मरा मरा से राम राम कहने में वक्त तो लगता है, सेक्युलर पर अटके ठाकरे
उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बने तो 24 घंटे भी नहीं हुए हैं. अभी तो सेक्युलर पर ही ज़बान फंसी है, अभी कई और ऐसी बातें- मुद्दे हैं जहां उद्धव फंसेंगे. अभी तो ये बस आग़ाज़ है, आगे आगे देखिए अंजाम क्या होता है?
नई दिल्ली: बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि वाल्मीकि मरा मरा कहते राम राम कहने लगे थे. वाल्मीकि, जिन्होंने रामायण लिखा था. वहीं रामायण, जिसकी कहानियां घर घर में सुनी और सुनाई जाती हैं. कहते हैं कि महर्षि बनने से पहले वे लूट पाट करते थे. फिर उनका हृदय परिवर्तन हुआ. वे भगवत भजन में लग गए. लाख जतन करने पर भी वे मरा मरा ही बोल पाते थे. सालों की तपस्या के बाद वाल्मीकि राम राम कहने और जपने लगे. वे सबसे बड़े राम भक्त कहे जाते हैं.
अब आते हैं असली मुद्दे पर. मुख्यमंत्री बनने के बाद उद्धव ठाकरे अपनी पहली ही प्रेस कॉन्फ्रेंस में फंस गए. वो भी एबीपी न्यूज़ के सवाल पर. सवाल सेक्युलरिज़्म को लेकर था. कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के पहले पन्ने पर ही सेक्युलर रहने का दावा किया गया था. इसी दावे पर पूछे जाने पर ठाकरे अटक गए. वे बोले जो संविधान में है, वो है. शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने मिल कर सरकार चलाने के लिए न्यूनतम साझा कार्यक्रम तैयार किया है.
अब उद्धव ठाकरे रातों रात सेक्युलर हो जायें. ये कैसे संभव है ? उनकी शिक्षा दीक्षा हिंदुत्व में हुई. घर और बाहर भगवामय माहौल रहा. मराठा और हिंदुत्व के नाम पर राजनीति करते रहे और कराते रहे. शिव सैनिक अयोध्या में राम मंदिर बनाने की शपथ खाते खाते बड़े हुए. खुद उद्धव भी अयोध्या चले गए थे. बाला साहेब ठाकरे ने तो शिव सैनिकों के हाथों अयोध्या में विवादित ढांचा गिराने का दावा किया था. अब अचानक ही रंग ढंग बदल जाए. सालों का पढ़ा लिखा भूल जायें. ऐसा तो नामुमकिन है. समय लगता है. कोई पेट में तो सीख कर आता नहीं. सब धीरे धीरे ही सही समझते हैं और आगे बढ़ते हैं.
उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री बने तो 24 घंटे भी नहीं हुए हैं. अभी तो सेक्युलर पर ही ज़बान फंसी है. अभी कई और ऐसी बातें- मुद्दे हैं, जहां उद्धव फंसेंगे. कभी नाथूराम गोडसे आ जायेंगे. आज संसद में इस पर खूब हंगामा हुआ. गोडसे को देश भक्त कहने पर प्रज्ञा ठाकुर को माफी मांगनी पड़ी. वे भोपाल से बीजेपी की सांसद हैं. वीर सावरकर के नाम पर भी शिव सैनिकों और कांग्रेस में ठन सकती हैं. एनसीपी को भी ये सब चुभेगा. चलिए चुभने और चुभाने का खेल ही तो सियासत है. यहां को तीन तीन पार्टियों के खिलाड़ी इस गेम में हैं. शरद पावर जैसे नॉन प्लेयिंग कैप्टन भी हैं. अभी तो ये बस आग़ाज़ है, आगे आगे देखिए अंजाम क्या होता है ?
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