भारत को सियाचिन ग्लेशियर दिलवाने वाले कर्नल ‘बुल’ कुमार का निधन, पीएम मोदी ने श्रद्धांजलि अर्पित की
सियाचिन ग्लेशियर को भारत के अधिकार-क्षेत्र में लाने में अहम भूमिका निभाने वाले कर्नल नरेंद्र कुमार ने गुरूवार को राजधानी दिल्ली में दुनिया को अलविदा कह दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर श्रद्धांजलि अर्पित की है.
सियाचिन ग्लेशियर को भारत के अधिकार-क्षेत्र में लाने में अहम भूमिका निभाने वाले कर्नल नरेंद्र कुमार ने गुरूवार को राजधानी दिल्ली में दुनिया को अलविदा कह दिया. सेना में ‘बुल’ कुमार से ख्याति प्राप्त कर्नल नरेंद्र कुमार बीमारी से पीड़ित थे और 84 वर्ष के थे. सेना के आर एंड आर हॉस्पिटिल में उन्होनें आखिरी सांसें लीं.
जिसके बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कर्नल नरेंद्र 'बुल' कुमार को श्रद्धांजलि अर्पित की है. पीएम ने लिखा "एक अपूरणीय क्षति! कर्नल नरेंद्र 'बुल' कुमार (सेवानिवृत्त) ने असाधारण साहस और परिश्रम के साथ देश की सेवा की. पहाड़ों के साथ उनका विशेष संबंध याद किया जाएगा. उनके परिवार और शुभचिंतकों के प्रति संवेदना. ओम शांति."
An irreparable loss! Colonel Narendra 'Bull' Kumar (Retired) served the nation with exceptional courage and diligence. His special bond with the mountains will be remembered. Condolences to his family and well wishers. Om Shanti. https://t.co/hTQvGJobxM
— Narendra Modi (@narendramodi) December 31, 2020
आपको बता दें, 1953 में भारतीय सेना की कुमाऊं रेजीमेंट में शामिल होने वाले कर्नल नरेंद्र कुमार को उंची पर्वत श्रृंखलों को फतह करने का शौक था. उन्होनें वर्ष 1965 में माउंट एवरेस्ट पर विजय हासिल की थी, तो उसके बाद नंदा देवी, माउंट ब्लैंक और कंचनजंगा पर. लेकिन भारतीय सेना में होने खास तौर से जाना जाता है उनके सियाचिन ग्लेशियर पर चढ़ाई के लिए. गुलमर्ग स्थित हाई ऑल्टिट्यूड वॉरफेयर कॉलेज के कमांडेंट के तौर पर 70 के दशक के आखिर और 80 के दशक में शुरूआत में कर्नल बुल अपने दल के साथ सिचायिन ग्लेशियर और सालटारो-रिज पर पर्वतरोहण के लिए गए थे.
उसी दौरान उन्होनें पाया कि पाकिस्तानी सेना वहां कब्जा करने की फिराक में है. उन्होनें अपनी रिपोर्ट सेना मुख्यालय को सौंपी, जिसके बाद ही भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत लॉन्च किया और पाकिस्तानी सेना से पहले सिचायिन पर जाकर अपना अधिकार जमा लिया. उसके बाद से पाकिस्तानी सेना कभी सियाचिन ग्लेशियर पर कब्जा नहीं कर पाई. बताया जाता है कि एक बार एक पर्वतरोहण के समय कर्नल कुमार को अमेरिकी सेना के कुछ गोपनीय नक्शे हाथ लग गए थे. उन नक्शों में सियाचिन ग्लेशियर का हिस्सा पाकिस्तान में दिखाया गया था. वहीं से कर्नल कुमार के कान खड़े हो गए थे और उन्होनें सियाचिन ग्लेशियर पर जाने का इरादा बनाया था.
आज भी सियाचिन ग्लेशियर में भारतीय सेना की सबसे उंची चौकियों में से एक कुमार-पोस्ट उनके नाम पर है
वे भारतीय सेना के एकमात्र कर्नल रैंक के अधिकारी हैं जिसे पीवीएसएम यानि परम विशिष्ट सेवा मेडल और एवीसीएम यानि अति-विशिष्ट सेवा मेडल से नवाजा गया था. उन्हें बहादुरी के लिए कीर्ति चक्र और खेलों के प्रोत्साहन के लिए अर्जुन-अवार्ड से भी नवाजा गया था.
हालांकि, ये कहा जाता है कि उनकी बुल (बैल) जैसी दृढ-शक्ति के लिए बुल-कुमार कहा जाता था लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि एनडीए में अपने एक सीनियर से लड़ाई के दौरान ‘बुल’ की तरह टक्कर मारने के लिए उन्हें ये नाम दिया गया था. हालांकि, वे इस लड़ाई में अपने सीनियर से हार गए थे लेकिन उनका ये नाम मरते दम तक साथ रहा. उनका ये सीनियर बाद में भारतीय सेना का प्रमुख बना था—जनरल जे एफ रोड्रिग्स.
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