CJI Justice Chandrachud: जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ देश के 50वें मुख्य न्यायाधीश होंगे. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में जस्टिस चंद्रचूड़ का नाम केंद्र सरकार को भेज दिया है. चंद्रचूड़ 9 नवंबर को चीफ जस्टिस बनेंगे. उनका कार्यकाल 10 नवंबर 2024 तक होगा. 11 नवंबर 1959 को जन्मे चंद्रचूड़ के पिता भी भारत के सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रह चुके हैं. उनके पिता यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ सबसे लंबे समय के लिए इस अहम पद पर रहे. वह 1978 से 1985 यानी 7 साल तक सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे थे.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के रह चुके है चीफ जस्टिस
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ 2016 में सुप्रीम कोर्ट के जज बने थे. उससे पहले वह इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस थे. जज के रूप में उनकी पहली नियुक्ति साल 2000 में बॉम्बे हाई कोर्ट में हुई थी. उससे पहले 1998 से 2000 तक वह भारत सरकार के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल रहे. उन्होंने 1982 में दिल्ली विश्वविद्यालय से वकालत की डिग्री हासिल की. उन्होंने प्रतिष्ठित इंगलैड के हॉवर्ड यूनिवर्सिटी में भी पढ़ाई की.
जस्टिस चंद्रचूड़ के चेहरे पर रहती है मुस्कान
जस्टिस चंद्रचूड़ की एक खास बात यह है कि उनके चेहरे पर हर समय एक सहज मुस्कान होती है. वह जूनियर वकीलों से भी उसी सम्मान से पेश आते हैं, जितना जाने-माने वकीलों से. यहां तक कि किसी केस को खारिज करते समय भी वह वकील को विनम्र लहज़े में विस्तार से उसकी वजह बताते हैं. उदार छवि के फैसलों में हमेशा उनके व्यक्तित्व की छाप दिखी है. IPC की धारा 497 को रद्द करते समय दिए गए फैसले में उन्होंने लिखा कि एक शादीशुदा महिला के भी अपने अधिकार हैं. उसे अपने पति की संपत्ति की तरह नहीं देखा जा सकता. उसका किसी और पुरुष से संबंध रखना तलाक का उचित आधार हो सकता है, लेकिन इसे अपराध मान कर दूसरे पुरुष को जेल में डाल देना गलत होगा.
एबॉर्शन जैसे ऐतिहासिक फैसले को दे चुके है मान्यता
हाल ही में जस्टिस चंद्रचूड़ ने अनमैरिड महिलाओं को भी 20 से 24 हफ्ते के गर्भ को गिराने की अनुमति दी. इस ऐतिहासिक फैसले में उन्होंने यह भी कहा कि अगर पति ने ज़बरन संबंध बना कर पत्नी को गर्भवती किया है, तो उसे भी 24 हफ्ते तक गर्भपात का अधिकार होगा. इस तरह गर्भपात के मामले ने ही सही, कानून में पहली बार वैवाहिक बलात्कार यानी मैरिटल रेप को मान्यता मिली.
मौलिक अधिकारों को लेकर जस्टिस चंद्रचूड़ रहे हैं सजग
फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन की स्वतंत्रता समेत तमाम मौलिक अधिकारों को लेकर जस्टिस चंद्रचूड़ सजग रहे हैं. उन्होंने राजनीतिक और वैचारिक रूप से अलग-अलग छोर पर खड़े लोगों की फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन की स्वतंत्रता पर एक जैसा आदेश दिया है. उनका कहना है कि सिर्फ अपने विचार प्रकट करने के लिए किसी को जेल में डाल देना सही नहीं है.
देश के बड़े-बड़े फैसलों में रही है भागीदारी
जस्टिस चंद्रचूड़ ने लंबे समय से सेना में स्थायी कमीशन के लिए लड़ाई लड़ रही महिला अधिकारियों को भी उनके हक में फैसला देते हुए राहत दी. अयोध्या मामले का फैसला देने वाली 5 जज़ों की बेंच के जस्टिस चंद्रचूड़ भी सदस्य थे. आधार कार्ड के मामले में फैसला देते हुए उन्होंने निजता को मौलिक अधिकार घोषित करवाने में अहम भूमिका निभाई.
कोविड के दौर में कई आदेश दिए
कोविड के दौर में उन्होंने ऑक्सीजन और दवाइयों की उपलब्धता पर कई आदेश दिए. एक ऐसा मौका भी आया जब वह खुद कोरोना पीड़ित होने के बावजूद अपने घर से वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिए सुनवाई से जुड़े. हाल ही में उन्होंने रात 9 बज कर 10 मिनट तक कोर्ट की कार्यवाही चलाई और उस दिन अपने सामने लगे सभी मामलों को निपटाया.
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