नई दिल्ली: मंगल के दिन से अफगानिस्तान में अमंगल की नई शुरुआत हो चुकी है.आज सुबह जब अफगानिस्तान के लोगों की आंखें खुली तो अमेरिकी सेना अफगानिस्तान छोड़कर जा चुकी है और सारा निजाम तालिबान के हाथों में हैं.
दुनिया की नजरों में ये नया सवेरा हो लेकिन अफगानिस्तान के लोगों के उम्मीदों की अंधेरी रात और गहरी हो चुकी है. दुनिया की तरफ उम्मीद की निगाहों से देख रहे करोड़ों अफगानी नागरिकों के लिए क्या कहीं से कोई उम्मीद की किरण नजर आएगी.
अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज तालिबान की धरती पर आतंकवाद को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में चिंता जताई गई. हालांकि यहां भी चीन और रूस तालिबान को कवच देते नजर आए.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने भारत की मौजूदा अध्यक्षता में सोमवार को अफगानिस्तान के हालात पर एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें मांग की गई है कि युद्ध प्रभावित देश का इस्तेमाल किसी देश को डराने या हमला करने या आतंकवादियों को पनाह देने के लिए नहीं किया जाए.
प्रस्ताव के समर्थन में 13 वोट पड़े और विरोध में शून्य वहीं रूस और चीन ने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया. भारत की अध्यक्षता में हुई बैठक में साफ संदेश दे दिया गया कि तालिबान किसी दूसरे देश के खिलाफ आतंक की फसल को अपनी जमीन पर जगह नहीं देगा.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में ब्रिटेन ने कहा कि तालिबान की पहचान काम से होगी ना कि वादे से. वहीं फ्रांस ने कहा - तालिबान आतंक के खिलाफ लड़े, अलकायदा से कनेक्शन खत्म करे.
जबकि तालिबान का समर्थन करने वाले चीन ने कहा कि सुरक्षा परिषद को तनाव बढ़ाने की जगह राहत देने वाले कदम उठाने चाहिए. 20 साल पहले तालिबान ने जो किया उसके दामन से वो दाग तो कभी नहीं छूट सकते.
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