ने छापेमारी की है, उनमें कांचरापाड़ा नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष सुदामा रॉय, हलिसहर नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष अंग्शुमन रॉय और कृष्णानगर नगर पालिका के पूर्व प्रमुख अशिम घोष के आवास शामिल हैं. हकीम के घर पर छापेमारी के खिलाफ समर्थक उनके घर के बाहर इकट्ठा हो गए और विरोध जताया. इससे पहले, गुरुवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मामले की जांच के सिलसिले में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री रथिन घोष के आवास सहित कई स्थानों की तलाशी ली थी.

छापेमारी पर क्या बोले फिरहाद हकीम
फिरहाद हकीम का कहना है कि बीजेपी राजनीतिक स्तर पर टीएमसी का सहारा नहीं ले सकती इसलिए केंद्रियों एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है. उन्होंने कहा, 'मैंने ऐसा क्या किया है कि मेरे साथ इस प्रकार का व्यवहार किया जाए? क्या मैं अपराधी हूं? क्या वे इस बात का कोई ठोस सबूत दे सकते हैं कि मैंने कुछ गलत किया है? क्या नगरपालिका अधिनियम के अनुसार नियुक्तियों में नगर निकाय मामलों के मंत्री की कोई भूमिका होती है? भाजपा के पास मेरे खिलाफ इस प्रकार अनुचित जांच करने का कोई उचित कारण नहीं है.' हकीम ने बीजेपी पर आरोप लगाया कि वह उन्हें और तृणमूल के अन्य नेताओं को निशाना बनाने के लिए केंद्रीय एजेंसियों का इसलिए इस्तेमाल कर रही है क्योंकि वे भाजपा के दबाव में नहीं आए. हकीम ने कहा, 'वे चुनाव नहीं जीत सकते और अब केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल करके हमें धमकाने का प्रयास कर रहे हैं. इसका कोई नतीजा नहीं निकलेगा और बीजेपी को एक बार फिर लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ेगा.'

छापेमारी के बाद सियासी बवाल शुरू
टीएमसी नेताओं पर सीबीआई की कार्रवाई के बाद सियासी बवाल मच गया है. सत्तारूढ़ टीएमसी और विपक्षी दल बीजेपी के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई है.  टीएमसी सांसद सौगत रॉय ने कहा, 'यह अभिषेक बनर्जी के नेतृत्व में राजभवन के बाहर जारी विरोध प्रदर्शन से जनता का ध्यान हटाने का प्रयास है. लगता है कि बीजेपी बढ़ते हुए सार्वजनिक असंतोष को भांप रही है, और वे विमर्श को बदलने के लिए हरसंभव तरीके का इस्तेमाल कर रहे हैं. यह प्रतिशोध की राजनीति का एक स्पष्ट उदाहरण है.' इन सभी आरोपों को खारिज करते हुए बीजेपी के प्रवक्ती समिक भट्टाचार्य ने कहा, 'अगर तृणमूल के पास कुछ भी छिपाने जैसा नहीं है, तो वह प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और सीबीआई से क्यों डर रही है.' भट्टाचार्य ने कहा, 'जब भी टीएमसी के नेताओं को ईडी और सीबीआई तलब करती है वे एजेंसियों के राजनीति से प्रेरित होने का आरोप लगाते हैं. फिर भी सच्चाई यही है कि तृणमूल भ्रष्टाचार में लिप्त है और पार्टी का लगभग हर नेता किसी न किसी आरोप का सामना कर रहा है.' इस मामले में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) भी टीएमसी पर हमलावर हो गई और उसका आरोप है कि नगर निकायों द्वारा की गई भर्तियों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है. माकपा की केंद्रीय समिति के सदस्य सुजान चक्रवर्ती ने दावा किया, 'राज्य सीआईडी के विफल होने पर केंद्रीय एजेंसियों ने यह कदम उठाया.'

(पीटीआई-भाषा इनपुट के साथ)

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