Freebies Case in Supreme Court: भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) एनवी रमण (NV Ramana) ने कहा है कि चुनाव के दौरान मुफ्त योजनाओं (Free Schemes) की घोषणा से राजनीतिक पार्टियों (Political Parties) को रोकने के मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में जरूरी है. सीजेआई ने कहा, ''हम चुनाव आयोग को अभी कोई शक्ति नहीं देने जा रहे हैं लेकिन इस मुद्दे पर बहस जरूरी है.'' वकील कपिल सिब्बल (Kapil Sibal)  ने कहा कि मसला वित्त आयोग (Finance Commission) पर छोड़ देना चाहिए, वह चाहे तो राज्यों के फंड आवंटन में कमी करे.


वहीं, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ''समस्या यह है कि कोई साड़ी बांटता है, कोई टीवी. आखिर इसका बोझ टैक्स पेयर पर पड़ता है. सवाल यह है कि क्या कोर्ट इसे खामोशी से देखेगा.'' सॉलिसिटर जनरल ने कहा, ''वोटर को सब जान कर फैसला लेने का हक है. अगर कोई पार्टी ऐसा वादा करे, जिसे पूरा करने की अनुमति राज्य के संसाधन नहीं देते, क्या वोटर को यह पता नहीं होना चाहिए?''


याचिकाकर्ता के वकील विकास सिंह ने यह कहा


याचिकाकर्ता के वकील विकास सिंह ने कहा, ''लोगों को पानी, चिकित्सा और शिक्षा देने का कोई विरोध नहीं कर रहा है लेकिन अगर कोई पार्टी चुनाव में करोड़ों रुपयों का कोई नया वादा कर रही है तो वोटर को यह पता होना चाहिए कि इसके पैसे सरकार के पास नहीं हैं, आखिरकार टैक्स पेयर पर बोझ डाला जाने वाला है.'' उन्होंने आगे कहा, ''अगर सरकार कुछ नहीं कर रही है, चुनाव आयोग कुछ नहीं कर रहा है तो कोर्ट को दिशानिर्देश बनाने चाहिए, करदाता के पैसे इसलिए बर्बाद नहीं किए जा सकते कि किसी पार्टी को चुनाव जीतना है.''


सीजेआई ने कहा, ''यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता अपनी दलील को चुनाव के दौरान होने वाली घोषणा तक सीमित रखना चाहते हैं. बाद में आने वाली योजनाओं पर नहीं.'' इस पर विकास सिंह ने कहा, ''बिल्कुल, इसे कानून के जरिये नियंत्रित किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर एक फैसला भी दिया था लेकिन घोषणापत्र को लेकर चुनाव आयोग ने ज्यादा काम नहीं किया.'' 


सीजेआई ने आगे यह कहा


सीजेआई ने कहा, ''अगर कोई पार्टी वादा करे कि वह सबको हांगकांग ले जाएगी तो क्या चुनाव आयोग इसे रोक सकता है? अगर वह राज्य की आर्थिक स्थिति से बढ़ कर वादा करे तो क्या इसकी अनुमति होनी चाहिए?'' इस पर विकास सिंह ने कहा, ''यही हमारी याचिका है.'' सीजेआई ने कहा, ''बेहतर हो कि संसद में इस पर बहस हो और उचित कानूनी व्यवस्था बने लेकिन उस चर्चा के बिंदु पर कोई समिति सुझाव दे सकती है.


मामले में कुछ कहने की कोशिश कर रहे डीएमके के वकील को चीफ जस्टिस ने रोका और कहा, ''मैं चीफ जस्टिस के पद पर होकर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता, आपके यहां यह समझा जा रहा है कि सारी समझदारी एक ही पार्टी या एक ही व्यक्ति के पास है, हम लोग भी जिम्मेदार नागरिक हैं, हम भी सोच सकते हैं, वहां सुप्रीम कोर्ट के लिए बहुत कुछ कहा जा रहा है. ऐसा नहीं है कि हमारी आंख बंद है, हमें दिखाई नहीं दे रहा.''


सीजेआई ने कहा, ''समस्या यह है कि गैरजरूरी मुफ्त की घोषणा क्या है, यह कैसे तय हो? गांव में बकरी आजीविका का हिस्सा है, साइकिल मिलने पर लड़कियां अपनी शिक्षा को आगे बढ़ा सकती हैं."


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