तीन नए आपराधिक कानूनों को लेकर जारी बहस के बीच भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने मंगलवार (3 जुलाई, 2024) को इन पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया और कहा कि इन कानूनों से उत्पन्न मुद्दे सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं.


तीन नए कानून भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) एक जुलाई से पूरे देश में लागू हो गए और इन कानूनों ने क्रमश: भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम का जगह ली है.


हाल ही में नए कानूनों पर रोक लगाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई थी. इसमें इन कानूनों में कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.


दिल्ली में निचली अदालत की नई इमारतों के लिए कड़कड़डूमा, शास्त्री पार्क और रोहिणी में शिलान्यास समारोह के बाद मीडिया से बातचीत में मख्य न्यायाधीश ने कहा, 'ये मुद्दे सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं, हो सकता है कि अन्य उच्च न्यायालयों में भी लंबित हों. इसलिए मुझे ऐसी किसी चीज पर नहीं बोलना चाहिए, जिसके अदालत के समक्ष आने की संभावना हो.'


कार्यक्रम में अपने भाषण में चीफ जस्टिस ने कहा कि अदालतें केवल संविधान का पालन करती हैं और वादकारियों के अलावा किसी और की सेवा नहीं करती हैं. उन्होंने कहा, 'हमारी अदालतें केवल संप्रभु सत्ता का केंद्र नहीं हैं, बल्कि आवश्यक सार्वजनिक सेवा प्रदाता भी हैं.'


सोमवार को तीनों कानून देशभर में लागू कर दिए गए और अब से सभी नई प्राथमिकताएं बीएनएस के तहत दर्ज की जाएंगी. हालांकि, जो मामले कानून लागू होने से पहले दर्ज किए गए हैं उनके अंतिम निपटारे तक उन मामलों में पुराने कानूनों के तहत मुकदमा चलता रहेगा.


नए कानूनों से एक आधुनिक न्याय प्रणाली स्थापित होगी जिसमें जीरो एफआईआर, पुलिस में ऑनलाइन शिकायत दर्ज कराना, इलेक्ट्रॉनिक माध्यम जैसे कि एसएमएस के जरिए समन भेजने और सभी जघन्य अपराधों के वारदात स्थल की अनिवार्य वीडियोग्राफी जैसे प्रावधान शामिल होंगे.


केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि नए कानून न्याय मुहैया कराने को प्राथमिकता देंगे, जबकि ब्रिटिशकाल में कानूनों में दंडनीय कार्रवाई को प्राथमिकता दी गई थी. नए कानूनों के तहत आपराधिक मामलों में फैसला मुकदमा पूरा होने के 45 दिन के भीतर आएगा और पहली सुनवाई के 60 दिन के भीतर आरोप तय किए जाएंगे.


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