'आप ने इतने पीआईएल कर दिए हैं कि हमें अलग बेंच बनानी पड़ेगी,' CJI ने BJP नेता अश्विनी उपाध्याय से कहा
CJI In Courtroom: आज़म के वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी कि जिन मामलों का मुकदमा मजिस्ट्रेट स्तर के जज के पास चलता है, उसकी अपील सेशन्स कोर्ट में होती है
नई दिल्ली: आज एक मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एन वी रमना (CJI Ramana) हल्के-फुल्के अंदाज़ में नज़र आए. उन्होंने कई विषयों पर जनहित याचिका दाखिल करने वाले बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय से कहा, "आपकी 18 याचिकाएं लंबित हैं. इस रफ्तार से तो आप और एम एल शर्मा के लिए हमें विशेष बेंच बनानी पड़ेगी." गौरतलब है कि वकील मनोहर लाल शर्मा भी लगातार पीआईएल दाखिल करते रहते हैं.
कोर्ट में इस मसले पर सुनवाई हो रही थी कि सांसदों/विधायकों के मुकदमों के तेज निपटारे के लिए राज्यों में बने विशेष कोर्ट में किस स्तर के जज बैठें. विशेष एमपी/एमएलए कोर्ट का गठन सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही हुआ है. इस मामले में अश्विनी उपाध्याय भी याचिकाकर्ता हैं. उनकी यह मांग भी लंबित है कि सज़ायाफ्ता लोगों को स्थायी रूप से चुनाव लड़ने से रोक दिया जाना चाहिए. कोर्ट ने इस पर भी केंद्र के वकील से सवाल पूछा. इसी दौरान चीफ जस्टिस ने उपाध्याय से कहा कि कल को उनके मामले सुनने के लिए अलग बेंच बनानी पड़ सकती है.
आज चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच मुख्य रूप से समाजवादी पार्टी नेता आज़म खान की अर्ज़ी को सुन रही थी. इस अर्ज़ी में इस बात का विरोध किया गया है कि उत्तर प्रदेश में एमपी/एमएलए कोर्ट में सिर्फ सेशन्स जज ही बैठते हैं. आज़म के वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी कि जिन मामलों का मुकदमा मजिस्ट्रेट स्तर के जज के पास चलता है, उसकी अपील सेशन्स कोर्ट में होती है. लेकिन यूपी में सांसदों/विधायकों से अपील का फोरम छीन लिया गया है.
चीफ जस्टिस के अलावा बेंच के बाकी दोनों सदस्य जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (Justice D.Y. Chandrachud) और जस्टिस सूर्यकांत (Justice Surya Kant) भी इस बात पर सहमत नज़र आए कि सीआरपीसी के तहत हासिल अपील के मौके को किसी आरोपी से छीना नहीं जा सकता. सिब्बल ने यह दलील भी दी कि बाकी राज्यों में मजिस्ट्रेट भी स्पेशल कोर्ट का हिस्सा होते हैं. यूपी में बराबरी का बर्ताव नहीं हो रहा. केंद्र के लिए पेश एडिशनल सॉलिसीटर जनरल एस वी राजू ने कहा कि इसे किसी एक व्यक्ति से भेदभाव नहीं कहा जा सकता. वहां सभी पूर्व या वर्तमान सांसदों/विधायकों के लिए यही व्यवस्था है. हालांकि, जज इस बात से आश्वस्त नज़र नहीं आए. बेंच ने इस मसले पर फैसला सुरक्षित रख लिया है.