Collegium vs NJAC: क्या खत्म हो सकता है कॉलेजियम सिस्टम, जानिए क्यों छिड़ी हैं सुप्रीम कोर्ट और मोदी सरकार में तकरार
Collegium vs NJAC: केंद्र सरकार कॉलेजियम की ओर से आए इन नामों पर अपनी आपत्ति जता सकता है. हालांकि, अगर कॉलेजियम फिर से उन नामों को सरकार के पास भेजता है, सरकार उन्हें मानने के लिए बाध्य होती है.
Collegium vs NJAC: भारत में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए बनाए गए कॉलेजियम सिस्टम को लेकर केंद्र सरकार और न्यायपालिका के बीच तकरार कम होने का नाम नहीं ले रही है. इस बीच केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ को चिट्ठी लिखकर मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम में सरकार के प्रतिनिधि शामिल होने चाहिए. इससे पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा मिलेगा.
जिस पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसे खतरनाक बताते हुए कहा कि न्यायिक नियुक्तियों में सरकार का हस्तक्षेप बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए. दरअसल, केंद्र सरकार राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) की तरफदारी कर रही है. वहीं, सुप्रीम कोर्ट वर्तमान में चल रहे कॉलेजियम सिस्टम (Collegium) को ही बनाए रखने का बचाव कर रहे हैं. आइए जानते हैं कि कैसे काम करता है सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम और क्या है एनजेएसी?
कैसे काम करता है कॉलेजियम सिस्टम?
साल 1993 से जजों की नियुक्ति के लिए देश में कॉलेजियम सिस्टम लागू है. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के साथ 4 वरिष्ठ जज इस कॉलेजियम सिस्टम का हिस्सा होते हैं. ये कॉलेजियम जजों की नियुक्ति और उनके ट्रांसफर की सिफारिश केंद्र सरकार से करता है. वहीं, हाईकोर्ट कॉलेजियम में सीजेआई के साथ हाईकोर्ट के दो वरिष्ठ जज शामिल होते हैं. कॉलेजियम सिस्टम के लिए संविधान में कोई दिशा-निर्देश नहीं हैं. ये सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से उपजा एक सिस्टम है. कॉलेजियम सिस्टम में केंद्र सरकार की केवल इतनी भूमिका है कि अगर किसी वकील का नाम हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में जज बनाने के लिए बढ़ाया जा रहा है, तो सरकार इंटेलिजेंस ब्यूरो से उनके बारे में जानकारी भर ले सकती है. केंद्र सरकार कॉलेजियम की ओर से आए इन नामों पर अपनी आपत्ति जता सकता है और स्पष्टीकरण मांग सकता है. हालांकि, अगर कॉलेजियम फिर से उन नामों को सरकार के पास भेजता है, सरकार उन्हें मानने के लिए बाध्य होती है. कानून मंत्रालय से मंजूरी मिलने के बाद राष्ट्रपति की मुहर से जजों की नियुक्ति हो जाती है.
कॉलेजियम के साथ क्या समस्या है?
साल 2021 में संसद के शीतकालीन सत्र में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश (वेतन एवं सेवा शर्ते) संशोधन विधेयक 2021 पर राज्यसभा में चर्चा के दौरान केरल के सांसद जॉन ब्रिटस ने न्यायपालिका की खामियों के बारे में खुलकर बात रखी थी. राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटस ने जजों की नियुक्ति, न्यायपालिका में बसे वंशवाद, कॉलेजियम के प्रस्तावों पर सरकार की चुप्पी और न्यायपालिका में विविधता की कमी के मुद्दे उठाए थे. उन्होंने कहा था कि सदन यह जानकर चौंक जाएगा कि 1980 तक देश के सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी का कोई न्यायाधीश नहीं था. दरअसल, कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना करने वाले कहते हैं कि इसमें पारदर्शिता की कमी हैं. कॉलेजियम सिस्टम में फैसले कैसे और कब लिए जाते हैं, इसके बारे में सिफारिश के सरकार तक पहुंचने से पहले कोई जानकारी सामने नहीं आती है.
क्या होता है राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग?
साल 2014 में संविधान में 99वें संशोधन के जरिये राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को सबके सामने लाया गया था. जिसमें कॉलेजियम सिस्टम को हटाकर इस आयोग को जजों की नियुक्ति करने के लिए बनाया जाएगा. इस आयोग से सीधे तौर पर केंद्र सरकार का जजों की नियुक्ति में दखल बढ़ जाएगा. दरअसल, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग में सीजेआई की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ जजों के साथ केंद्रीय कानून मंत्री और सिविल सोसाइटी के दो लोगों को शामिल करने का प्रावधान है. मनोनीत दो सदस्यों में से एक को सीजेआई, प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता की ओर से सदस्य बनाया जाएगा. वहीं, दूसरा मनोनीत सदस्य एससी/एसटी/ओबीसी/अल्पसंख्यक समुदाय से या महिला होगी. साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने एनजेएसी को अवैध घोषित कर दिया था.
क्या खत्म किया जा सकता है कॉलेजियम सिस्टम?
कॉलेजियम सिस्टम को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार को संवैधानिक संशोधन करने की जरूरत होगी. जिसके लिए केंद्र सरकार को संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में होने वाली वोटिंग में दो-तिहाई सांसदों का बहुमत मिलना चाहिए. इसके साथ ही इस संशोधन को देश के कम से कम आधे राज्यों के समर्थन की भी जरूरत होगी. फिलहाल की स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि केंद्र सरकार के लिए ये मुमकिन नहीं है.
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