Supreme Court Vacation: सुप्रीम कोर्ट में सोमवार (8 मई) को भारत के मुख्य न्यायाधीश की कोर्ट में एक दिलचस्प वाकया हुआ. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एक वकील से कह दिया कि जब तक मौत की सजा पर अमल न हो रहा हो, सुप्रीम कोर्ट न आएं. सीजेआई चंद्रचूड़ को यहां तक कहना पड़ गया कि हमारी स्थिति समझने की कोशिश कीजिए.
दरअसल, कोर्ट में गर्मियों की छुट्टियां होने वाली हैं. ऐसे में एक वकील ने मुख्य न्यायाधीश से एक मामले की सुनवाई के लिए छुट्टियों से पहले की तारीख की मांग की. इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कोर्ट में जजों की कमी और टाइमिंग का हवाला देते हुए कहा कि जब तक मौत की सजा पर अमल न हो रहा हो, हम इस समय केस नहीं सुन सकते.
रिटायर हो रहे हैं दो जज
सीजेआई चंद्रचूड़ ने वकील से कहा, ''प्लीज, हमारी स्थिति समझने की कोशिश कीजिए. दो जज रिटायर हो रहे हैं. ये आखिरी सप्ताह है. जब तक किसी की मौत की सजा पर अमल न हो रहा हो, हम आखिरी सप्ताह में इसे नहीं सुन सकते."
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ''मैं बार से ये कहना चाहता हूं आज हमारे पास 237 मामले सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हैं. मैं अनुरोध करता हूं कि आप तभी किसी मामले को उल्लेख करें जब कोई बड़ी इमरजेंसी हो.''
जस्टिस नरसिम्हा के सामने भी आया एक मामला
मुख्य न्यायाधीश के अलावा एक दूसरे जज जस्टिस पीएस नरसिम्हा के सामने भी ऐसा ही मामला आया. एक वकील के तारीख विशेष पर मामले का उल्लेख करने पर जस्टिस नरसिम्हा ने कहा, ''चीफ जस्टिस पहले ही इशारा कर चुके हैं कि नए मामले आखिरी सप्ताह में आएंगे. अगर आप आखिरी सप्ताह में कोई खास डेट चाहते हैं तो कोर्ट मास्टर से बात कीजिए. इस तरीके से हम काम नहीं कर पाएंगे.''
सुप्रीम कोर्ट में साल में 200 दिन काम
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कुछ दिन पहले एक अंग्रेजी चैनल के कार्यक्रम में बताया था कि देश के सुप्रीम कोर्ट के जज साल भर में 200 दिन (लगभग साढ़े 6 महीने) काम करते हैं. सीजेआई ने शीर्ष अदालत में लंबी शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन छुट्टियों का बचाव करते हुए कहा था कि अमेरिकी की सुप्रीम कोर्ट में जज सिर्फ 80 दिन काम होता है. ऑस्ट्रेलिया की सुप्रीम कोर्ट में भी 100 से कम दिन ही काम होता है. वहीं, ब्रिटेन और सिंगापुर की सुप्रीम कोर्ट में 145 दिन काम होता है.
सीजेआई ने दी थी जजों को सीख
दो दिन पहले एक कार्यक्रम में मुख्य न्यायाधीश ने जजों को सोशल मीडिया के दौर में प्रशिक्षित होने की सीख दी थी. उन्होंने हाई कोर्ट की सुनवाई की तमाम 'मजाकिया वायरल क्लिप्स' का उदाहरण देते हुए कहा था कि यह बहुत ही गंभीर बात है. इसे नियंत्रित किए जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा, "हर शब्द जो हम जज अदालत में कहते हैं, वह सोशल मीडिया के युग में सार्वजनिक दायरे में है. ऐसे में जज के तौर पर हमें प्रशिक्षित होने की जरूरत है."
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