'पंडित पूजा करके दक्षिणा न लें तो...', पादरियों की सैलरी पर CJI चंद्रचूड़ ने क्यों कही ये बात?
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कानून को एकसमान लागू करने पर जोर देते हुए कहा कि जो भी व्यक्ति नौकरी करता है वह टैक्स के अधीन है.
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (7 नवंबर, 2024) को उन 93 याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिनमें चर्च की नन और पादरियों की सैलरी पर लगने वाले टैक्स डिडक्शन को चुनौती दी गई है. कोर्ट ने कहा कि नियम सबके लिए समान हैं. उन्होंने कहा कि अगर मंदिर में भी पुजारी को नियुक्त किया जाए, तो उन्हें सैलरी दी जाएगी और टैक्स भी काटा जाएगा.
मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच सुनवाई कर रही थी. ये याचिकाएं मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ दाखिल की गई थीं, जिसमें नन और पादरियों की सैलरी पर टैक्स डिडक्शन एट सोर्स (TDS) लगाना अनिवार्य बताया गया है.
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील ने कोर्ट में दलील दी कि नन और पादरी सहायता प्राप्त संस्थानों में पढ़ाकर जो सैलरी कमाते हैं वह कॉन्वेंट को सौंप दी जाती है इसलिए उनकी सैलरी अपनी नहीं रहती है. इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि सैलरी तो उनके पर्सनल अकाउंट में ट्रांसफर की जाती है.
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, 'उन्हें सैलरी दी जाती है, लेकिन उन्होंने यह जीवन चुना है और वह कहते हैं कि मैं ये सैलरी नहीं लूंगा/ लूंगी क्योंकि परिश में रहने पर वह पर्सनल इनकम नहीं रख सकते... लेकिन यह सैलरी पर लगने वाले कर को कैसे प्रभावित कर सकता है? टीडीएस तो काटा ही जाएगा?' उन्होंने कानून को एकसमान लागू करने पर जोर देते हुए कहा कि जो भी व्यक्ति नौकरी करता है वह टैक्स के अधीन है.
सीजेआई चंद्रचूड़ ने आगे यह भी कहा कि अगर कोई हिंदू पुजारी कहे कि मैं सैलरी नहीं लूंगा और पूजा करने वाली सैलरी किसी संगठन को दे दूंगा... तो ये उनकी मर्जी है, लेकिन अगर कोई व्यक्ति नौकरी करता है और सैलरी लेता है तो उसको टैक्स देना होगा. कानून सबके लिए एक बराबर है, आप ये कैसे कह सकते हैं कि टीडीएस न काटा जाए.
सुनवाई के दौरान वकील ने यह भी कहा कि केरल हाईकोर्ट ने अपने कुछ फैसलों में कहा कि पादरी और नन की मृत्यु पर उनका परिवार मोटर व्हीकल एक्ट के तहत मुआवजे का अधिकार नहीं है. इस पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने उन्हें बताया कि क्योंकि पादरी और नन अपने परिवार से रिश्ता खत्म करके संन्यासी बन जाते हैं इसलिए उनके परिवार को इसका अधिकार नहीं. हालांकि टैक्स का मुद्दा अलग है.
यह भी पढ़ें:-
1981 में कानून लाकर AMU को दिया गया अल्पसंख्यक का दर्जा, क्या सुप्रीम कोर्ट बदलेगा इंदिरा गांधी का फैसला