नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सिर्फ नंदीग्राम की सीट से चुनावी मैदान में कूदकर अपनी दिलेरी दिखाने के साथ ही लोगों को यह संदेश देने की कोशिश की है कि वे बीजेपी के आक्रामक प्रचार से न डरी हुईं हैं और न ही उनमें कोई घबराहट है. एक तरह से उन्होंने बीजेपी के साथ ही अपने पुराने सहयोगी शुभेंन्दु अधिकारी को ललकारा है.


पार्टी का कोई बड़ा नेता और खासतौर पर मुख्यमंत्री जब दो की बजाय सिर्फ एक सीट से ही चुनाव लड़ता है, तो वह अपने आत्मविश्वास को जताने के साथ ही मतदाताओं के दिलोदिमाग पर भी यह असर डालता है कि उनके प्रति उसका पूरा भरोसा है. हालांकि ममता के सीट बदलने के फैसले से उनके विरोधियों के हाथ यह मुद्दा लग गया है कि वे हार के डर से अपनी पुरानी सीट को छोड़कर सुरक्षित समझी जा रही सीट पर आ गई हैं. गौरतलब है कि 2016 के चुनाव में ममता ने भवानीपुर से जीत दर्ज की थी और तब नंदीग्राम सीट से उनके खास सिपहसालार शुभेन्दु अधिकारी जीते थे.


शुभेन्दु ने ममता का साथ छोड़ बीजेपी का दामन थामने के बाद उन्हें चुनौती दी थी कि वे नंदीग्राम से चुनाव लड़कर दिखाएं, उनकी हार तय है. ममता ने अपने पुराने सहयोगी के इस चैलेंज को कबूल करते हुए एक साथ दो निशाने साधकर अपनी राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दिया है.


अगर वे नंदीग्राम के साथ ही अपनी पुरानी सीट भवानीपुर से भी चुनाव लड़तीं, तो इसका लोगों के बीच गलत संदेश जाता. नंदीग्राम के मतदाताओं को लगता कि अगर वे दोनों सीटों से जीत गईं, तो जाहिर है कि वे यहां से इस्तीफा देकर अपनी पुरानी भवानीपुर सीट को बरकरार रखेंगी. विरोधी दल भी उनके खिलाफ यही प्रचार करते और उस सूरत में उनकी स्थिति कुछ डांवाडोल हो सकती थी. लिहाज़ा ममता ने वह रिस्क लेने की बजाय सिर्फ एक सीट से ही लड़ने का दिलेरी भरा फैसला लेकर अपनी पार्टी की स्थिति को पहले से अधिक मजबूत करने का काम किया है.


अक्सर बड़े नेता भारतीय जनप्रतिनिधत्व कानून के प्रावधान में एक साथ दो सीट से चुनाव लड़ने के विशेषाधिकार का फायदा उठाते रहे हैं. लेकिन आमतौर पर वे ऐसा तभी करते हैं, जब वे यह भांप लेते हैं कि उन्हें एक सीट पर खतरा है, तभी दूसरी सुरक्षित सीट से अपनी किस्मत आजमाते हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को यह अहसास हो गया था कि वे अमेठी से चुनाव हार सकते हैं, इसीलिए केरल में वायनाड जैसी सुरक्षित मानी जाने वाली सीट से भी चुनाव लड़ा.


जाहिर है कि ममता ने सिर्फ एक ही सीट से चुनाव लड़ने का फैसला कोई जल्दबाज़ी में तो नहीं लिया होगा. हर तरह के नफे-नुकसान का अंदाजा लगाने के बाद ही वे इस नतीजे पर पहुंची हैं. वैसे भी पूर्वी मिदनापुर जिला तृणमूल कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता है और इसमें ही नंदीग्राम सीट है. पिछले विधानसभा चुनाव में यहां तृणमूल को 16 में से 13 सीटें मिली थीं, बाकी तीन सीटें वाम मोर्चा के खाते में गईं.