'यौन उत्पीड़न के आरोपों के डर से पुरुष नहीं देते महिलाओं को मौका', CJI चंद्रचूड़ ने क्यों कही ये बात
CJI DY Chandrachud ने कहा कि चैंबर्स मानते हैं, महिलाएं अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते कई घंटों तक काम नहीं कर पाएंगी. समाज मानता है कि बच्चों की देखभाल का जिम्मा महिलाओं का ही है.
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CJI DY Chandrachud Statement: भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने शनिवार (25 मार्च) को एक कार्यक्रम के दौरान कानूनी पेशे में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व पर खुलकर अपनी बात रखी. सीजेआई धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि रुढ़िवादिता ने महिलाओं के लिए अवसरों को मुश्किल बना दिया है. तमिलनाडु उन्होंने आंकड़े बताते हुए कहा कि केवल तमिलनाडु में ही पुरुष वकीलों के इनरोलमेंट 50 हजार हैं और महिला वकीलों के महज 5 हजार हैं. उन्होंने आगे कहा कि ये आंकड़े पूरे देश में एक जैसे ही हैं.
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कानूनी पेशे में रुढ़िवादिता को महिलाओं के लिए समान अवसर न मिल पाने की कई वजहों में से एक बताया. सीजेआई ने ये बात तमिलनाडु के मदुरै में एडिशनल कोर्ट बिल्डिंग के शिलान्यास के कार्यक्रम में कहीं. इस कार्यक्रम में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन भी मौजूद रहे.
'महिलाओं को लेकर पूर्वाग्रहों को खत्म करना चाहिए'
कानूनी पेशे में महिलाओं को कम अवसर पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया चंद्रचूड़ ने कहा कि चैंबर्स मानते हैं, महिलाएं अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते कई घंटों तक काम नहीं कर पाएंगी. समाज मानता है कि बच्चों की देखभाल का जिम्मा महिलाओं का ही है. उन्होंने कहा कि अगर महिलाएं परिवार और करियर के बीच तालमेल बिठाना चाहती हैं तो ये हमारा कर्तव्य है कि उन्हें समर्थन दें.
महिलाओं को नौकरी देने में एक अन्य पुरानी सोच की बात करते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह यौन उत्पीड़न के आरोपों से जुड़ा है. उन्होंने कहा कि लोगों का मानना है कि यह पुरुष मालिकों के लिए महिलाओं को ऑफिस में न रखना ज्यादा सुरक्षित है. उन्होंने कहा कि इस तरह की रूढ़िवादिता महिलाओं के लिए अवसर को खत्म करती है और कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की अनगिनत कहानियों का मजाक उड़ाती है. हमें लगातार इन पूर्वाग्रहों को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए.
'बदल रहा है दौर'
सीजेआई धनंजय वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि युवा और प्रतिभाशाली महिला वकीलों की कोई कमी नहीं है. कानूनी पेशा महिलाओं को समान अवसर देने वाला पेशा नहीं है और यही स्थिति पूरे देश में हैं. उन्होंने आगे कहा कि दौर बदल रहा है. हाल में जिला अदालतों में न्यायिक अधिकारियों की हुई भर्ती में करीब 50 प्रतिशत महिलाएं थीं, लेकिन हमें महिलाओं के लिए समान अवसर बनाने की जरूरत है ताकि वे इस रास्ते से इसलिए नहीं हटें, क्योंकि जीवन में प्रगति करने के लिए उन्हें कई गुना जिम्मेदारियां उठानी पड़ती हैं.
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