सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (5 अगस्त, 2024) को पश्चिम बंगाल सरकार से 77 जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल करने के फैसले को लेकर डेटा मांगा और पूछा कि क्या आयोग ने इन जातियों को ओबीसी में वर्गीकृत किया है. बंगाल सरकार ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. हाईकोर्ट ने वभिन्न जातियों को पिछड़ा वर्ग में शामिल करने का ममता बनर्जी सरकार का फैसला रद्द कर दिया था. इसे लेकर बंगाल सरकार की वकील ने कोर्ट में सवाल किया कि क्या हाईकोर्ट राज्य में सरकार चलाना चाहता है. 


पश्चिम बंगाल सरकार ने कई जातियों को आरक्षण का लाभ देने के लिए उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की सूची में शामिल किया था. जिन 77 जातियों को ओबीसी सूची में शामिल किया गया, उनमें ज्यादातर मुस्लिम हैं. हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल में कई वर्गों को 2010 से दिए गए ओबीसी के दर्जे को 22 मई में खत्म कर दिया था और राज्य में सेवाओं और पदों में रिक्तियों के लिए इस तरह के आरक्षण को अवैध बताया था.


इसे लेकर पश्चिम बंगाल सरकार की वकील इंदिरा जैसिंग ने कहा, 'ये सब क्यों हो रहा है... क्योंकि वे मुस्लिम हैं? और वे इसके पीछे धर्म को वजह बताते हैं, जो सरासर झूठ है. उनका कहना है कि रिजर्वेशन इसलिए किया गया क्योंकि यहां मुस्लिम हैं. हमने कई रिपोर्ट देकर बताया है कि सभी समुदायों पर विचार किया गया और मंडल कमीशन का भी ख्याल रखा गया है. राज्य सरकार प्रदेश को चलाना चाहती है, लेकिन अगर कोर्ट इसे चलाना चाहता है तो उसे चलाने दें. क्या हमें चलाना चाहिए, प्लीज बताइए.'


मुख्य न्यायाधिश डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच सुनवाई कर रही थी. सीजेआई चंद्रचूड़ ने राज्य सरकार से कहा कि जातियों की पहचान के लिए आयोग के साथ विचार-विमर्श किया गया या कोई सर्वे किया गया तो बताएं. राज्य सरकार को यह स्पष्ट करना जरूरी है. सीजेआई चंद्रचूड़ ने आगे हाईकोर्ट के आदेश का जिक्र करते हुए कहा कि आयोग ने जातियों को वर्गीकृत किया या नहीं या किसी सर्वे के डेटा का इस्तेमाल हुआ या नहीं, इस मामले में मुद्दा है, लेकिन रिजर्वेशन को रद्द किए जाने के फैसले के क्रांतिकारी प्रभाव हो सकते हैं.    


पीठ ने कहा, '......(राज्य सरकार द्वारा दायर निर्णय के) स्थगन आवेदन सहित नोटिस जारी करें. पश्चिम बंगाल कोर्ट के समक्ष हलफनामा दायर करेगा, जिसमें 77 समुदायों को ओबीसी का दर्जा देने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया की व्याख्या होनी चाहिए: (एक) सर्वेक्षण की प्रकृति (दो) क्या 77 समुदायों की सूची में किसी भी समुदाय के संबंध में आयोग (राज्य पिछड़ा समिति) के साथ परामर्श का अभाव था.'


पीठ ने यह भी पूछा कि क्या ओबीसी के उप-वर्गीकरण के लिए राज्य द्वारा कोई परामर्श किया गया था.  हाईकोर्ट ने कहा था कि इन समुदायों को ओबीसी का दर्जा देने के लिए वास्तव में धर्म ही एकमात्र आधार रहा है. अदालत ने यह भी कहा था कि उसका यह मानना ​​है कि मुसलमानों की 77 जातियों को पिछड़ा घोषित करना समग्र रूप से मुस्लिम समुदाय का अपमान है. हाईकोर्ट ने अप्रैल और सितंबर 2010 के बीच 77 जातियों को दिए गए आरक्षण को और 2012 के कानून के आधार पर बनाए गए 37 वर्गों को रद्द कर दिया था.


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