20 से 30 साल सेवा के बाद सिर्फ 20 हजार की पेंशन, जजों के हाल पर दुखी होकर क्या बोले CJI डीवाई चंद्रचूड़
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र से इस मसले का न्यायगत समाधान निकालने के लिए कहा. उन्होंने कहा कि लंबी सेवा के बाद जजों को इतनी कम पेंशन मिल रही है.
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देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) ने सोमवार (26 फरवरी) को रिटायर जजों की पेंशन को लेकर चिंता जताई. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में जिला जजों की ओर से दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई चल रही थी. इस दौरान सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जिला न्यायिक अधिकारियों को 20 से 30 साल की सेवा देने के बाद इतनी कम पेंशन मिलती है. उन्होंने केंद्र से इस मुद्दे का न्यायसंगत समाधान तलाशने को कहा.
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मामले में अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी की सहायता मांगी. इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि रिटायर जिला न्यायिक अधिकारियों को 19,000-20,000 रुपये की पेंशन मिल रही है.
क्या बोले CJI डी वाई चंद्रचूड़?
बेंच ने कहा, 'रिटायर जजों को लंबी सेवा के बाद 19,000-20,000 रुपये की पेंशन मिल रही है, उनका गुजारा कैसे होगा? यह ऐसा पद है जहां आप कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं हैं. आप अचानक वकालत के पेशे में नहीं जा सकते और 61-62 साल की उम्र में हाईकोर्ट जाकर वकालत नहीं शुरू कर सकते हैं.' विषय में न्याय मित्र नियुक्त किए गए वकील के. परमेश्वर ने सुनवाई के दौरान कहा कि जजों की न्यायिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त पेंशन आवश्यक है.
देश भर में न्यायिक अधिकारियों की सेवा शर्तों में एकरूपता बनाए रखने की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले न्यायिक अधिकारियों के लिए दूसरे राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग के अनुरूप वेतन, पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभों से जुड़े आदेशों के क्रियान्वयन की निगरानी के लिए दो न्यायाधीशों की एक समिति गठित करने का निर्देश दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कानून के शासन में आम लोगों के विश्वास को बनाए रखने के लिए आवश्यक न्यायिक स्वतंत्रता को तभी सुनिश्चित किया जा सकता है जब न्यायाधीश वित्तीय गरिमा की भावना के साथ अपना जीवन-यापन कर सकते हों. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि अन्य सेवाओं के अधिकारियों ने एक जनवरी 2016 तक अपनी सेवा शर्तों में संशोधन का लाभ उठाया है, लेकिन न्यायिक अधिकारियों से संबंधित इसी तरह के मुद्दे इसके आठ साल बाद अब भी अंतिम निर्णय का इंतजार कर रहे हैं.
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