भुवनेश्वर: ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने लोगों से सुप्रीम कोर्ट के आदेश और कोविड-19 संबंधी दिशा-निर्देशों का पालन कर भगवान जगन्नाथ की पुरी में वापसी की रथयात्रा सफल बनाने की अपील की और कहा कि वैश्विक महामारी के बीच इस ऐतिहासिक आयोजन पर पूरी दुनिया की नजर है.


मुख्यमंत्री ने की इन लोगों की तारीफ
पटनायक ने एक जुलाई को बहुदा यात्रा (भगवान जगन्नाथ की वापसी की रथ यात्रा) की तैयारियों की शुक्रवार को समीक्षा की और कोरोना वायरस प्रतिबंधों के बीच 23 जून को निर्बाध रथ यात्रा सुनिश्चित करने के लिए 12वीं सदी के मंदिर के सेवकों, श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग, पुलिस और जिला प्रशासन की प्रशंसा की.


मुख्यमंत्री ने 23 जून को रथयात्रा को सफल बनाने के लिए सरकार के साथ सहयोग करने और संयम बरतने के लिए पुरी वासियों को विशेष रूप से धन्यवाद दिया.


उन्होंने कहा, ‘‘मैं चाहता हूं कि भगवान की वापसी और अन्य अनुष्ठान भी इसी भावना के साथ आयोजित किए जाएं.’’


रथ खींचने के लिए मंदिर और जिला प्रशासन को दिए निर्देश


मुख्यमंत्री ने सेवकों से सभी अनुष्ठान समय पर सम्पूर्ण करने की अपील की. उन्होंने मंदिर एवं जिला प्रशासन से सख्ती से यह सुनिश्चित करने को कहा कि कोविड-19 की जांच में संक्रमित नहीं पाए जाने वाले लोगों को ही बहुदा यात्रा संबंधी अनुष्ठानों में भाग लेने और रथ खींचने की अनुमति दी जाए.


पटनायक ने कर्फ्यू और लॉकडाउन लागू करने के लिए अग्रसक्रिय कदम उठाए जाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए पुलिस से अपील की कि वह मानवीयता के साथ अपना काम करे.


उन्होंने कहा, ‘‘जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि प्रतिबंधों के साथ रथयात्रा के आयोजन के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से पूरी दुनिया हमें देख रही है. हमें सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि बहुदा यात्रा के दौरान सभी सावधानियां बरती जाएं.’’


क्या है परंपरा
रथ के रूप की बात करें तो जगन्नाथ उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा के तीन रथ बनाया जाता है. यह रथ लकड़ी के बने होते हैं. जगन्नाथजी के रथ को नंदीघोष, बलराम जी के रथ को 'तलध्वज' और सुभद्रा जी का रथ "देवदलन" है. तीनों रथों को जगन्नाथ मंदिर से खींच कर 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति गुंडीचा मंदिर तक लिया जाता है.


गुंडीचा मंदिर 7 दिनों तक जगन्नाथ भगवान यहीं निवास करते हैं. इसके बाद आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन वापसी जिसे बाहुड़ा यात्रा कहते हैं. इस दौरान पुन: गुंडिचा मंदिर से भगवान के रथ को खिंच कर जगन्नाथ मंदिर तक लाया जाता है.


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