Supreme Court News: चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि सुप्रीम के लिए कोई भी केस छोटा नहीं है. छोटे अपराध के मामले में लंबी सज़ा काट चुके एक व्यक्ति की रिहाई का आदेश देते हुए उन्होंने यह टिप्पणी की. उन्होंने कहा, "हमारे लिए कोई केस छोटा नहीं. अगर हम नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा नहीं कर सकते, तो फिर हम क्या करने के लिए बैठे हैं."



चीफ जस्टिस की यह टिप्पणी अहम है क्योंकि गुरुवार (15 दिसंबर) को ही केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट के कामकाज पर टिप्पणी की थी. उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को जमानत के मामले नहीं, बड़े संवैधानिक मामले सुनने चाहिए. शुक्रवार को चीफ जस्टिस ने कह दिया कि सुप्रीम कोर्ट लोगों के मौलिक अधिकारों का संरक्षक है और व्यक्तिगत स्वतंत्रता एक अहम मौलिक अधिकार है.


बिजली चोरी के मामले में हुई थी सजा
बिजली चोरी के मामले में 7 साल से अधिक समय जेल में बिता चुके हापुड़ के रहने वाले इकराम के मामले पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस पी एस नरसिम्हा ने इस बात पर हैरानी जताई कि निचली अदालत और हाई कोर्ट ने एक छोटे अपराध को हत्या के जैसा मामला बना दिया.

 

दरअसल, याचिकाकर्ता पर बिजली चोरी के 9 मुकदमे थे. उसने निचली अदालत में प्ली बार्गेनिंग की प्रक्रिया (कम सज़ा के लिए खुद अपना गुनाह मान लेना) का सहारा लिया. उसे सभी 9 मामलों में 2-2 साल की सज़ा मिली. निचली अदालत ने उन्हें एक ही साथ चलाने का आदेश नहीं दिया. हाई कोर्ट ने भी कह दिया कि सज़ा एक के बाद एक चलेगी. यानी इस तरह उसे 18 साल जेल में बिताने पड़ते.

 

जब याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि वह 7 साल जेल में रह चुका है तो दोनों जज हैरान रह गए. जजों ने कोर्ट में मौजूद वरिष्ठ वकील नागामुथु से उनकी राय पूछी. वरिष्ठ वकील ने कहा, "इस तरह तो यह उम्रकैद का मामला हो गया है."

 

इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, "इसलिए, सुप्रीम कोर्ट के लिए ऐसे मामले सुनना ज़रूरी है. जज आधी रात तक जग कर केस की फ़ाइल पढ़ते है, क्योंकि कई बार साधारण सा लगने वाला मामला नागरिक अधिकार के लिहाज से बहुत अहम होता है. अगर हम उस तरह के केस में दखल न दें, तो हमारी क्या उपयोगिता है?"

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