CJI Lalit Retires: कम समय में अमिट छाप छोड़ गए चीफ जस्टिस ललित, ढाई महीने में हुआ 23 हज़ार मामलों का निपटारा
CJI Retires: सीजेआई के तौर पर उदय उमेश ललित का 74 दिन का कार्यकाल रहा. वो वकील से सीधे सुप्रीम कोर्ट के जज बनने वाले देश के दूसरे शख्स थे.
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CJI UU Lalit Retires: कम समय में भी अपनी छाप कैसे छोड़ी जा सकती है, यह देश के 49वें मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित ने दिखाया है. 27 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बने ललित आज यानी 8 नवंबर को सेवानिवृत्त हो गए.
सीजेआई यूयू ललित सिर्फ ढाई महीने के कार्यकाल में इतना कुछ कर गए कि उनके बाद इस पद पर आसीन होने जा रहे जस्टिस धनंजय चंद्रचूड़ को उनके विदाई समारोह में कहना पड़ा, "I am conscious that I have very big sized shoes to fill because you have really raised the bar for the chief justice." (मुझे एहसास है कि मेरे सामने एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी है क्योंकि आपने वास्तव में चीफ जस्टिस पद पर रहते हुए लोगों की अपेक्षाओं को बहुत बढ़ा दिया है.)
23 हजार मुकदमों का निपटारा हुआ
शांत और शिष्ट स्वभाव के जस्टिस ललित ने इस दौरान खूब काम किया और अपने साथी जजों से भी करवाया. उनके इस छोटे से कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट ने 10 हजार से अधिक मुकदमों का निपटारा किया. 13 हजार ऐसे मामले जो वकीलों की तरफ से तकनीकी कमी दूर न करने के चलते वर्षों से लंबित थे, उनके वकीलों को कमी दूर करने का अंतिम मौका दिया. उसके बाद इन मामलों को भी निरस्त कर दिया. यानी उनके कार्यकाल में लगभग 23 हजार मामलों का निपटारा हुआ.
6 संविधान पीठ बनाईं
5 जजों की बेंच के गठन में होने वाली असुविधा के चलते संविधान पीठ को सौंपे गए मामले कई सालों से नहीं सुने जा रहे थे. चीफ जस्टिस ललित के कार्यकाल में वह मामले पटरी पर आ गए. उन्होंने 6 अलग-अलग संविधान पीठ का गठन किया. कुछ मामलों का निपटारा हो गया और कुछ की सुनवाई की रूपरेखा साफ हो गई है. सुप्रीम कोर्ट के जजों की एक आंतरिक शिकायत रहती है कि बड़े संवैधानिक सवालों वाले अधिकतर मामले चीफ जस्टिस खुद सुनते हैं. इस वजह से कई जज कभी संविधान पीठ का हिस्सा नहीं बन पाते लेकिन जस्टिस ललित के दौर में लगभग हर जज किसी न किसी संविधान पीठ का हिस्सा बना.
सीधे वकील से बने सुप्रीम कोर्ट जज
9 नवंबर 1957 में जन्म लेने वाले उदय उमेश ललित 13 अगस्त 2014 को सुप्रीम कोर्ट जज नियुक्त हुए थे. उससे पहले वह देश के सबसे बड़े वकीलों में गिने जाते थे. वह चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के अहम संवैधानिक पद पर पहुंचने वाले सिर्फ दूसरे व्यक्ति थे, जो सुप्रीम कोर्ट के जज बनने से पहले किसी हाई कोर्ट के जज नहीं थे. उन्हें सीधे वकील से सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया था. उनसे पहले 1971 में देश के 13वें मुख्य न्यायाधीश एसएम सीकरी ने यह उपलब्धि हासिल की थी.
2जी केस के विशेष सरकारी वकील रहे
सुप्रीम कोर्ट का जज बनने से पहले उदय ललित देश के सबसे बड़े वकीलों में गिने जाते थे. उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने 2जी घोटाला मामले में विशेष पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नियुक्त किया था. उनके पिता यूआर ललित बॉम्बे हाई कोर्ट में अतिरिक्त जज रह चुके हैं. यूआर ललित भी देश के सबसे बड़े वकीलों में गिने जाते हैं. जस्टिस ललित के दादा रंगनाथ ललित भी महाराष्ट्र के सोलापुर ज़िले के नामी वकीलों में से एक थे.
EWS आरक्षण पर फैसला
जस्टिस ललित के कार्यकाल के आखिरी दिन उनकी अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने बहुमत से सामान्य वर्ग के गरीबों को दिए गए 10 प्रतिशत आरक्षण को बरकरार रखने का फैसला दिया. हालांकि इस फैसले में जस्टिस ललित खुद अल्पमत में रहे. उन्होंने ईडब्ल्यूएस आरक्षण को गलत बताने वाले जज के फैसले से सहमति जताई.
तीन तलाक समेत कई बड़े फैसले
सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल में जस्टिस ललित कई बड़े फैसलों के हिस्सा रहे हैं. 22 अगस्त 2017 को तलाक-ए-बिद्दत यानी एक साथ 3 तलाक बोलने की व्यवस्था को असंवैधानिक करार देने वाली 5 जजों की बेंच के वह सदस्य थे. 30 अप्रैल 2021 को जस्टिस ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने राजद्रोह के मामले में लगने वाली आईपीसी की धारा 124A की वैधता पर केंद्र को नोटिस जारी किया.
जस्टिस ललित ने अवमानना के मामले भगोड़े कारोबारी विजय माल्या को 4 महीने की सजा दी. बच्चों को यौन शोषण से बचाने पर भी जस्टिस ललित ने अहम आदेश दिया. उनकी अध्यक्षता वाली बेंच ने माना कि सेक्सुअल मंशा से शरीर के सेक्सुअल हिस्से का स्पर्श पॉक्सो एक्ट का मामला है. यह नहीं कहा जा सकता कि कपड़े के ऊपर से बच्चे का स्पर्श यौन शोषण नहीं है.
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