दो साल पहले नगालैंड के मोन जिले में हुई 13 नागरिकों की मौत के मामले में सोमवार (15 जुलाई, 2024) को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस भेजा है. नगालैंड सरकार ने रिट पिटीशन दायर कर भारतीय सेना के उन 30 जवानों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग की है, जिनके मिलिट्री ऑपरेशन के विफल होने के कारण यह हादसा हुआ. यह घटना दिसंबर, 2021 में हुई थी.
राज्य सरकार ने केंद्र सरकार के 28 फरवरी के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें अभियोजन को आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट 1958 में दी गईं विशेष शक्तियों के तहत जवानों के खिलाफ मुकदमा चलाने से इनकार कर दिया गया था. मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने रक्षा मंत्रालय को नोटिस भेज कर 6 हफ्ते के अंदर जवाब देने को कहा है.
नगालैंड सरकार की तरफ से एडवोकेट केएन बालागोपाल ने कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि पुलिस के पास आरोपी सैनिकों के खिलाफ सबूत हैं, लेकिन केंद्र सरकार ने उनके खिलाफ मुकदमा चलाने से इनकार कर दिया. साल 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने इन 30 जवानों के खिलाफ यह देखते हुए आपराधिक मुकदमा चलाने पर रोक लगा दी थी, कि आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल प्रोटेक्शन एक्ट के तहत मंजूरी प्राप्त नहीं की गई है.
यह हादसा 4 दिसबंर, 2021 को हुआ था. जवानों पर आरोप है कि उनकी अंधाधुंध फायरिंग में स्थानीय नागरिकों की जान गई थी. जवानों ने नगालैंड के ओटिंग गांव खनिक ले जा रहे पिकअप ट्रक पर गोलियां चलाई थीं. राज्य सरकार का कहना है कि सेना ने एक कोयले की खदानों के मजदूरों से भरे वाहन पर बिना किसी पूछताछ के गोलियां चला दीं, जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई. वहीं, सेना ने अपने बयान में कहा कि सभी लोग बंदूक से लैस थे और काले कपड़े पहने हुए थे. आर्मी को देखते ही तेजी के साथ गाड़ी से कूद पड़े. गांव वालों और जवानों के बीच झड़प हुई, जिसमें 7 नागरिकों और एक जवान की जान चली गई.
राज्य सरकार ने कहा कि जवानों को इस इलाके की जानकारी नहीं है, यहां बंदूक लेकर घूमना आम बात है. बाद में इंडियन पीनल कोड, 1860 के सेक्शन 302, 307, 326, 201, 34 और 120-B के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी. नगालैंड विधानसभा में सर्वसम्मित से एक प्रस्ताव भी पास किया गया, जिसमें भारत सरकार से उत्तरी पूर्व और खासतौर से राज्य से आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट 1958 को रद्द किए जाने की मांग की गई थी.