सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (27 सितंबर, 2024) को आयुर्वेदिक डॉक्टरों की याचिका पर सुनवाई करते हुए राजस्थान सरकार के रवैये पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने मामले पर बेहद अहम टिप्पणी की और कहा कि आयुर्वेदिक डॉक्टरों के साथ सौतेलेपन वाला व्यवहार क्यों किया जा रहा है. मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ राजस्थान सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. यह मामला आयुर्वेदिक डॉक्टरों से जुड़ा है, जिन्हें पांच महीने से सैलरी नहीं मिली है. राजस्थान में रिटायरमेंट की एज लिमिट बढ़ाए जाने के राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश के बाद डॉक्टरों की उम्र सीमा तो बढ़ा दी गई, लेकिन उन्हें 5 महीने से सैलरी नहीं मिली है.


हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार को फटकार लगाई है. प्रतिवादियों ने एलोपैथिक डॉक्टरों के रिटायरमेंट की उम्र सीमा बढ़ाए जाने और आयुर्वेदिक डॉक्टरों के लिए ऐसा नहीं करने पर आपत्ति जताई थी. उनका कहना है कि ऐसा करके भेदभावपूर्ण रवैया अपनाया गया है.


सीजेआई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस मनोज मिश्रा भी सुनवाई कर रहे थे. राजस्थान सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दाखिल की थी, जिसमें हाईकोर्ट ने सरकार को एलोपैथिक डॉक्टरों की तरह रिटायरमेंट के लिए ऐज लीमिट बढ़ाने का निर्देश दिया गया था. कोर्ट के वकील ने बताया कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद उम्र की सीमा तो बढ़ा दी गई, लेकिन उन्हें पांच महीने से वेतन नहीं मिला है.


सीजेआई चंद्रचूड़ की बेंच ने सैलरी में देरी के मामले को गंभीरता से लेते हुए कहा कि आयुर्वेदिक डॉक्टर भी काम कर रहे हैं तो फिर उनके साथ ये सौतेलेपन वाला व्यवहार क्यों हो रहा है. सरकार ने अब तक उन्हें सैलरी क्यों नहीं दी है. कोर्ट ने राजस्थान सरकार से कहा कि वह प्रतिवादियों और बाकी डॉक्टरों को भी वही सैलरी दें, जो उसी पद के एलोपैथिक डॉक्टर्स को दी जाती है. कोर्ट ने एक हफ्ते के अंदर सैलरी डॉक्टर्स को मुहैया कराने का आदेश दिया है. 


28 फरवरी को राजस्थान हाईकोर्ट ने आयुर्वेदिक डॉक्टरों की रिटायरमेंट की उम्र एलोपैथिक डॉक्टर्स के बराबर करने के लिए डाली गई रिट याचिकाओं को अनुमति दे दी थी. कोर्ट को बताया गया कि 31 मार्च 2016 को एलोपैथिक डॉक्टर्स की रिटायरमेंट एज लिमिट 60 साल से बढ़ाकर 62 साल कर दी गई थी. याचिका में कहा गया कि रिटायरमेंट की उम्र में यह चयनात्मक व्यवहार आयुर्वेदिक डॉक्टरों के साथ भेदभावपूर्ण रवैये को दिखाता है, जो संविधान के आर्टिकल 14 का उल्लंघन है.


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