Nitish Kumar News: लोकसभा चुनाव भले ही 2024 में हैं, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के प्रयागराज की फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की अटकलों के बीच सियासी पारा गरम हो गया है. इसी सियासी तापमान को मापने के लिए एबीपी न्यूज़ की टीम ने ग्राउंड जीरो से सियासी समीकरण का जायजा लिया और लोगों से बात की. 


इस बीच पता चला कि यह लड़ाई सिर्फ फूलपुर की नहीं, बल्कि बिहार (Bihar) और उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की 120 लोकसभा सीटों की है. खासकर कुर्मी वोट बैंक पर हक जमाने की लड़ाई है. अब यहां कुछ लोगों ने तो नीतीश कुमार का स्वागत किया, लेकिन बहुत सारे लोगों का मानना है कि नीतीश को पहले बिहार में अपनी उपयोगिता को बेहतर तरीके से साबित करने की जरूरत है. फूलपुर की मौजूदा भाजपा सांसद केसरी देवी पटेल का मानना है कि फूलपुर की जनता बाहर के लोगों को भगा देती है. 


दरअसल, भारतीय जनता पार्टी (BJP) से अलग होने के बाद नीतीश कुमार पिछले 1 महीने से विपक्ष के बड़े नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं और उन्हें गोलबंद करने की कोशिश कर रहे हैं. मीडिया के सामने भले ही उन्होंने बार-बार इस बात का जिक्र किया हो कि उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनना, लेकिन इसी के साथ वह ये भी कहते हैं कि 2024 में किसी भी कीमत पर वह भाजपा की सरकार नहीं बनने देंगे.


120 सीटों पर नीतीश की निगाहें!


भाजपा का सबसे बड़ा गढ़ उत्तर प्रदेश है, जहां की 80 लोकसभा सीटों में आज भी भाजपा के पास 66 सीटें हैं, जबकि एक उनके सहयोगी अपना दल के पास है. भाजपा का प्रयास है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में इसे 70 से ऊपर ले जाया जाए और यहीं से विपक्ष के अघोषित चेहरा बनने की फिराक में लगे नीतीश कुमार की कहानी शुरू होती है.


सूत्रों की मानें तो नीतीश कुमार बिहार और उत्तर प्रदेश की 120 लोकसभा सीटों पर नजर गड़ाए हुए हैं. बिहार में लालू प्रसाद यादव की पार्टी आरजेडी और उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के सहारे वह भारतीय जनता पार्टी के अजेय रथ को रोकने की फिराक में हैं. 


क्या है नीतीश कुमार की योजना


सूत्रों की मानें तो नीतीश कुमार की योजना है कि कुर्मी बाहुल्य फूलपुर में शत प्रतिशत कुर्मियों का वोट अपने पक्ष में किया जाए. साथ ही यादव और मुसलमान, जो कि समाजवादी पार्टी का परंपरागत वोट माना जाता है, के सहारे लोकसभा तक पहुंचा जाए, लेकिन यह योजना सिर्फ फूलपुर तक सीमित रहने वाली नहीं है. 


कहां जाएगा कुर्मी वोट


दरअसल, इसके पीछे का जो फलसफा है वह यह है कि फूलपुर के सहारे उत्तर प्रदेश के करीब 13 फीसदी कुर्मी वोट बैंक को विपक्षी गठबंधन के पक्ष में लाया जाए, जो पिछले चार चुनावों भाजपा के साथ खड़ा है. साथ ही फूलपुर से लगी हुई प्रयागराज, कौशांबी, प्रतापगढ़, भदोही, मिर्जापुर, सोनभद्र, बांदा-चित्रकूट, अमेठी, गोंडा, बहराइच जैसे कुर्मी बाहुल्य सीट को जीता जा सके. 


फूलपुर कस्बे के बाद हमने ग्रामीण अंचलों का जायजा लिया. वहां मिलीजुली प्रतिक्रियाएं सामने आईं. फूलपुर लोकसभा क्षेत्र के देवनाहरी गांव के लोगों का मानना है कि नीतीश कुमार के चुनाव लड़ने से असर पड़ेगा, क्योंकि फूलपुर में बड़ी संख्या में कुर्मी बिरादरी का वोट है जो बड़ा फैक्टर है.


फेल हो चुका है फॉर्मूला 


यूपी की राजनीति पर गौर करें तो 2024 में जो फॉर्मूला बनता नजर आ रहा है उससे पहले ऐसा ही प्रयोग 2019 के लोकसभा चुनाव में किया जा चुका है. लंबे समय के बाद मायावती और मुलायम सिंह यादव दोनों एक मंच पर नजर आए थे, लेकिन उसका ज्यादा फायदा नहीं हो सका था.


उत्तर प्रदेश की दो बड़ी पार्टियां समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने यह सोचकर गठबंधन किया था कि पिछड़ा और दलित अगर एक हो जाएं तो किसी की भी सरकार बनना मुश्किल हो जाएगा, लेकिन राजनीति कोई अंकगणित नहीं है और 2019 लोकसभा चुनाव के नतीजे इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. जनता ने दोनों नेताओं के मंसूबों पर पानी फेरते हुए 80 में से 65 लोकसभा सीटें भाजपा के खाते में दे दी थी, जबकि 10 बसपा और 5 सीटों से ही समाजवादी पार्टी को संतोष करना पड़ा था.


क्या हैं उत्तर प्रदेश जातिगत आंकड़े



  • दलित- 25 फीसदी

  • ब्राह्मण - 10 फ़ीसदी

  • पिछड़ा- 35 फीसदी (यादव 13, कुर्मी 12 व 10 फीसदी अन्य)

  • मुस्लिम - 17 फीसदी 

  • क्षत्रिय - 5 फीसदी


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