जी-20 की अध्यक्षता में भारत ने जलवायु परिवर्तन का मुद्दा उठाया था. इसके बावजूद जी-20 एजेंडे में जलवायु परिवर्तन और इससे निपटने के लिए अभी तक कोई खास आकर्षण नहीं देखा गया. लेकिन वैज्ञानिकों की चेतावनी और संयुक्त राष्ट्र महासचिव की तरफ से जिस तरह से जी-20 देशों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को रोकने की बात कही गई है. उसपर ध्यान देने की जरूरत है. 


बता दें कि 1 दिसंबर 2022 से भारत दुनिया के महत्वपूर्ण संगठन जी-20 नेतृत्व कर रहा है. जी-20 देशों के समूह की अध्यक्षता संभालते हुए पीएम ने कहा था कि "भारत दुनिया में एकता की सार्वभौमिक भावना को बढ़ावा देने के लिए काम करेगा.


भारत 'एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य' के मंत्र के साथ आगे बढ़ेगा". पीएम मोदी ने जोर देकर ये भी कहा था "जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और महामारी की चुनौतियों को एक-दूसरे से लड़कर नहीं, बल्कि केवल एक साथ काम करके हल किया जा सकता है". 

बता दें कि भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक रहा है. भारत ने व्यापार में देश की बढ़ती क्षेत्रीय भूमिका में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लेकिन इसके कुछ खतरनाक परिणाम भी सामने आए हैं. ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी भी इसी का एक उदाहरण है. 


भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी बनाए हैं. भारत 2027 तक अपने लक्ष्य को प्राप्त करने पर अब तक जोर देता रहा है. इसी सिलसिले में देश ने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) की बैठक में 27 वें सम्मेलन में अपनी रणनीति भी साझा की है.  


भारत लंबे समय के लिए ग्रीन हाउस के कम उत्सर्जन की रणनीति पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. भारत ने इस मुद्दे पर नीतिगत प्रतिक्रियाओं को तैयार करने में अहम भूमिका भी निभाई है.


इससे भी जरूरी बात यह है कि वर्तमान संसद विशेष रूप से 2019 के भारतीय आम चुनाव में चुनी गई 17 वीं लोकसभा ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को रोकने के लिए कानूनों और विधायी उपायों पर बहस भी की.


संसद में की गई बहस में वायु और जल प्रदूषण से लेकर नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन की रणनीतियों पर विस्तार से चर्चा भी हुई थी. सांसदों ने यूएनएफसीसीसी, पेरिस समझौते और राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) के तहत भारत में हो रहे जलवायु परिवर्तन पर जवाब मांगा. 


लेकिन अब 2024 के लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही उर्जा को बढ़ावा देने, कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने, वायु प्रदूषण से निपटने, फसलों के अपशिष्ट से होने वाले प्रदूषण को काबू करने की दिशा में कई सवाल सामने आ खड़े हो गए हैं. जलवायु परिवर्तन से देश के अलग-अलग क्षेत्रों में लोगों को कई तरह की बीमारियों का भी सामना करना पड़ रहा है. जो भारत की रणनीति पर सवाल खड़े करने लगा है. 


जलवायु परिवर्तन से हो रही दुश्वारियों का समाधान ढूंढने की जरूरत


जलवायु परिवर्तन एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसका समाधान खोजने के लिए दृष्टिकोण की जरूत है. भारत में सांसदों ने जिस तरह से इस मुद्दे को उठाया है और नीतियों में बदलाव के लिए जोर देने की कार्रवाई की मांग की है वो इस मुद्दे की गंभीरता को पेश करता है. 


वहीं जलवायु परिवर्तन पर जन जागरूकता के मामले में भारत ने अमेरिका और रूस जैसे विकसित देशों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है.


येल प्रोग्राम ऑफ क्लाइमेट चेंज कम्युनिकेशन सर्वे में पाया गया कि 84 प्रतिशत भारतीयों का मानना है कि इंसानी गतिविधियों की वजह से जलवायु परिवर्तन उपजा है. इस आंकड़े से पता चलता है कि अधिकांश भारतीय जलवायु परिवर्तन और इस मुद्दे की गंभीरता से रूबरू हैं, जो आम जनता के लिए चुनावों में वोट डालने के लिए अहम कारक हो सकता है.





