श्रीनगर: रविवार को आतंकवाद से मुकाबला करते हुए कर्नल आशुतोष शर्मा ने अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया. उन्होंने वीरगति उस वक्त प्राप्त की जब कुपवाड़ा के हंदवाड़ा में आतंकवादियों से मुठभेड़ हो गई. यहां बंधक बनाये गये लोगों को मुक्त कराने के लिये उन्होंने मोर्चा संभाला था. मगर 13वां नंबर उनके लिए भाग्यशाली साबित नहीं हुआ.


सेना के प्रति जुनूनी थे शहीद आशुतोष


कर्नल शर्मा अपने सहकर्मियों और वरिष्ठ अधिकारियों के नजदीक सबसे खुशमिजाज अधिकारी के रूप में याद किए जाते हैं. उन्हें अपने जवानों के साथ वक्त बिताना पसंद था. अपने भाई को याद करते हुए उनके बड़े भाई पियूष कहते हैं, “मेरे भाई का एक ही सपना था सिर्फ आर्मी.” आर्मी के प्रति आशुतोष शर्मा कितने समर्पित थे इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है उन्होंने एक तरह से युद्ध छेड़ दिया था. उनके भाई पियूष बताते हैं कि आखिरकार आशुतोष ने 13वें प्रयास में सफलता हासिल कर ली.


2000 में 13वें प्रयास में हुए थे सफल


2000 में सेना में भर्ती होनेवाले आशुतोष के बारे में कहा जाता है कि उन्हें स्पेशल फोर्स का हिस्सा नहीं बनने पर मलाल था. उन्होंने सेना की तैयारी के लिए साढ़े छह साल का समय लगाया. आशुतोष शर्मा को कश्मीर में कमांडिंग ऑफिसर के तौर पर सेवा देने के लिए उन्हें दो बार सेना पदक से नवाजा जा चुका है. कर्नल शर्मा अपने पांच साथियों के साथ शहीद होने वाले 21वीं राष्ट्रीय राइफल्स के दूसरे कमांडिंग ऑफिसर थे. ऐसे जांबाज अधिकारी पर आज पूरा देश गर्व कर रहा है.


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