Uddhav vs Shinde: 'राज्यपाल अपने दफ्तर का इस्तेमाल...', शिंदे बनाम उद्धव ठाकरे केस में सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी
Shiv Sena Crisis: महाराष्ट्र के शिंदे बनाम उद्धव विवाद पर SC संविधान पीठ ने सवाल उठाया कि अगर शिंदे कैंप के MLAs को उद्धव के कांग्रेस-एनसीपी से गठबंधन पर एतराज था तो वह 3 साल सरकार के साथ क्यों रहे.
SC On Uddhav vs Shinde Case: एकनाथ शिंदे बनाम उद्धव ठाकरे केस में बुधवार (15 मार्च) को सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की. शीर्ष अदालत ने कहा कि सत्तारूढ़ दल में विधायकों के बीच केवल मतभेद के आधार पर बहुमत साबित करने को कहने से एक निर्वाचित सरकार खारिज हो सकती है इस बात का राज्यपाल को ध्यान रखना चाहिए. अदालत ने कहा कि राज्यपाल अपने दफ्तर का इस्तेमाल इस नतीजे के लिए नहीं होने दे सकता है.
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ (Constitution Bench) ने कहा, ‘‘यह लोकतंत्र के लिए एक शर्मनाक तमाशा होगा.’’ पीठ ने ये टिप्पणी पिछले साल महाराष्ट्र में शिवसेना में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में हुई बगावत के बाद जून 2022 में महाराष्ट्र में पैदा हुए राजनीतिक संकट को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान की.
'राज्यपाल के पास कई सामग्री थी'
पीठ ने यह टिप्पणी महाराष्ट्र के राज्यपाल की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Solicitor General Tushar Mehta) के मौजूद होने के बाद की. मेहता ने घटना के बारे में सिलसिलेवार बताया. उन्होंने कहा कि उस समय राज्यपाल के पास कई तरह की सामग्री थी. जैसे शिवसेना के 34 विधायकों के हस्ताक्षर वाला पत्र, निर्दलीय विधायकों का तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे नीत सरकार से समर्थन वापस लेने का पत्र शामिल है.
उन्होंने अदालत में ये भी कहा कि नेता प्रतिपक्ष ने सदन में बहुमत साबित करने की मांग की थी. महाराष्ट्र के तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने तब ठाकरे को सदन में बहुमत साबित करने को कहा था. हालांकि, ठाकरे ने सदन में बहुमत प्रस्ताव पर मतदान होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया, जिससे शिंदे के नए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने का रास्ता साफ हुआ.
क्या कहा SC की बेंच ने?
पीठ ने कहा कि इस मामले में नेता प्रतिपक्ष का पत्र मायने नहीं रखता क्योंकि वह हमेशा कहेंगे कि सरकार ने बहुमत खो दिया या विधायक नाराज हैं. इस मामले में विधायकों के जान को खतरा बताए जाने वाले पत्र भी प्रासंगिक नहीं है. अदालत ने कहा, ‘‘केवल एक चीज 34 विधायकों का प्रस्ताव है जो बताता है कि पार्टी के कैडर और विधायकों में असंतोष है... क्या यह बहुमत साबित करने को कहने के लिए पर्याप्त है? हालांकि, हम कह सकते हैं कि उद्धव ठाकरे संख्याबल में हार गए थे.’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘पार्टी के विधायकों के बीच मत का आधार कुछ भी हो सकता है जैसे विकास कोष का भुगतान, पार्टी का आदर्शों से हटना लेकिन क्या यह आधार राज्यपाल के सदन में बहुमत साबित करने को कहने के लिए पर्याप्त हो सकता है? राज्यपाल को अपने कार्यालय का इस्तेमाल खास नतीजे के लिए नहीं करने देना चाहिए. बहुमत साबित करने को कहने से निर्वाचित सरकार खारिज हो सकती है.’’ इस पीठ में न्यायमूर्ति एम आर शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा शामिल हैं.
दरअसल महाराष्ट्र के शिंदे बनाम उद्धव विवाद पर SC की संविधान पीठ में चल रही सुनवाई आज भी पूरी नहीं हुई. कल यानी 9वें दिन सुनवाई पूरी होगी. आज SC ने इस बात पर सवाल उठाया कि अगर शिंदे कैंप के विधायकों को उद्धव के कांग्रेस-NCP से गठबंधन पर एतराज था, तो वह 3 साल तक सरकार के साथ क्यों रहे?
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