Gyanvapi Mosaque Case: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के आदेश के बाद ज्ञानवापी मामले की सुनवाई अब वाराणसी के जिला जज (District Judge) करेंगे. इस क्रम में आज एससी के आदेश के मद्देनजर केस से जुड़ी हुई सारी फाइलें वाराणसी सिविल कोर्ट ने वाराणसी जिला जज के कार्यालय को सुपुर्द कर दी हैं. ऐसा माना जा रहा है कि सोमवार से जिला जज इस मामले में सुनवाई शुरू कर सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में तात्कालीन जिला जज का ट्रांसफर करते हुए मामले की जटिलता के मद्देनजर, मामले से जुड़े सभी वाद और आवेदनों को जिला जज से ही सुनवाई करने का आदेश दिया था. 3 जजों की बेंच ने जिला जज से कहा है कि वह मुस्लिम पक्ष के उस आवेदन को प्राथमिकता से सुनें, जिसमें हिंदू पक्ष के वाद को सुनवाई के अयोग्य कहा गया है. वहीं इसी बीच आज शनिवार को अंजुमन इंतजामिया मसाजिद के सभी पदाधिकारियों के साथ वाराणसी के कमिश्नर ने बैठक की और उनसे शांति व्यवस्था बनाये रखने की अपील की.
क्या है एससी का अंतरिम आदेश ?
आपको बता दें कि शुक्रवार को जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, सूर्य कांत और पीएस नरसिम्हा की बेंच ने परिसर में यथस्थिति का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा है कि 17 मई को जो अंतरिम आदेश दिया गया था, वह अभी लागू रहेगा. इसके तहत शिवलिंग वाली जगह सुरक्षित रखी जाएगी. यानी वहां वज़ू नहीं होगा. परिसर में पहले की तरह नमाज़ पढ़ी जाती रहेगी. कोर्ट ने प्रशासन से कहा है कि वह वज़ू के लिए उचित इंतजाम करे. एससी जुलाई के तीसरे हफ्ते में सुप्रीम कोर्ट में मामले की अगली सुनवाई करेगा.
अंतरिम आदेश प्रभावी रहेगा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वाद को सुनवाई के अयोग्य बताने वाले आवेदन पर जिला जज के आदेश के 8 हफ्ते तक 17 मई का अंतरिम आदेश प्रभावी रहेगा. ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि आदेश से प्रभावित पक्ष को अपील के लिए ज़रूरी समय मिल सके.
क्या थी सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी ?
मुस्लिम पक्ष के वकील ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि एक्ट की धारा 3 के तहत किसी धार्मिक जगह का चरित्र नहीं बदला जा सकता. इस पर बेंच के अध्यक्ष जस्टिस चंद्रचूड़ ने उन्हें टोकते हुए कहा कि किसी जगह के धार्मिक चरित्र का पता लगाने का प्रयास धारा 3 का उल्लंघन नहीं है. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर किसी पारसी पूजा स्थल में ईसाई धार्मिक प्रतीक क्रॉस रखा हो और मामला कोर्ट में आ जाए, तो जज उस जगह के धार्मिक स्टेटस की जांच कर सकते हैं.
जजों ने यह भी साफ किया कि मामला ज़िला जज को भेजने का अर्थ यह नहीं है कि वह अब तक मामले को सुन रहे सीनियर डिवीजन सिविल जज के काम पर कोई नकारात्मक टिप्पणी कर रहे हैं. मामले के जटिल कानूनी सवालों को देखते हुए ज़िला जज के पास इसे भेजा जा रहा है क्योंकि उन्हें सिविल मामलों में 25 से 30 साल का अनुभव होता है.