नई दिल्लीः पहाड़ों पर बादल फटने की घटनाएं अक्सर देखने को मिलती है. ये प्राकृतिक आपदा खासकर बरसात के दिनों में देखने को मिलती है. कई बार बादल फटने की घटना से जान-माल का भारी नुकसान देखने को मिलता है. लेकिन लोगों के मन में इस बात को लेकर हमेशा कौतुहल बना रहता है कि आखिर क्या सच में बादल फटता है? अगर बादल फटता है तो क्या होता है? आखिर बादल कैसे फटता है? तो आज हम इस घटना से संबंधित आपके मन में उठ रहे सभी सवालों का जवाब देंगे.


असल में, बादल फटना बारिश का चरम रूप होता है. बादल फटने के कारण इलाके में भारी से भारी बारिश का सामना करना पड़ता है. जिस इलाके में बादल फटने की घटना घटित होती है वहां काफी कम समय में मुसलाधार से भी तेज बारिश होती है. 


जिस इलाके में बादल फटने की घटना होती है बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं. बादल फटने की घटना अक्सर धरती से करीब 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर देखने को मिलती है.


तकनीकी शब्‍द है 'बादल फटना'


'बादल फटना' वास्तव में, सबसे तेज़ बारिश के लिए यह मुहावरा के रूप में प्रयोग किया जाता है. यह एक तकनीकी शब्‍द है. वैज्ञानिक तौर पर ऐसा नहीं होता कि बादल गुब्बारे की तरह या किसी सिलेंडर की तरह फट जाता हो.


अगर उदाहरण के तौर पर समझें तो जिस तरह पानी से भरा गुब्‍बारा अगर फूट जाए तो एक साथ एक जगह बहुत तेजी से पानी गिरता है ठीक वैसी ही स्थिति बादल फटने की घटना में देखने को मिलती है. इसे प्राकृतिक घटना को 'क्‍लाउडबर्स्‍ट' या 'फ्लैश फ्लड' भी कहा जाता है.


कब घटित होती है यह घटना


बादल फटने की घटना तब होती है जब भारी मात्रा में नमी वाले बादल एक जगह इक्कठा हो जाते हैं. ऐसा होने से वहां मौजूद पानी की बूंदें आपस में एक साथ मिल जाती हैं. बूंदों का भार इतना ज्यादा हो जाता है कि बादल की डेंसिटी बढ़ जाती है. डेंसिटी बढ़ने से अचानक तेज बारिश शुरू हो जाती है. 


पहाड़ों पर क्‍यों ज्‍यादा फटते हैं बादल


दरअसल, पानी से भरे बादल जब हवा के साथ आगे बढ़ते हैं तो पहाड़ों के बीच फंस जाते हैं. पहाड़ों की ऊंचाई इसे आगे नहीं बढ़ने देती है. पहाड़ों के बीच फंसते ही बादल पानी के रूप में परिवर्तित होकर बरसने लगती है. चूकि बादलों का डेंसिटी इतना अधिक होता है कि तेज से तेज बारिश शुरू हो जाती है. 


कैसे बचें जान-माल के नुकसान से


बादल फटने के दौरान जान-माल का भारी नुकसान देखने को मिलता है. जान-माल के नुकसान को कम करने के लिए मौसम विभाग की ओर से कई तरह के सुझाव दिए जाते हैं. बारिश के मौसम में ढलानों पर नहीं रहना चाहिए. ऐसे मौसम में समतल जमीन वाले क्षेत्रों में रहना चाहिए. जिन पहाड़ी क्षेत्रों में जमीन दरक गई हो, वहां वर्षा जल को घुसने से रोकने के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए.


बादल फटने की 10 बड़ी घटनाएं


बता दें कि बादल फटने से हर साल भारी तबाही मचती है और इस दौरान जान-माल की भारी क्षति होती है. आईए जानते हैं बादल फटने की वो दस बड़ी घटनाएं जिससे की देश सन्न रह चुका है.


पहली घटना- साल 1998 के अगस्त महीने में कुमाऊं जिले के काली घाटी में बादल फटने की घटना घटी. इस प्राकृतिक आपदा में करीब 250 लोगों की मौत हो गई. इनमें से कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले करीब 60 लोग भी शामिल थे. इस प्राकृतिक आपदा में प्रसिद्ध उड़िया डांसर प्रोतिम बेदी भी थी. वह भी कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जा रही थीं लेकिन बाढ़ और भूस्खलन की चपेट में आने से उनकी मौत हो गई.


दूसरी घटना- साल 2005 के जुलाई महीने में मुंबई के लोगों पर यह प्राकृतिक विपदा आई. इस घटना में 50 से भी अधिक लोग मारे गए. इस दौरान मायानगरी मुंबई में करीब 950 मिमी बारिश दर्ज की गई. भारी से भारी बारिश के कारण करीब दस-बारह घंटों के लिए शहर का पहिया जाम हो गया था.


तीसरी घटना- जुलाई 2005 में घटी. यह घटना हिमाचल प्रदेश के घानवी में घटी. इस घटना में बादल फटने से 10 लोगों की मौत हो गई थी.


चौथी घटना- अगस्त 2010 में घटी यह घटना काफी दर्दनाक रही. जम्मू-कश्मीर के लेह में बादल फटने से 1000 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और 400 से अधिक लोग घायल हुए है. इस प्राकृतिक आपदा के कारण लद्दाख क्षेत्र के कई गांव उजड़ गए और करीब 9000 से ज्यादा लोग प्रभावित हुए थे.


पांचवी घटना- जून 2011 में जम्मू के पास डोडा-बटोटे हाइवे के पास बादल फटने की घटना हुई. इस प्राकृतिक आपदा में 4 लोगों की मौत हो गई थी जबकि दर्जनों लोग घायल हो गए थे.


छठी घटना- जुलाई 2011 के मनाली शहर से 18 किलोमीटर दूर उपरी मनाली क्षेत्र में घटी. यहां बादल फटने के कारण 2 लोगों की मौत हो गई जबकि 22 लोग लापता हो गए.


सातवीं घटना- सितंबर 2012 में उत्तराखंड के उत्तरकाशी में बादल फटने की घटना हुई. इस घटना में 45 लोगों की मौत हो गई है जबकि 15 लोग घायल हो गए हैं. बादल फटने की इस घटना में 40 लोग गुम हो गए जिनमें से केवल 22 लोगों का शव मिला बाकी लोगों का कुछ पता नहीं चला.


आठवीं घटना- साल 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ में बादल फटने की घटना घटी. इस घटना में 150 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और हजारों लोग लापता हो गए. ज्यादातर लापता हुए लोगों का अभी तक पता नहीं चल पाया है. लापता लोगों में से ज्यादातर तीर्थयात्री थे.


नौवीं घटना- साल 2014 के जुलाई में घटी इस घटना में 4 लोगों की मौत हो गई थी. यह प्राकृतिक आपदा उत्तराखंड के टिहरी जिले में घटित हुई थी.


दसवीं घटना- साल 2014 के सितंबर महीने में कश्मीर घाटी में बादल फटने की घटना घटी थी. इस घटना ने भारी तबाही मचाई थी. इस प्राकृतिक आपदा में करीब 200 लोग मारे गए थे.