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Supreme Court: 'समलैंगिक जोड़े के गोद लिए गए बच्चे का समलैंगिक होना जरूरी नहीं', बोले CJI डीवाई चंद्रचूड़

Same Sex Marriage Case: सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह के लिए कानूनी मान्यता की मांग करने वाली याचिकाओं को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजा है.

Supreme Court Hearing Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह के लिए कानूनी मान्यता की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने समलैंगिक जोड़े के बच्चे को लेकर अहम टिप्पणी की. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) ने सोमवार (13 मार्च) को कहा कि समलैंगिक जोड़े के गोद लिए गए बच्चे का समलैंगिक (Homosexual) होना जरूरी नहीं है.

सीजेआई ने सॉलिसिटर जनरल की ओर से दी गई दलील के जवाब में यह टिप्पणी की. सॉलिसिटर ने कहा था कि अगर ऐसी शादी को मान्यता मिलेगी तो भविष्य में समलैंगिक जोड़े बच्चों को गोद लेंगे. इस बात पर भी विचार करने की जरूरत है कि समलैंगिक जोड़े के साथ रह रहे बच्चे की मानसिक स्थिति पर इसका किस तरह का असर पड़ेगा. उन्होंने कहा कि ये संसद को जांचना है कि एक बच्चे की मानसिक स्थिति क्या होगी जिसने या तो दो पुरुषों को माता-पिता के रूप में या दो महिलाओ माता-पिता के रूप में देखा हो. 

समलैंगिक जोड़े के बच्चे को लेकर उठाए सवाल

याचिकाओं का विरोध करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सरकार की ओर से कहा कि समलैंगिक विवाह को मान्यता प्रदान करना विभिन्न कारणों से विधायी डोमेन के अंतर्गत आता है. उन्होंने कहा कि जब किसी रिश्ते को मान्यता देने का सवाल है, तो यह विधायिका का कार्य है. इसमें कई चीजों पर गौर किया जाता है. उदाहरण के लिए, जिस क्षण एक ही लिंग के दो व्यक्तियों के बीच विवाह के अनुदान को मान्यता दी जाती है, तब प्रश्न गोद लेने का उठता है.

उन्होंने कहा कि जब गोद लेने का सवाल आएगा, तो संसद को जांच करनी होगी. संसद को लोगों की इच्छा पर विचार करना होगा. संसद को देखना होगा कि बच्चे के मनोविज्ञान की स्थिति क्या होगी जिसे एक पुरुष पिता और एक महिला के जरिए पाला नहीं गया है. ये कुछ मुद्दे हैं. संसद को बहस करनी होगी और इस पर विचार करना होगा. 

"बच्चे का समलैंगिक होना जरूरी नहीं"

इस पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि समलैंगिक जोड़े के गोद लिए हुए बच्चे का समलैंगिक होना जरूरी नहीं है. बच्चा ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी. वहीं याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता अरुंधति काटजू ने सॉलिसिटर की दलील पर आपत्ति जताने के लिए हस्तक्षेप किया. उन्होंने कहा कि सॉलिसिटर के लिए इस तरह का बयान देना बहुत अपमानजनक है, यह देखते हुए कि अदालत के समक्ष गोद लिए बच्चों के साथ कई याचिकाकर्ता हैं. 

पांच न्यायाधीशों की पीठ को भेजा मामला

सभी दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने के अनुरोध वाली याचिकाओं को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेज दिया और कहा कि यह मुद्दा बुनियादी महत्व का है. डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि यह मुद्दा एक ओर संवैधानिक अधिकारों और दूसरी ओर विशेष विवाह अधिनियम सहित विशेष विधायी अधिनियमों का एक-दूसरे पर प्रभाव है. 

18 अप्रैल को होगी सुनवाई

पीठ ने कहा कि हमारी राय है कि यदि उठाए गए मुद्दों को संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के संबंध में पांच न्यायाधीशों की पीठ की ओर से हल किया जाता है तो यह उचित होगा. इस प्रकार, हम मामले को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के समक्ष भेजने का निर्देश देते हैं. कोर्ट ने मामले को 18 अप्रैल को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया और कहा कि पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष सुनवाई का सीधा प्रसारण (लाइव-स्ट्रीम) किया जाएगा, जैसा कि संविधान पीठ के समक्ष पूर्व में हुई सुनवाई के दौरान किया जाता रहा है. 

केंद्र सरकार कर रही विरोध

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं का केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विरोध किया है. केंद्र ने कहा है कि इससे व्यक्तिगत कानूनों और स्वीकार्य सामाजिक मूल्यों में संतुलन प्रभावित होगा. सुप्रीम कोर्ट ने छह जनवरी को समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने के मुद्दे पर देश भर के विभिन्न हाई कोर्ट के समक्ष लंबित सभी याचिकाओं को एक साथ जोड़ते हुए उन्हें अपने पास स्थानांतरित कर लिया था.

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