खाना बनाने से सफाई तक... जेलों में जातिवाद से बेहद खफा हैं CJI चंद्रचूड़, क्या बदले जाएंगे नियम
याचिका में कहा गया कि अपराधी और दोबारा दोषी ठहराए गए अपराधियों के बीच अंतर किया जाता है. आदतन डाकू, सेंध लगाना, डकैती करने वाले अपराधियों को अलग श्रेणियों में विभाजित कर अन्य दोषियों से अलग रखते हैं.
सुप्रीम कोर्ट गुरुवार (3 अक्टूबर, 2024) को उस याचिका पर अपना फैसला सुनाएगा, जिसमें आरोप लगाया गया है कि कुछ राज्यों की जेल नियमावली जाति के आधार पर भेदभाव को बढ़ावा देती हैं.
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड की गई तीन अक्टूबर की वाद सूची के अनुसार मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ इस याचिका पर फैसला सुनाएगी. कोर्ट ने इस साल जनवरी में केंद्र और उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल समेत 11 राज्यों से याचिका पर जवाब मांगा था.
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील की इस दलील पर गौर किया कि इन राज्यों की जेल नियमावलियां जेलों के अंदर काम के आवंटन में भेदभाव करती हैं और कैदियों को रखने का स्थान उनकी जाति के आधार पर तय होता है. याचिका में केरल की जेल के नियमों का हवाला दिया गया और कहा गया कि वे आदतन अपराधी और दोबारा दोषी ठहराए गए अपराधी के बीच अंतर करते हैं और कहते हैं कि जो लोग आदतन डाकू, सेंध लगाने वाले, डकैत या चोर हैं, उन्हें अलग अलग श्रेणियों में विभाजित किया जाए और अन्य दोषियों से अलग रखा जाए.
इसमें दावा किया गया कि पश्चिम बंगाल जेल संहिता में कहा गया है कि जेल में काम जाति के आधार पर किया जाना चाहिए, जैसे खाना पकाने का काम प्रमुख जातियों के कैदी करें और सफाई का काम विशेष जातियों के कैदियों से करवाया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और अन्य को नोटिस जारी करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से महाराष्ट्र के कल्याण की मूल निवासी सुकन्या शांता की ओर से दायर याचिका में उठाए गए मुद्दों से निपटने में सहायता करने को कहा था.
बेंच ने याचिकाकर्ता के वकील की इन दलीलों पर गौर किया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से तैयार किए गए मॉडल जेल मैनुअल के अनुसार राज्य जेल मैनुअल में किए गए संशोधनों के बावजूद, राज्यों की जेलों में जातिगत भेदभाव किया जा रहा है.
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