CJI DY Chandrachud On Same Sex Marriage: चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि अगले हफ्ते सोमवार (24 अप्रैल) से ही संविधान पीठ समलैंगिक शादी का मामला सुनने के लिए बैठ जाएगी. दरअसल, सोमवार और शुक्रवार को संविधान पीठ नहीं बैठती है. आम तौर पर मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को ही ऐसी बेंच की कार्यवाही होती है. चीफ जस्टिस ने समलैंगिक विवाह के मामले की तेज़ सुनवाई को ज़रूरी मानते हुए कहा है कि अयोध्या मामले में भी पूरे हफ्ते 5 जजों की बेंच बैठती थी.


सुनवाई टालने से कर चुके हैं इनकार
18 अप्रैल को जब यह सुनवाई शुरू हुई थी, तब केंद्र सरकार ने कहा था कि कोर्ट रूम में बैठे कुछ विद्वान लोग पूरे समाज के लिए फैसला नहीं ले सकते. समलैंगिक विवाह के मसले पर विचार करने की सही जगह संसद है. लेकिन उस दिन भी चीफ जस्टिस ने कहा था कि सुनवाई टालने के अलावा दूसरी कोई मांग सरकार करे. अगले दिन यानी 19 अप्रैल को सरकार ने सभी राज्यों को नोटिस जारी कर उनका भी पक्ष सुनने की मांग की. लेकिन कोर्ट ने इस पर भी कोई आदेश नहीं दिया.


'सोशल मीडिया में जजों की हो रही है ट्रोलिंग'
5 जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस ने सोशल मीडिया में हो रही जजों की आलोचना पर भी चर्चा की. उन्होंने कहा कि समलैंगिक शादी पर जजों की टिप्पणियों पर सोशल मीडिया में उन्हें 'ट्रोल' किया जा रहा है. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. दरअसल, सबसे ज़्यादा आलोचना चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की उसी टिप्पणी की हो रही है जिसमें उन्होंने कहा था कि पूरी तरह पुरुष या स्त्री होने की कोई अवधारणा नहीं है. सिर्फ शरीर का लिंग इसे तय नहीं करता. यह इससे जटिल विषय है.


'जल्दी खत्म करें बहस'
चीफ जस्टिस ने अगले हफ्ते लगातार सुनवाई की बात तब कही जब याचिकाकर्ता पक्ष के वकील अपनी जिरह खत्म नहीं कर पा रहे थे. उनका कहना था कि याचिकाकर्ताओं को 3 दिन दिए गए. यहां सिर्फ स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव कर समलैंगिक शादी की भी व्यवस्था बनाने के सवाल पर विचार किया जा रहा है. इसमें इतनी लंबी जिरह की कोई ज़रूरत नहीं. उन्होंने कहा कि बेहतर होगा कि याचिकाकर्ता आज अपनी बहस पूरी करें. फिर सरकार और इस मांग का विरोध कर रहे संगठन अगले गुरुवार तक अपनी बात पूरी कर सकें. हालांकि, याचिकाकर्ता पक्ष की जिरह खत्म न हो पाने के चलते सोमवार को भी उन्हें मौका मिलेगा. इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता कि सुनवाई अगले हफ्ते खत्म हो जाएगी.


बच्चों के मानसिक विकास पर टिप्पणी
जस्टिस संजय किशन कौल, एस रविंद्र भट, पी एस नरसिम्हा और हिमा कोहली के साथ बैठे चीफ जस्टिस ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की दलील पर भी टिप्पणी की. NCPCR ने बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास के मद्देनजर समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोद देने का विरोध किया है. चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर कोई पिता शराब पीकर अपनी पत्नी से मारपीट करता है, तो क्या बच्चों पर उसका असर नहीं पड़ता?


'सिर्फ बड़े शहरों तक सीमित नहीं मामला'
इससे पहले कोर्ट ने सरकार की इस दलील को भी ठुकरा दिया था कि समलैंगिक शादी सिर्फ कुछ शहरी अभिजात्य (elite) लोगों का विचार है. चीफ जस्टिस ने कहा था कि सरकार ने ऐसा कोई आंकड़ा नहीं दिया है, जिससे इस बात को साबित किया जा सके.


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