27 हिंदू-जैन मंदिरों को तोड़ कर बने कुव्वत-उल-इस्लाम मस्ज़िद पर दावा, कुतुब मीनार को भी बताया ध्रुव स्तंभ
याचिका में बताया गया है कि आज का महरौली दअरसल मिहिरावली है. इसे चौथी सदी के महान शासक चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक वराहमिहिर ने बसाया था.
नई दिल्ली: दिल्ली के कुतुब मीनार परिसर में बने कुव्वत-उल-इस्लाम मस्ज़िद के बारे में वहां लगा सरकारी बोर्ड ही बताता है कि उसे 27 मंदिरों को तोड़ कर बनाया गया था. अब यही बात एक याचिका के ज़रिए कोर्ट को बताई गई है. दिल्ली की साकेत कोर्ट में यह याचिका पहले जैन तीर्थंकर ऋषभ देव और भगवान विष्णु के नाम से दाखिल की गई है.
वकील हरिशंकर जैन की तरफ से दाखिल याचिका पर आज सिविल जज के सामने शुरुआती बहस हुई. 24 दिसंबर को मामला अगली सुनवाई के लिए लगाया गया है. याचिका के मुताबिक दिल्ली के पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन ऐबक की तरफ से 1192 में बनवाई गई इस मस्जिद में मुसलमानों ने कभी नमाज़ नहीं पढ़ी. इसकी वजह यह थी कि मंदिरों की सामग्री से बनी इमारत के खंभों, मेहराबों, दीवार और छत पर जगह-जगह हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां थीं. उन मूर्तियों और धार्मिक प्रतीकों को आज भी देखा जा सकता है.
याचिका में बताया गया है कि आज का महरौली दअरसल मिहिरावली है. इसे चौथी सदी के महान शासक चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक वराहमिहिर ने बसाया था. इतिहास के प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलविद वराहमिहिर ने ग्रहों की गति के अध्ययन के लिए विशाल स्तंभ का निर्माण करवाया. इसे ध्रुव स्तंभ या मेरु स्तंभ कहा जाता था. मुस्लिम शासकों के दौर में इसे कुतुब मीनार नाम दे दिया गया. इसी परिसर में 27 नक्षत्रों के प्रतीक के तौर पर 27 मंदिर थे. इनमें जैन तीर्थंकरों के साथ भवन विष्णु, शिव, गणेश आदि के मंदिर थे. यह सारा विवरण इतिहास में आसानी से उपलब्ध है.
मोहम्मद गौरी के गुलाम कुतुबुद्दीन ने दिल्ली में कदम रखते ही सबसे पहले इन मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया. जल्दबाजी में उसी सामग्री से मस्जिद खड़ी कर दी गई. उसे नाम दिया गया कुव्वत-उल-इस्लाम यानी इस्लाम की ताकत. इसके निर्माण का मकसद इबादत से ज़्यादा स्थानीय लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना और उनके सामने इस्लाम की ताकत दिखाना था.
मंदिरों को तोड़ने और उस पर मस्जिद खड़ी करने की बात खुद कुतुबुद्दीन के दरबारी लेखकों ने लिखी है. 13वीं सदी के विदेशी यात्री इब्न बतूता से लेकर अंग्रेज़ इतिहासकारों ने भी यह तथ्य लिखा है. यहां तक कि इमारत के बाहर लगा भारतीय पुरातत्व सर्वे का बोर्ड भी यही कहता है कि उसे 27 हिंदू-जैन मंदिरों को तोड़ कर बनाया गया है.
1914 में भारतीय पुरातत्व विभाग की तरफ से इमारत के अधिग्रहण को भी याचिका में गलत बताया गया है. कहा गया है कि इमारत के बारे में पूरी जानकारी होते हुए भी सरकार ने हिंदू और जैन समुदाय को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया. मुस्लिम समुदाय ने जगह का कभी धार्मिक इस्तेमाल किया ही नहीं, न ही उसे वक्फ की संपत्ति घोषित किया. इसलिए उनका कोई दावा नहीं बनता. जगह सरकार के कब्जे में है. 27 मंदिरों के दोबारा निर्माण के लिए दिया जाए. मंदिरों के प्रबंधन के लिए ट्रस्ट का गठन किया जाए.
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