सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कलर ब्लाइंड (रंगों की पहचान में असमर्थ) लोगों को फ़िल्म निर्माण से जुड़े पाठ्यक्रम में हिस्सा लेने से नहीं रोका जाना चाहिए. कोर्ट ने पुणे के प्रतिष्ठित फ़िल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) को निर्देश दिया है कि वह अपने सभी कोर्स वर्णान्ध लोगों के लिए खोले. कोर्ट ने यह आदेश एक ऐसे याचिकाकर्ता की याचिका पर दिया है जिसे 2015 में फ़िल्म एडिटिंग कोर्स के लिए चुना गया था, लेकिन बाद में कलर ब्लाइंडनेस के चलते दाखिला नहीं दिया गया.


जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा है कि फ़िल्म निर्माण एक कला है. अगर वर्णान्धता के चलते किसी को कुछ समस्या आती है, तो वह दूसरे व्यक्ति से सहयोग ले सकता है. वर्णान्ध लोगों को पूरी तरह अयोग्य नहीं कहा जा सकता. हालांकि, कोर्ट ने FTII को अनुमति दी है कि वह याचिकाकर्ता आशुतोष कुमार को दाखिला देने में अपनी आपत्ति पर हलफनामा दाखिल कर सकता है.


अब 35 साल के हो चुके पटना के आशुतोष कुमार को 2015 में FTII के फ़िल्म एडिटिंग कोर्स के लिए चुना गया था. मेडिकल जांच में कलर ब्लाइंड पाए जाने के बाद आशुतोष को इंस्टीट्यूट में प्रवेश नहीं मिला था. उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट में इसे चुनौती दी. लेकिन हाई कोर्ट ने FTII के निर्णय को नियम मुताबिक बताया.


सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में आशुतोष ने बताया कि FTII अपने 12 में से 6 पाठ्यक्रमों में कलर ब्लाइंड लोगों को प्रवेश नहीं देता. यह भेदभाव है. याचिकाकर्ता के वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने सुप्रीम कोर्ट के 2017 और 2018 के उन आदेशों को जजों के सामने रखा जिसमें वर्णान्ध और कम दृष्टि वाले लोगों को MBBS में दाखिला देने के लिए कहा गया था.


याचिकाकर्ता ने हॉलीवुड के प्रख्यात निर्माता-निर्देशक क्रिस्टोफर नोलान का भी उदाहरण कोर्ट के सामने रखा. नोलान भी कलर ब्लाइंड हैं, लेकिन उन्होंने एक से बढ़कर एक फिल्में बनाई हैं. जनवरी में जजों ने इस मामले को सुनते हुए एक विशेषज्ञ कमिटी के गठन किया था. इस कमिटी में नेत्र चिकित्सा विशेषज्ञ के अलावा फिल्म निर्माण की जानकारी रखने वाले लोगों को शामिल किया गया था. आज कोर्ट ने FTII को अपने सभी कोर्स कलर ब्लाइंड लोगों के लिए खोलने का निर्देश दे दिया.


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