इसी मुद्दे पर हो सकता है युवा मतदाताओं का फोकस 


यह मुद्दा युवा मतदाताओं के लिए ज्यादा अहम हो सकता है. खासतौर से वैसे युवा जो पर्यावरण के प्रति ज्यादा जागरूक हैं और जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों के बारे में चिंतित हैं.


बता दें कि सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी ने अपने पिछले घोषणापत्र में उन राज्यों में वनों की सुरक्षा और संवर्धन की सुविधा के "हिमालयी क्षेत्र के लिए लंबे समय से लंबित मांग" को पूरा करने का वादा किया था. इसके लिए 'ग्रीन बोनस' का जिक्र घोषणा पत्र में था. 


लेकिन 2023 -24 के बजट में भी ग्रीन बोनस का जिक्र नहीं किया गया था. बीजेपी ने अपने पिछले घोषणापत्र में गांवों के लिए विद्युतीकरण, जल जीवन मिशन के तहत ग्रामीण जल संरक्षण और भूजल की कमी को 2024 तक पूरा करने का वादा किया था. साथ ही राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना के तहत 102 प्रदूषित शहरों पर ध्यान केंद्रित करने का भी वादा किया था. 




कांग्रेस ने भी अपने घोषणापत्र में मिट्टी की बिगड़ती गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करने की बात कही थी. कांग्रेस ने जल निकाय बहाली मिशन और बंजर भूमि पुनर्जनन मिशन को बढ़ावा देने की जरूरत को अपने घोषणापत्र में शामिल किया था. 


भारत के लिए जल संकट बड़ी चुनौती


भारत बढ़ती आबादी के साथ तेजी से जल संकट की ओर बढ़ रहा है. यही वजह है भूजल संसाधनों और नदियों को बहाल करने पर ध्यान केंद्रित करना होगा. कई बड़ी नदियां मौजूदा समय में अबतक के सबसे खराब हालात से गुजर रही हैं. देश भर के प्रमुख शहरों और नदियों में प्रदूषण की बड़ी चिंताएं बनी हुई हैं. पानी की कमी जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहा है.




हीटवेब ने भी बढ़ाई चिंता


बढ़ती हीटवेब की वजह से 2023 में 13 से 20 फरवरी के बीच लगभग 1,156  जंगल आग की चपेट में आए. जलवायु संबंधी आपदाओं की वजह से भारत में 4.9 मिलियन लोगों के आंतरिक विस्थापन की भी सूचना मिली है. 


देश में राजनीतिक नेतृत्व को न केवल अपने घोषणापत्रों और कार्यों में सामान्य उपायों को मजबूत करने की जरूरत है, बल्कि लोगों के सामने आ रही दुशवारियों को भी को कम करने के लिए जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन और लचीलेपन पर भी निर्माण लेने की जरूरत है. 


सत्तारूढ़ बीजेपी के 2019 के घोषणापत्र में पर्यावरण संरक्षण का भी जिक्र था. ये नवीकरणीय ऊर्जा, वनीकरण और वन्यजीव आवासों के संरक्षण के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्यों पर केंद्रित था. बीजेपी ने ऐसी नीतियां लाने का भी संकल्प लिया था जो विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत टिकाऊ नीतियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करें. 


दूसरी तरफ कांग्रेस जलवायु परिवर्तन से निपटने के सरकार के तरीके की मुखर आलोचना करती रही है. बता दें कि कांग्नेस ने 2019 के घोषणापत्र में पार्टी ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय जलवायु आयोग बनाने और प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम लाने का वादा किया था. 


छोटे राजनीतिक दलों ने भी घोषणापत्र में जलवायु परिवर्तन को दिया था महत्तव


कई छोटे राजनीतिक दलों ने भी पिछले चुनावों के लिए अपने घोषणापत्रों में जलवायु परिवर्तन को प्राथमिकता दी थी. इसमें टिकाऊ कृषि, पर्यावरण-पर्यटन और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया है.


अब देखना ये होगा कि इस बार के घोषणापत्र में तमाम पार्टियां इस मुद्दे पर अपने रुख को कितना सही साबित कर पाती है. क्या पार्टियां जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नई नीतियों को पेश करेंगी. हाल के कई रिपोर्टों में भारत जलवायु परिवर्तन के लिए सबसे कमजोर देशों में से एक देश बन कर उभरा है. 


ऐसे में यह तय करना जरूरी लगता है कि 2024 के चुनावों से पहले देश की राजनीति में जलवायु परिवर्तन को रास्ते पर लाने के वादे कहां अपनी जगह पाते हैं.